saabhar:- Dainik Jagran
12.12.11
कपिल सिब्बल की पहल संदेह और सवाल
इसमें संदेह नहीं कि सोशल नेटवर्किग साइट्स पर बहुत कुछ ऐसा उपलब्ध है जो आपत्तिजनक और अरुचिकर होने के साथ-साथ लोगों की भावनाओं को आहत करने वाला भी है, लेकिन उसे रोकने की कपिल सिब्बल की पहल संदेह और सवाल, दोनों खड़े करती है। दूरसंचार मंत्री केवल यही नहीं चाहते कि आपत्तिजनक सामग्री सोशल साइट्स पर चस्पा न होने पाए, बल्कि यह भी चाह रहे हैं कि संबंधित इंटरनेट कंपनियां कर्मचारियों के जरिये ऐसी सामग्री की निगरानी रखें। इंटरनेट की सामान्य समझ रखने वाले भी यह बता सकते हैं कि यह असंभव सा काम है और फिर यदि इसकी निगरानी शुरू हो जाएगी कि सोशल साइट्स पर कौन क्या लिख रहा है तो फिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का क्या होगा? इंटरनेट आधारित ऐसे प्लेटफॉर्म पर कौन जाएगा जहां कोई उसके विचारों पर कैंची चलाने के लिए बैठा हो? इससे भी महत्वपूर्ण सवाल यह है कि आखिर इसे कौन तय करेगा कि क्या आपत्तिजनक है और क्या नहीं? जो कथन या चित्र किसी के लिए आपत्तिजनक हो वही दूसरों के लिए हास-परिहास का विषय हो सकता है। हर सुविधा और तकनीक खूबियों के साथ खामियों से भी लैस होती है। खामियों को खत्म करने के नाम पर ऐसे किसी कदम को जायज नहीं कहा जा सकता जिससे उसकी खूबी और खासियत ही नष्ट हो जाए। इंटरनेट ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ-साथ संचार-संपर्क को एक नया आयाम दिया है और सारी दुनिया उसके प्रभाव से परिचित है। इंटरनेट की दुनिया असीमित है और उसके जरिये लोग खुलकर अपने विचार रखते हैं। इस स्वतंत्रता पर रोक लगाने का अर्थ है लोगों को बोलने से ही रोकने की कोशिश करना। नि:संदेह कुछ लोग इस स्वतंत्रता का खुलकर दुरुपयोग भी करते हैं और इसके चलते कभी-कभार समस्याएं भी पैदा होती हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उसके लिए निगरानी तंत्र खड़ा करने की कोशिश की जाए। एक तो यह संभव नहीं और दूसरे इससे दुनिया मेंगलत संदेश जाएगा। सच तो यह है कि कपिल सिब्बल के तीखे तेवरों के चलते दुनिया को गलत संदेश चला भी गया है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया का एक वर्ग भारत को चीन की राह पर जाता हुआ देख रहा है। कपिल सिब्बल इससे अपरिचित नहीं हो सकते कि सोशल साइट्स पर जो आपत्तिजनक सामग्री चस्पा होती है उसके खिलाफ प्रतिवाद भी किया जा सकता है और उसे हटाने की प्रणाली भी मौजूद है। इस प्रणाली को और प्रभावी बनाने की अपेक्षा तो की जा सकती है, लेकिन यह ध्यान रखने की जरूरत है कि उसकी भी एक सीमा होगी। वर्तमान में ऐसी तकनीक किसी के पास नहीं और शायद हो भी नहीं सकती जो कटाक्ष और व्यंग्य की भाषा समझ सके। यदि दूरसंचार मंत्री को यह लगता है कि सोशल साइट्स पर अश्लील और आपत्तिजनक सामग्री बढ़ रही है तो फिर उन्हें इसका अधिकार पहले से ही प्राप्त है कि वह साइबर कानूनों में संशोधन-परिवर्तन कर सकें। जो लोग सोशल साइट्स का इस्तेमाल विद्वेष फैलाने अथवा भावनाएं भड़काने के लिए करते हैं उनके खिलाफ सख्ती बरतने में कोई हर्ज नहीं, लेकिन ऐसी अपेक्षा का कोई मतलब नहीं कि अपराध होने के पहले ही अपराध करने वाले को रोका-पकड़ा जा सके। इस पर आश्चर्य नहीं कि कपिल सिब्बल की इस पहल के पीछे यह माना जा रहा है कि वह सोशल साइट्स के जरिए हो रही सरकार की आलोचना से क्षुब्ध हैं। उनका क्षुब्ध होना समझ आता है, लेकिन इस आलोचना से बचने के उनके तौर-तरीके सही नहीं।
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