विरोध के स्वर उठ रहें हैं हैं मगर बहुत धीमे-धीमे
जैसी कहीं चाय बनायी जा रही हो पीने के लिए
शायद हम यह नहीं जान पाते कभी कि
थोड़ी कसमसाहट भी जरूरी होती है जीने के लिए
उदासियों के शाश्वत माहौल में
चंद लोगों की खुशियों का रंग हावी है
ये चंद लोग समा गए है दुनिया की सारी पत्र-पत्रिकाओं में
और बाकी के बेनूर लोगों पर बेनूरी भी रोया करती है
फिर भी रात के अंधेरों में रौशनी की चकाचौंध
सिर्फ चंद दरवाजों पे ही दस्तक देती है
ये चंद लोग कौन हैं,ब-जाहिर है चारों तरफ
फिर भी जाने कैसे कब और क्यूँ धरती के
अरबों जीते-जागते लोग समा गए हैं
इन चंद लोगों की सुर्ख़ियों की कब्र में
ये कब्रें मातम कर रहीं हैं हर बखत
ठीक वैसे ही
जैसे खुशियों की बरसात हो रही है चंद आंगनों तलक
आदमी सभ्य हो रहा है,आदमी सभ्य हो गया है
आदमी चाँद पर जा चुका है
आदमी मंगल पर जाने वाला है
आदमी ने खोज लिए कई नए ग्रह रहने के लिए
मगर आदमी अब तक नहीं बना पाया है
धरती को जीने लायक इंसानियत से भरा-पूरा ग्रह
अब वो नए ग्रहों का क्या करेगा
कल १७-१२-२०११ को आपकी कोई पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteओ ईश्वर !!क्या तुम यह बता सकते हो...!!??
ReplyDeleteऔर ईश्वर खामोश हो गया......!!