8.8.11
महंगाई, मजदूर और मेघ ने बढ़ाई मूर्तिकारों की मुसीबत
शंकर जालान
कोलकाता। पांच दिवसीय दुर्गोत्सव के लिए दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी, गणेश व कार्तिक की मूर्तियों के निर्माण में जुटे उत्तर कोलकाता स्थित कुम्हारटोली के मूर्तिकार इन दिनों महंगाई, मजदूर व मेघ (बारिश) से परेशान हैं। मूर्तिकारों ने बताया कि उन्हें इनदिनों बारिश का भय सता रहा है। इस कारण वे सही ढंग से अपना काम नहीं कर पा रहे हैं। एकचाल (एक साथ पांचों मूर्ति) के मूर्ति बनाने वाली महिला मूर्तिकार चायना पाल ने बताया कि बारिश के दौरान उन्हें अन्य मूर्तिकारों की तरह पॉलीथीन के नीचे काम करना पड़ता है। वे बताती हैं कि इस बार वे कुल 32 मूर्तियां बना रही हैं। अब तक दस प्रतिमाओं के आॅर्डर मिले चुके हैं। पाल ने बताया कि जगह की कमी व बारिश के दौरान उन्हें काम करने में काफी असुविधा हो रही है।
उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि राज्य सरकार की ओर से मूर्तिकारों के लिए कोई सुविधा नहीं मिलने के कारण यह समस्या प्रतिवर्ष रहती है। उन्होंने मांग की कि इस समस्या के समाधान के लिए शहर में मूर्तिकारों के लिए एक जगह आबंटित की जानी चाहिए, जिससे वहां पर मूर्तिकार अपना काम कर सकें। चंदन दास नामक मूर्तिकार ने बताया कि उनके पास छोटी-बड़ी 15 प्रतिमाओं के निर्माण का आॅर्डर है। हालांकि बारिश के कारण काफी काम बाधित हुआ है। समय पर काम पूरा करने के लिए बारिश के दौरान पॉलीथीन लगाकर काम करना पड़ रहा है।
एक मूर्तिकार ने बताया कि पांच दिनों तक धूमधाम से मनाए जाने वाले पश्चिम बंगाल के विश्व प्रसिद्ध दुर्गापूजा उत्सव क लिए मूर्तियां गढ़ने वाले मूर्तिकार इस बार महंगाई, मजदूर व बारिश की मार से पीड़ित हैं। मूर्तिकार बासुदेव रुद्र ने बताया कि कच्चे माल की कीमत पिछले साल की तुलना में दोगुनी हो चुकी है। मूर्ति बनाने में काम आने वाली हर एक वस्तु की कीमत आसमान छू रही है। उन्होंने बताया कि मूर्ति बनाने के लिए प्रमुख रूप से बांस, बिचाली, रस्सी, मिट््टी, रंग, नकली बाल और कपड़ों की जरूरत होती है। रुद्र कहते हैं- बीते कुछ महीनों में बांस समेत मूर्ति निर्माण के काम आने वाली अन्य चीजों की कीमत में बहुत तेजी से इजाफा हुआ है। उन्होंने बताया कि बीते साल जिस बांस की कीमत 25 से 30 रुपए हुआ करती थी, आज उसकी कीमत 45 से 60 रुपए तक पहुंच चुकी है।
कालीपद दास नामक मूर्तिकार बताते हैं कि मंदी के कारण दुर्गापूजा आयोजन समितियों का बजट भी काफी कम हो गया है। उनके शब्दों में मंदी के कारण लोग अपने बजट में कटौती कर रहे हैं। जो आयोजक कभी 20 फुट ऊंची मूर्ति बनाने के लिए आर्डर देते थे। इस साल उन्होंने 12 से 15 फीट की मूर्ति का ही आर्डर दिया है। वे कहते हैं कि महंगाई के साथ-साथ मजदूरों की कमी और बीते दो दिनों से हो रही लगातार बारिश ने उनके लिए आग में घी डालने का काम किया है। दास ने बताया कि बीते साल 80 से एक सौ रुपए के बीच देहाड़ी मजदूर मिल जाते थे, लेकिन इस वर्ष रोजाना डेढ़ सौ रुपए देने पर भी मनमाफिक और इस काम के जानकार मजदूर नहीं मिल रहे हैं, लिहाजा वे कई आयोजकों का आर्डर नहीं ले पा रहे हैं।
इसी तरह यंग ब्यावज क्लब के विक्रांत बताते हैं कि महंगाई के कारण मूर्तियों की कीमतों में भारी इजाफा हुआ है। साथ ही पंडालों को तैयार करने में भी ज्यादा खर्च आ रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले साल जिस पंडाल को बनाने में पांच लाख रुपए खर्च हुए थे। इस साल वैसा पंडाल बनाने में आठ लाख रुपए की लागत आ रही है। साथ ही पिछले साल हमने जिस आकार की मूर्ति जिस कीमत पर ली थी। इस बार मूर्तिकार लगभग वैसी मूर्ति के लिए 50 हजार रुपए अतिरिक्त मांग रहे हैं।
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