दीपज्योती नमोस्तुते
जीवन -
क्षण भंगुर है ,
नश्वर है,
अल्प है,
मगर-
दीये की तरह
सार्थक जीयें तो ,
अमृत है,
ज्योतिपुंज है.
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दीप -
तुम खुद के अस्तित्व को
तिल -तिल जला
जग को रोशन करते हो ;
मगर-
प्रतिफल में क्या पाते हो ?
दीप ने कहा-
अँधेरे की दया तले
जीना अर्थहिन है ,
बेमकसद है.
अँधेरे से जंग,
अर्थहिन जीने से बेहतर है .
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नन्हें दीप -
तमस से टकराना,
तेरे बूते से बाहर है .
दीप ने कहा -
अँधेरे की गहनता से डरना,
मेरी फितरत नहीं है .
तमस से जंग खेलने में ,
ताकत की नहीं,
जज्बे की जरुरत है .
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भ्रष्ट नेता ने
दीप से पूछा-
तुम भी काला खाते हो,
काला उगलते हो .
मैं भी काला खाता हूँ,
काला उगलता हूँ .
फिर भी तुम पूजे जाते हो,
और
मैं जूते खाता हूँ .
दीप ने कहा -
मैं जनहित में ऐसा करता हूँ
तुम जन अहित में करते हो .
इसीलिए तुम जग में जूते खाते हो .
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