अभी - अभी - वि.वि. के निकट स्थापित मिश्रा जी के ढाबे से खाना खा के लौटा हुँ । इस ढाबे को मैं प्यार से "होटल मिश्रा इण्टरनेशनल" कहता हूँ । विगत कुछ वर्षों में वि.वि. के आस-पास के वातावरण को समझने में इन्ही मिश्रा जी का बहुत योगदान रहा है । यहाँ की समाजिक व्यवस्था को समझने में भी इनका सहयोग रहा है। आज इनकी व्यथा उमड़ पड़ी कि हमारा शासक वर्ग निरंकुश होता जा रहा है । "हर पाँच साल बाद सांसद जी / विधायक जी का दो बीगहे का मकान बन जाता है ।" गोरे के शासन से ज्यादा खतरनाक हैं ये काले । इनको हम डण्डा लेकर भगा भी नहीं सकते ।
मेरी टिपण्णी : यदि आजादी के 64 साल बाद जनता ये बात करना शुरू कर रही है तो शायद अगले दस - बीस सालों में हमारे माननीयों का वही हष्र हो जो कि गद्दाफी साहब का हुआ। सड़क पर सरेराह गोली मार दी जायेगी । परिवर्तन की बयार बहनी शुरू हो गयी है । जो हवा का रुख नहीं पहचानेंगे वो मिट जायेंगें ।
परिवर्तन : 20 - 20 Chetan Bhagat के उपन्यास का सबब भी कुछ इसी तर्ज पर है ।
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