सर ! ..फीस तो सिर्फ पिच्चासी रूपये हैं … मैंने तो आपको पांच सौ रूपये का नोट दिया है … बाकी रूपये मुझे माँ को वापस करने हैं … प्लीज़ सर, वो रूपये मेरे लिए जरूरी हैं … पर मास्टर साहब जी थे कि कोई जवाब नहीं दे रहे थे और कॉपी चेक करने में तल्लीन थे … सुधीर अपने मास्टर साहब जी से विनती कर गिङगिङा रहा था, लेकिन गुरु जी के कानों में जूँ भी ना रेंक रही थी …. थकहार कर सुधीर स्टाफ रूम से बाहर निकला जहाँ उसके अन्य मित्र सुएब, रतन, देबोषीश,प्रांजल खड़े इन्तजार कर रहे थे … सुधीर को देख कर उनकी बांछे खिल आई ........
अमृतरस ब्लॉग से
मास्टर साहब - कहानी - डॉ नूतन डिमरी गैरोला
फोटो नेट से
katu satya.......
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