शंकर जालान
आजकल उत्तर बंगाल के चाय उद्योग पर मजदूरी आंदोलन के चलते संकट के बादल मंडराने लगे हैं। विभिन्न चाय श्रमिकों के संगठनों के आंदोलन के चलते बागानों के मालिक भारी दबाव में हैं। आंदोलन का नेतृत्व दे रहे को-आर्डिनेशन कमेटी के संयोजक चित्त दे के मुताबिक उत्तर बंगाल के तराइ, डुवार्स और दार्जिलिंग के पार्वतीय क्षेत्र में बड़े चाय बागानों की संख्या 2788 है। इनके अलावा कूचबिहार, उत्तर दिनाजपुर, दक्षिण दिनाजपुर जिलों में लघु चाय बागानों की अच्छी खासी तादाद है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में मजदूरों को मिल रही 67 रुपए की दैनिक मजदूरी महंगाई को देखते हुए नगण्य है। हमने इसे 165 रुपए करने की मांग की है। लेकिन मालिक अपनी जिद पर अड़े हुए हैं। सीटू नेता जियाउर आलम ने कहा कि मालिक पक्ष मजदूरों का शोषण कर करोड़ों रुपए का मुनाफा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार भी इस तरफ ध्यान नहीं दे रही है, जबकि उसे इस मसले पर गंभीरता से सोचना चाहिए।
मालूम हो कि तराई-डुवार्स में लगभग दो लाख 22 हजार चाय श्रमिक प्रत्यक्ष रूप से चाय उद्योग से जुड़े हैं। इस बीच, मजदूर नेता अलोक चक्रवर्ती ने कहा है कि मालिक पक्ष के साथ मजदूरी को लेकर श्रमिक संगठनों की कई बार बैठकें हुई है, लेकिन कोई सार्थक नतीजा नहीं निकला। यदि मजदूरों की मांग नहीं मानी गई तो हम वृहद आंदोलन करेंगे। इस प्रसंग में चाय बागानों के संगठन के संयोजक अमितांशु चक्रवर्ती ने कहा कि दरअसल लोग केवल 67 रुपए मजदूरी को ही देख रहे हैं। इस राशि के अलावा मजदूरों को जो सुविधाएं दी रही हैं उसे नजरअंदाज किया जाता है। मिसाल के तौर पर मजदूरों को आवास व रियायती मूल्य पर राशन दिया जा रहा है। उसे मजदूरी में शामिल नहीं किया जाता। इनके साथ ही मजदूरों के नि:शुल्क इलाज की व्यवस्था की गई है। कुल मिलाकर 135 रुपए का हिसाब आता है। जब मालिक पक्ष पर करोड़ों रुपए का मुनाफा करने का आरोप लगता है तो नेता लोग भूल जाते हैं कि महंगाई की मार जितनी आम जनता को झेलनी पड़ रही है उतनी ही चाय बागान मालिकों को भी। महंगाई के चलते उत्पादन की लागत दोगुनी हो गई है। इसलिए हमने तीन वर्ष में आठ रुपए की दर से मजदूरी बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है। फिलहाल हड़ताल की वजह से हमें भारी नुकसान उठाना पड़ा है। एक चाय बागान में प्रतिदिन आठ हजार से दस हजार किलो चायपत्ती का उत्पादन होता है। इसका मूल्य नौ से दस लाख रुपए होता है। डुवार्स में 154, तराई में 46 और दार्जिलिंग में 78 वृहद चाय बागान हैं। हड़ताल के कारण चाय बागानों के मालिकों को करोड़ों का चूना लगा है।
उनका तर्क है कि चाय श्रमिकों की मजदूरी एक ही बार में अधिक बढ़ाना उद्योग के लिए संभव नहीं है। उत्तर बंगाल में लघु चाय बागान करीब तीस हजार हैं, जिनमें प्रतिदिन 91 मिलियन किलो का उत्पादन होता है। करीब एक लाख एकड़ जमीन में फैले इन लघु चाय बागानों में प्रति वर्ष नौ करोड़ दस लाख किलो चायपत्ती का उत्पादन होता है। आंदोलन के प्रसंग में मजदूर संगठन से जुड़े एक अन्य नेता सुकरा मुंडा ने कहा कि 250 रुपए मजदूरी की मांग नहीं माने जाने पर हम वृहद आंदोलन के लिए तैयार हैं। यदि मालिक पक्ष को हड़ताल से नुकसान होता है तो हम इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं।
उनका कहा कि मजदूरों के साथ हुए समझौते के मुताबिक न्यूनतम मजदूरी के तहत रियायती दर पर राशन, पेयजल की आपूर्ति, स्वास्थ्य सेवा, जलावन और इन सब का रखरखाव भी शामिल है, लेकिन जमीनी स्तर पर देखा जाता है कि यह व्यवस्था भी इतनी लचर है, जिसे शब्दों में बांधना मुश्किल है। पंद्रह दिनों की दिहाड़ी में से श्रमिकों को 67 रुपए की दर से केवल 12 रोज की ही मजदूरी दी जाती है। यह राशि 804 रुपए होती है। अब इसी राशि में मजदूर को अपना व अपनी बीवी व बच्चों का पेट पालने से लेकर उनकी शिक्षा पर खर्च करना पड़ता है। इसी में उसे दवा का खर्च भी उठाना पड़ता है, चूंकि बागान के अस्पताल में दवाएं बहुत कम ही रहती हैं। ज्यादातर दवाएं बाहर से ही खरीदनी पड़ती है।
इस दौर में मजूदरों का केवल एक ही सहारा होता है जब बागान में पत्ती की भरमार होती है। उस दौर में चायपत्ती तोड़ने के लिए उन्हें अतिरिक्त पैसे मिलते हैं। इस अतिरिक्त कार्य के लिए भी मजदूरी निर्धारित है। प्रथम छह किलो तक एक रुपए प्रति किलो और उससे अधिक तोड़ने पर डेढ़ रुपए प्रति किलो की दर से मजदूरी मिलती है। यह कार्य वर्ष में तीन से चार महीने ही रहता है, बाकी महीनों में मजदूर गृहस्थी की गाड़ी खींचने के लिए अपना बोनस, ग्रैच्यूटी, पीएफ तक महाजनों के पास गिरवी रख देते हैं। मजदूर की पूरी जिंदगी कर्ज में डूबी रहती है। इस बीच यदि वह किसी गंभीर रोग का शिकार हो जाता है तो उसके लिए धीमी मौत का इंतजार करने के सिवा अन्य कोई विकल्प नहीं रह जाता। उन्होंने आरोप लगाया कि जिस राशन की दुहाई प्रबंधन देता है उसमें भी कई तरह की खामियां हैं। बागान श्रमिकों को 40 पैसे प्रति किलो की दर से चावल, गेहूं या आटा दिया जाता है। एक मजदूर को सप्ताह में एक किलो चावल, दो किलो 220 ग्राम गेहूं या आटा और पत्नी के लिए एक किलो चावल, एक किलो 440 ग्राम आटा, बच्चों के लिए 500 ग्राम चावल और 720 ग्राम आटा मिलता है। यह व्यवस्था भी बहुत से बागानों से में लचर है। आए दिन राशन को लेकर मजदूरों और प्रबंधन के बीच विवाद होता रहता है। पेयजल की आपूर्ति व्यवस्था भी सही नहीं है। कई जगह पाइप साठ से सत्तर साल पुराने हो चुके हैं। रोज पाइप की मरम्मत होती है और रोज टूटते हैं। बागानों में आज भी कच्चे कुएं का पानी प्रयोग में लाया जाता है। कहीं तो नदियों का पानी परिष्कृत किए बिना सीधे आवासों में पहुंचाया जाता है। मजदूरों की आवासीय सुविधा का हाल भी बेहाल है। एक आवासीय घर नियमानुसार 350 वर्ग फीट का होना चाहिए। हालांकि कई जगह ये घर 21 बटा 10 फीट के ही हैं। जबकि बहुत से मजदूरों को यह भी नसीब नहीं है। आवास को लेकर बागान में विवाद कोई नई बात नहीं है। घरों के टूटी हुई छत, टूटी हुई खिड़कियां ही सबकुछ बयान कर देती हैं। मजदूरों को आश्वासन की घुट्टी पिला दी जाती है।
शशि थापा नामक एक महिला मजदूर ने शुक्रवार को बताया कि कम मजदूरी की समस्या से पहले से जूझ रहे चाय मजदूरों के सामने एक नया संकट आ गया है। वह है भविष्य में छंटनी का संकट। इसकी मुख्य वजह है वह मशीन जिससे चायपत्तियां तोड़ने का काम लिया जा रहा है। आम तौर पर श्रमिकों और श्रमिक संगठन के नेताओं का मानना है कि इस मशीन का उपयोग उत्तर बंगाल के इस सबसे वृहद उद्योग मजदूरों की छंटनी के लिए किया जा सकता है। हालांकि चाय बागान मालिक इस परिवर्तन को सकारात्मक नजरिए से देखते हैं।
मालिकों का कहना है कि मशीन का उपयोग श्रम दक्षता को बढ़ाने के लिए किया जा रहा है। श्रमिक छंटनी की आशंका बेबुनियाद है। ज्ञात हो कि एक श्रमिक दिन में जितनी पत्तियां तोड़ते हैं उससे यह मशीन बहुत की कम समय में दोगुणी चायपत्ती तोड़ने में सक्षम है। 18 श्रमिक संगठनों की को-आर्डिनेशन कमेटी के संयोजक चित्त दे का कहना है कि हालांकि शुरू में ऐसा लगता था कि यह मशीन श्रमिक की मदद कर रही है लेकिन अब मजदूरों को इससे नुकसान की आशंका सताने लगी है। इसका कुफल श्रमिक छंटनी के रूप में हमारे सामने आ सकता है। खासतौर से महिला श्रमिकों की शिकायत है कि उन्हें इस मशीन के जरिए काम करने में असुविधा हो रही है।
No comments:
Post a Comment