जनरल मोहनसिंह और ज़नरल फूज़िवारा
बैंकाक सम्मेलन के प्रस्तावों पर जोर देने के कारणजनरल मोहनसिंह और मेज़र ओगावा में काफी वाद-विवाद हुआ।मोहनसिंह ने यहां तक कहा कि ज़ापान ने हमें धोखा दिया है।वह साम्राज्यवादी तथा रंगभेद करने वाली शक्तियों के रूप में कार्य कर रहा है।यदि ज़ापान ने भारत में ब्रिटेन की जगह लेने की कोशिश की तो हम उसके विरूद्ध भी लडेंगे।जनरल मोहनसिंह का कर्नल इवाकुरू से भी तीव्र वाद-विवाद हुआ।जनरल मोहनसिंह ने स्पष्ट कहा कि ज़ापान ने चीन और मंचूरिया में साम्राज़्यवादी नीति अपनायी है।भारतीयों ने ज़ापान सरकार को पत्र लिखकर भी अपनी मांगें रखीं पर अंत तक ज़ापान ने भारत की स्वाधीनता,आई० एन०ए० की भूमिका तथा भारतीयों की संपत्तिआदि से संबंधित मांगों और बैंकाक सम्मेलन में पारित प्रस्तावों को स्वीकार नहीं किया।
ज़ापानी सैनिकों ने ८दिसंबर १९४२ को आई०एन०ए० के कर्नल गिल को गिरफ्तार कर लिया।उन पर ब्रिटिश गुप्तचर होने का अभियोग लगाया गया।इसके विरोध में कर्नल मेनन,कर्नल गिलानी,और जनरल मोहनसिंह ने कौंसिो आफ एक्शन से त्यागपत्र दे दिया।अध्यक्ष रासबिहारी बोस ने उनके इस्तीफे मंज़ूर कर लिये।जनरल मोहनसिंह ने १४ दिसंबर १९४२ को कर्नल इवाकुरू को पत्र लिखा कि वर्तमान परिस्थितियों में आई०एन०ए० अपनी मातृभूमि की आज़ादी के लिऐ कोई लाभप्रद कार्य नहीं कर सकता अतएव मैं उसे भंग करता हूं।२१दिसंबर १९४२ को मोहनसिंह ने आई०एन०ए० को विधिवत भंग कर दिया।इससे ज़ापानी बहुत नाराज़ हुए।ज़ापान की सेना के असैनिक सलाहकार सेंडा ने मोहनसिंह से कहा- " ज़ापानी बहुत ईमानदार होते हैंऔर वे अपने वचन का पालन करते हैं ।वे कोई बात कागज़ के टुकडे पर लिखने और फिर उस पर अमल न करने में विश्वास नहीं करते आप ज़ापान के निर्देशन में काम करने को तैयार हैं या नहीं।"
ज़नरल मोहनसिंह ने उत्तर दिया---"भारत की स्वतंत्रता पाना हमारा काम है ,ज़ापान का नहीं।विश्व की कोई भी शक्ति या धमकी या भय मुझे ज़ापानियों के निर्देशन में काम करने के लिए विवश नहीं कर सकता।"
इसके बाद रासबिहारी बोस ने जनरल मोहनसिंह को कौंसिल आफ एक्शन से बर्खास्तगी का पत्र सौंप दिया।ज़नरल मोहनसिंह ने कहा -"बोस महोदय मैं आपकी मज़बूरी समझता हूं।मैं आपके निर्णय को सहर्ष स्वीकार भी करता हूं।कर्नल इवाकुरू ने मोहनसिंह का उत्तर सुनने के बाद कहा कि ज़ापानी पक्ष अध्यक्ष रासबिहारी बोस के निर्णय से सहमत है,ज़ापानी आपको फांसी नहीं देंगे पर अब आपका आई०एन०ए० से कोई संबंध नहीं रहेगा।
इस वार्ता के बाद को मोहनसिंह जनरल फूज़ीवारा के घर ले जाया गया।
वहां मोहनसिंह से पूंछा गया कि वे बतायें कि ज़ापानियोंमसे किन शर्तों पर सहयोग करेंगे।इस पर मोहनसिंह ने कहा कि मेरा पहला प्रस्ताव है कि सुभाष को ज़र्मनी से ज़ापान लाया जाये।सुभाष को ज़ापान लाकर ज़ापानी उन्हें अपनी ईमानदारी का विश्वास दिलायें हम सुभाष पर विश्वास करने को तैयार हैं ज़ापानियों पर नहीं।मोहनसिंह ने यह भी कहा कि सुभाष के अतिरिक्त अन्य कोई व्यक्ति इस आंदोलन पर नियंत्रण नहीं कर सकता।गुर्गों का कभी सम्मान नहीं होता ,यदि सुभाष को नहीं लाया ज़ा सकता तो आई० एन०ए० की संख्या बढाना ही एकमात्र विकल्प है।यह संख्या कम से कम तीन लाख होनी चाहिये।"
ज़ापानी सैनिकों ने ८दिसंबर १९४२ को आई०एन०ए० के कर्नल गिल को गिरफ्तार कर लिया।उन पर ब्रिटिश गुप्तचर होने का अभियोग लगाया गया।इसके विरोध में कर्नल मेनन,कर्नल गिलानी,और जनरल मोहनसिंह ने कौंसिो आफ एक्शन से त्यागपत्र दे दिया।अध्यक्ष रासबिहारी बोस ने उनके इस्तीफे मंज़ूर कर लिये।जनरल मोहनसिंह ने १४ दिसंबर १९४२ को कर्नल इवाकुरू को पत्र लिखा कि वर्तमान परिस्थितियों में आई०एन०ए० अपनी मातृभूमि की आज़ादी के लिऐ कोई लाभप्रद कार्य नहीं कर सकता अतएव मैं उसे भंग करता हूं।२१दिसंबर १९४२ को मोहनसिंह ने आई०एन०ए० को विधिवत भंग कर दिया।इससे ज़ापानी बहुत नाराज़ हुए।ज़ापान की सेना के असैनिक सलाहकार सेंडा ने मोहनसिंह से कहा- " ज़ापानी बहुत ईमानदार होते हैंऔर वे अपने वचन का पालन करते हैं ।वे कोई बात कागज़ के टुकडे पर लिखने और फिर उस पर अमल न करने में विश्वास नहीं करते आप ज़ापान के निर्देशन में काम करने को तैयार हैं या नहीं।"
ज़नरल मोहनसिंह ने उत्तर दिया---"भारत की स्वतंत्रता पाना हमारा काम है ,ज़ापान का नहीं।विश्व की कोई भी शक्ति या धमकी या भय मुझे ज़ापानियों के निर्देशन में काम करने के लिए विवश नहीं कर सकता।"
इसके बाद रासबिहारी बोस ने जनरल मोहनसिंह को कौंसिल आफ एक्शन से बर्खास्तगी का पत्र सौंप दिया।ज़नरल मोहनसिंह ने कहा -"बोस महोदय मैं आपकी मज़बूरी समझता हूं।मैं आपके निर्णय को सहर्ष स्वीकार भी करता हूं।कर्नल इवाकुरू ने मोहनसिंह का उत्तर सुनने के बाद कहा कि ज़ापानी पक्ष अध्यक्ष रासबिहारी बोस के निर्णय से सहमत है,ज़ापानी आपको फांसी नहीं देंगे पर अब आपका आई०एन०ए० से कोई संबंध नहीं रहेगा।
इस वार्ता के बाद को मोहनसिंह जनरल फूज़ीवारा के घर ले जाया गया।
वहां मोहनसिंह से पूंछा गया कि वे बतायें कि ज़ापानियोंमसे किन शर्तों पर सहयोग करेंगे।इस पर मोहनसिंह ने कहा कि मेरा पहला प्रस्ताव है कि सुभाष को ज़र्मनी से ज़ापान लाया जाये।सुभाष को ज़ापान लाकर ज़ापानी उन्हें अपनी ईमानदारी का विश्वास दिलायें हम सुभाष पर विश्वास करने को तैयार हैं ज़ापानियों पर नहीं।मोहनसिंह ने यह भी कहा कि सुभाष के अतिरिक्त अन्य कोई व्यक्ति इस आंदोलन पर नियंत्रण नहीं कर सकता।गुर्गों का कभी सम्मान नहीं होता ,यदि सुभाष को नहीं लाया ज़ा सकता तो आई० एन०ए० की संख्या बढाना ही एकमात्र विकल्प है।यह संख्या कम से कम तीन लाख होनी चाहिये।"
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