यहां हर रात उजाले से विदा लेती है,
हर इक राह मुसाफिर से जुदा होती है।
सुबह से शाम तक तनहाइयों का मेला है,
कहीं खामोशियां आकाश से बरसती हैं।।- अतुल
हर इक राह मुसाफिर से जुदा होती है।
सुबह से शाम तक तनहाइयों का मेला है,
कहीं खामोशियां आकाश से बरसती हैं।।- अतुल
Dude, you you must be a writer. Your text is so great.
ReplyDeleteFrom Great talent