शंकर जालान
कहते हैं धर्म व आध्यात्म बिल्कुल ही विज्ञान और गणित से इतर विषय हैं। बावजूद इसके कुछ प्रतिभाएं ऐसी होती है, जो इन दोनों क्षेत्रों में समान रूप से उपलब्धि हासिल करती हैं। रामकृष्ण मिशन द्वारा संचालित विवेकानंद यूनिवर्सिटी के साधु महान महाराज ऐसी ही प्रतिभाओं में से एक हैं, जिन्हें हाल ही में गणित के लिए देश के सबसे बड़े शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
सीधे-साधे और मिलनसार स्वभाव के साधु महान महाराज का वास्तविक नाम विद्यानाथानंद है। मीडिया, पत्रकार और निज प्रचार से दूर रहने वाले साधु महान महाराज बीते दो दशक से हाइपरबेलिक ज्यामिती और टोपोलॉजी पर काम कर रहे हैं। ४२ वर्षीय महान महाराज की खासियत यह है अंग्रेजी, हिंदी व बांग्ला भाषाओं पर उनका समान अधिकार। वे बिना हिचके फर्राटेदार तरीके से इन तीनों भाषाओं में बात कर सकते हैं।
पुरस्कार मिलने पर कैसा महसूस हो रहा है महाराजजी ? इसके जवाब में उन्होंने शुक्रवार से कहा कि सम्मान मिला यह अच्छी बात है। इससे उत्साह में वृद्धि होती है, लेकिन मुझे इस बात का भी ध्यान रखना है कि पुरस्कार मुझे नहीं मेरी विद्या को मिला है। बातचीत में उन्होंने कहा कि जो लोग पुरस्कार मिलने के बाद ऐसा सोचते हैं कि यह उनका निज का सम्मान है उनकी सोच पर मुझे तरस आता है।
अतीत के बारे में पूछने पर महाराजजी ने कहा मैं वतर्मान में जी रहा हूं और भविष्य की सोच रहा हू। इसलिए भूतकाल यानी अतीत मेरे लिए कोई विशेष मायने नहीं रखता। मैं अतीत के बारे में केवल यह कह सकता हूं कि मेरा जन्म ५ अप्रैल १९६८ को हुआ था। उनके साथियों ने बताया कि स्वामी विद्यानाथानंद ने सेंट जेवियर्स से स्कूली शिक्षा ग्रहण की और कानपुर स्थित आईआईटी से इंजीनियरिंग की पढाई। तत्पश्चात गणित की तरफ रूझान बढ़ने पर उन्होंने आईआईटी (कोनपुर) से पांच वर्षीय एमएससी का कोर्स किया।
एमएससी करने के बाद महान महाराज पढाने के लिए अमेरिका के ब्रेकले स्थित कैलिफोनिया यूनिवर्सिटी चले गए। वहां पर वे गणित के उच्च विद्धानों के संपर्क में आए। कैलिफोनिया यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर साधु महाराज भारत लौट आए। स्वदेश लौटकर वे चैन्नई स्थित इंस्टीट्यूट आफ मैथेमेटिकल साइसेंस में कुछ दिनों तक रिसर्च फेलो के पद पर रहे, लेकिन यह उन्हें रास नहीं आया। क्योंकि अमेरिका के ब्रेकले में रहने के दौरान ही वे वहां के रामकृष्ण मठ वेदांत सोसाइटी के संपर्क मं आए और केंद्र के प्रभारी स्वामी अपरानंद से उनकी मुलाकात हुई। स्वामी अपरानंद ने बातचीत के क्रम में साधु महान महाराज को स्वामी विवेकानंद व उनके गुरू श्री रामकृष्ण परमहंस के आदर्शों, शिक्षा, सेवा आदि के बारे में बताया। परमहंस व विवेकानंद के बारे में जानने के बाद उनका झुकाव आध्यात्म की तरफ हुआ। ब्रेकले से आने के बाद वे न केवल मठवासी बल्कि संन्यासी भी हो गए।
विद्यानाथानंद से महान महाराज बनने पर उनकी नियुक्ति रामकृष्ण मिशन विवेकानंद कॉलेज (चैन्नई) और फिर रामकृष्ण मिशन विद्या मंदिर (बेलूरमठ) में कर दी गई। करीब ६ साल पहले यानी २००५ में रामकृष्ण मिशन विवेकानंद यूनिवर्सिटी शुरू होने के बाद वे इससे जुड़ गए। महान महाराज के प्रयास से ही २००८ में यूनिवर्सिटी में स्कूल आफ मैथेमेटिकल साइंसेस की स्थापना हुई।
साधु महान महाराज के करीबियों के मुताबिक महान महाराज को मिला शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार उनकी वर्षों की सेवा व साधना का प्रतिफल है, जो उन्होंने चुपचाप इस क्षेत्र में किया है।
संस्थान से जुड़े और महान महाराज को नजदीक से जानने वालों ने बताया कि उनकी कई प्रकाशित कृतियां हैं, जिसमें उनके ज्ञान, शोध, लगन व सेवा भाव का परिचय मिलता है। १९९४ से ही वे देश-विदेश की कई ख्यातिप्राप्त शिक्षण व शोध संस्थानों की ओर से विश्वविद्यालयों में व्याख्यान देने के लिए बुलाते जाते रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल के किसी व्यक्ति को पहली बार शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से नवाजा गया है। यही नहीं पहली बार किसी साधु ने वैज्ञानिक के रूप में यह सम्मान हासिल किया है।
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