8.10.11


सोच रहा हूं,दुनिया की है कैसी कैसी रीत गजब
बेखुद और दीवाना करती, कैसी कैसी प्रीत गजब
धरती पर ना पांव टिकें और अम्बर लगता मुट्ठी में
प्रियतम के लब गाते हैं जब मीठे-मीठे गीत गजब
कुंवर प्रीतम

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