30.8.11

भाषा की मर्यादा और हमारे राजनेता


आजकल हमारे संसद के माननीय लोग किरण बेदी और ओम पुरी के पीछे हाथ धो के पड़ गए है | माननीयो का कहना है की न सिर्फ किरण बेदी और ओम पुरी  खिलाफ विशेषाधिकार हनन नोटिस दिया जाये  बल्कि उन्हें जेल भी हो | लेकिन हमारे कई ऐसे मंत्री है जिन्होंने खुल्लेआम बाबा रामदेव को ठगचोर और अन्ना जी को मदारी और ब्लैकमेलर कहा तो क्या हमारी संसद इनके खिलाफ भी कोई नोटिस देगी ?
जब हमारे मंत्री महोदय जिनसे की अपेक्षा की जाती हैं की ये लोग पुरे संयमित रहेंगे और आदर्शव्यवहार करेंगे लेकिन आज कल ये लोग दुसरे को क्या बोलेंगे जब ये खुद ही मर्यादा भूल करगली के टपोरियो की तरह व्यवहार करने लगते हैअभी ज्यादा पीछे  जाये तो कांग्रेस केप्रवक्ता मनीष तिवारी को ही ले लीजियेसता पक्ष के प्रवक्ता है इतनी बड़ी जिम्मेदारी है फिर भीअन्ना को लेके तू तू मैं मैं पर उतर गए थे | हालाँकि बाद में माफ़ी भी मांग ली पर पुरे एक सप्ताहबाद इनको अपनी गलती का अहसास हुआ और इन्होने माफ़ी मांगी | लेकिन ये बात संसद मेंनहीं गूंजी के एक गांधीवादी और  वृद्ध सामाजिक कार्यकर्त्ता जो की देशहित में शांतिपूर्वकआन्दोलन कर रहा था उसके खिलाफ ऐसे अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया गया वो भीअगर कोई आम आदमी होता तो इसको नजरंदाज किया जा सकता था लेकिन देश के सबसे बड़ेपार्टी के प्रवक्ता के मुह से ऐसे अल्फाज किसी को भी हजम नहीं हुआ थाऔर इसी पार्टी के तोसचिव महोदय दिग्विजय सिंह जी का तो इसमें कोई महारत हासिल है ............
http://humanitywithakshay.blogspot.com/2011/08/blog-post_30.html
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3 comments:

  1. मनीष तिवारी और दिग्विजय सिंह पर तो मानहानि का दावा लगना चाहिए। किरण बेदी को संसद से पूछना चाहिए कि इन सांसदों का भाषा किस सभ्‍यता के अन्‍तर्गत आती है?

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  2. बहुत सुन्दर --
    प्रस्तुति |
    ईद की बहुत बहुत मुबारकबाद ||
    बधाई ||

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  3. बहुत बहुत धन्यवाद अजित गुप्ता जी और रविकर जी आप दोनों को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाये
    और अजित जी चुकी मैंने अपने लेख में भी लिखा है की मनीष गुप्ता और दिग्विजय सिंह के बयाँ पर तो हमारी संसद ने अफ़सोस तक नहीं जताया फिर मानहानि और मुकदमा तो बहुत दूर की बात है | चूँकि कांग्रेस ने हमेशा हमारे देश के कानून के साथ खेला है और ये खेल आज भी जारी है नहीं तो क्या कोई ऐसा नहीं था जो ये पूछ सके की आपने सुबह अन्ना को गिरफ्तार करके शाम को रिहाई का आदेश देते है जबकि मजिस्ट्रेट ने न्यायिक हिरासत पर भेज दिया था, तो क्या मजिस्ट्रेट ही अनपढ़ गंवार था या इसके पीछे कोई और था जो कानून को अपने बाप की जागीर समझकर जब मन में आये तब गिरफ्तार किया और जब मन में आये छोड़ दिया

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