* - अब आन्दोलन का कोई मतलब नहीं रहा | जनचेतना फैलने,फ़ैलाने का जितना काम होना था वह हो गया और देश के लिए यह उपलब्धि कुछ कम नहीं है । इसके लिए आप सभी सराहना और बधाई के पात्र हैं। पर आप से अब निवेदन है कि कानूनों पर अधिक जोर न दीजिये और इसे अनुचित प्रतिष्ठा क प्रश्न न बनाइये । सरकार को आपने इतना धूल चटाया ,इतनी गालियाँ दीं हैं । पर सरकार तो आखिर सरकार होती है ! यूँ भी कानूनों से कुछ बनता बिगड़ता नहीं है ।जानकार बताते हैं कि जितने कानून हिंदुस्तान में हैं उतने किसी देश में नहीं हैं | विलायत में तो लिखित संविधान ही नहीं है ।फिर वहां लोकतंत्र चल रहा है । मित्र ! ईमानदारी केवल सरकारी चीज़ नहीं व्यक्तिगत चीज़ भी है , कानून के ही नहीं संस्कृति के भी दायरे में है । देश में भ्रष्टाचार विरोधी भी तमाम कानून पड़े सड़ रहे हैं । अतः ,यदि आपका ही जनलोकपाल पास हो जाय और न्यायालय से भी क्लीन चिट मिल जाय , जो कि यूँ मुश्किल है । और तब भी सरकार एवं क्रमिक सरकारें उसे कुंद करती रहें , तो आप क्या कर लेंगे , कहाँ तक उसके पीछे पढेंगे ? आप सरकार तो हो नहीं जायेंगे ! इसीलिये हम कहतें हैं कि आप लोग चुनाव लड़कर राजनीति में आईये , तब ताक़त आएगी । नहीं आते तो एक सीमा में ही रहना पड़ेगा संवैधानिक व्यवस्था में । इसलिए ,अभी राजनीति की मंशा तो देखिये ! आप लोग बड़े समझदार लोग हैं । सरकार का रुख आप देख ही रहे हैं | विरोधी दलों का रवैया भी सामने है | आपको कानूनविदों ,और अन्य सिविल समाजों का भी समर्थन नहीं प्राप्त हो रहा है | दलित -मुस्लिम अलग हैं सो अलग | बल्कि वे आपके आन्दोलन को संदेह की दृष्टि से देख रहे हैं , और वे आपकी महत्वपूर्ण constituency हैं | ऐसी दशा में कुछ भीड़ के सहारे आप कब तक आन्दोलन खींचेंगे ? आपकी मांगों में नैतिकता की पुकार तो परिलक्षित ज़रूर है ,पर उनका आधार -व्यवहार लोकतंत्र के नीव पर नहीं खड़ा हो पा रहा है , बल्कि कुछ लोग , जाने माने लोग जैसे सोमनाथ चटर्जी आदि उसे लोकतंत्र विरोधी तक मानते हैं | अर्थात, कुल मिलाकर आपको देश का लोकतान्त्रिक -नैतिक समर्थन प्राप्त नहीं है | तो फिर किस आधार पर आप हवा में तलवार चलाएंगे ? यह तो अब अनैतिक ,गैरकानूनी हो गया , एक तानाशाही पूर्ण रवैया | क्या ये लोग अब अन्ना की जान लेके रहेंगे जो स्वयं उसे हथेली पर लिए अनशन पर बैठे हैं ? अन्ना की जान की ज़िम्मेदारी अब सचमुच अन्ना के समर्थकों पर आन पड़ी है | हम भी अपील ही कर सकते हैं वह कर रहे है ,पहले भी किया है | क्या वे इसे समय से समझें और निभाएंगे ? ? अलबत्ता हमारे समझाने में थोड़ी कडाई होती है पर वह सटीक ,सुचिंतित और तार्किक होता है ,समझने - मनन करने योग्य । अन्ना का अनशन समाप्त करवाइए , कृपया । ##
* - मैंने अरविन्द जी को लोगों से एक हफ्ते की छुट्टी लेकर सड़क पर आह्वान करते सुना था । अब तो एक हफ्ता पूरा हो गया । उन्हें वापस काम पर जाना होगा | अब तो आन्दोलन वापस ले लें । वरना आगे जो लोग शामिल होंगे वे आपके समर्थक नहीं होंगे , बल्कि वे ठेलुए होंगे जिनके पास और कोई काम नहीं है | या फिर वे जिनके पास खूब अतिरिक्त पैसा है ,और उन्हें काम करने की कोई ज़रुरत नहीं है । ##
* - मैं यह भी सोच रहा था कि अन्ना भूख हड़ताल पर हैं ? यहाँ तो हर आदमी कह रहा है कि वह अन्ना है ,और वह तो खूब मजे से ,भरपेट खा -पी रहा है । ##
* - मैं यह भी सोच रहा था कि अन्ना के आन्दोलन का उद्देश्य सचमुच जन लोकपाल बिल पास करना है ,या केवल सरकार को रगड़ना और अपनी हेंकड़ी कायम करना है ? भ्रष्टाचार समाप्त तो उनके कार्यक्रमों से नहीं होना है ,यह तो सबको साफ़ है | यदि बिल ही पास कराना था तो क्या वह पूरे देश में से एक भी सांसद समझा -बुझा कर नहीं तैयार नहीं कर सकते थे जो उनका बिल प्रायवेट बिल के तौर पर संसद में रखता ? किसी पार्टी को भी वे इसके लिए सहमत कर सकते थे । ऐसा उन्होंने कुछ नहीं किया , इस से उनके इरादों पर संदेह होता है । क्योंकि राजनेति में होना कोई आश्चर्य जनक नहीं होता कि '' कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना "| और अन्न टीम कोई दूध की धुली या पवित्र गाय हो , यह भी मन ना थोड़ा अंधविश्वास होगा | देखिये तो , कि वे किस तरह सबको धता बताते हुए फ़ौरन केंद्र सरकार पर कूद पड़े | और एम पी जन उन्हें तब याद आये जब सरकार ने उन्हें निराश कर दिया ,और वह भी ये उनका घर घेर कर जबरदस्ती समर्थन लेने के लिए । कुछ दाल में काला ढूँढने की बात है । ##
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