रजत ने गुस्से में तमतमाते हुए घर में घुसते ही आवाज लगाईं -मम्मी 'सारा' कहाँ है ? मम्मी थोडा घबराई हुई किचन से बाहर आते हुए बोली -''...............क्या हुआ रजत ?.....चिल्ला क्यों रहा है ........सारा तो अपने कमरे में है .तुम दोनों भाई-बहन में क्या चलता रहता है भगवान ही जानें ! उसके पैर में मोच है सचिन अपनी बाइक पर छोड़कर गया है कॉलेज से यहाँ घर ....''रजत मम्मी की बात अनसुनी करते हुए सारा के कमरे की ओर बढ लिया .सारा पलंग पर बैठी हुई अपने पैर को सहला रही थी .रजत ने कमरे में घुसते ही कड़क वाणी में कहा -''.....सारा कितनी बार मना किया है कि किसी भी लड़के की बाइक पर मत बैठा करो !तुम मुझे कॉल कर देती मैं आ जाता तुम्हे लेने .....मेरा कॉलिज दूर ही कितना है तुम्हारे कॉलिज से !आज के बाद यदि तुम्हे किसी लड़के की बाइक पर पीछे बैठा देखा तो अच्छा न होगा !...''यह कहकर आँख दिखाता हुआ रजत सारा के कमरे से चला गया .सारा के गले में एक बात अटकी ही रह गयी -''....भैया केवल आपने ही नहीं देखा था मुझे .....मैंने भी देखा था आपको सागरिका को आपकी बाइक पर पीछे बैठाकर जाते हुए .मैंने जानबूझकर नज़र चुरा ली थी ....मै आपको डिस्टर्ब नहीं करना चाहती थी ......पर जब आप अपनी बहन का किसी और लड़के की बाइक पर बैठना पसंद नहीं करते फिर किसी और की बहन को क्यों बैठा लेते हैं अपनी बाइक पर ?........केवल इसलिए की आप लड़के हो .....आप जो चाहो करो ....सब सही है !''
शिखा कौशिक
सही प्रश्न उठाती सार्थक लघुकथा।
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