पहले कही थी हमने भी, उसूल की ग़ज़ल
अब हो गई है ज़िन्दगी, फ़िज़ूल की ग़ज़ल।
ये आँधियों का दौर है, तूफ़ान का चलन
चारों तरफ दिखे है हमे, धूल की ग़ज़ल।
मंज़र तो देखिये ज़रा, कितना हसीन है
डाली पे मुस्करा रही है, फूल की ग़ज़ल।
उस ज़ुल्फ़ के गुलाब से, कुछ दूर ही रहो
उस में भी छुपी होगी कोई,शूल की ग़ज़ल।
सुनते ही चार शेर, निखर जाएगा नशा
सुनियेगा ज़रा गौर से, मक़बूल की ग़ज़ल।
मक़बूल
बढि़या गजल।
ReplyDeleteउस ज़ुल्फ़ के गुलाब से, कुछ दूर ही रहो
ReplyDeleteउस में भी छुपी होगी कोई,शूल की ग़ज़ल।
Very Nice Said.Thanks 4 sharing