मित्रों,किसी भी व्यक्ति के जीवन में परिवारवालों के बाद सबसे महत्वपूर्ण स्थान होता है पड़ोसियों का.बतौर अटल बिहारी वाजपेयी आप मित्र बदल सकते हैं,शत्रु भी बदले जा सकते हैं लेकिन पड़ोसी नहीं बदले जा सकते.न जाने मैंने किस जनम में कौन-सा गंभीर पाप किया था जो दो-दो पुलिसकर्मी मेरे पड़ोसी बन गए हैं.दोनों बिहार पुलिस में सिपाही हैं.एक की गुंडागर्दी का तो मैं अपने पूर्ववर्ती लेख ''पुलिस वाला लुटेरा अथवा वर्दी वाला गुंडा'' में जिक्र भी कर चुका हूँ लेकिन मेरा नया पड़ोसी तो वर्दी का रोब झाड़ने के मामले में पहले का भी बाप है.
मित्रों,इस शख्स का नाम है बालेश्वर साह और हाजीपुर शहर से सटे जढुआ नवादा का रहनेवाला है.उम्र यही कोई ४०-४५ साल होगी.उसके कुल छः बच्चे हैं.सबसे बड़ी बेटी तो सयानी भी हो चली है.इन दिनों वो हमारे रोड नंबर-२,संत कबीर नगर,जढुआ स्थित वर्तमान निवास के पड़ोस में घर बनवा रहा है.मेरी समझ में यह नहीं आता कि इन पुलिसकर्मियों के पास जिनका वेतन मुश्किल से ५ अंकों में पहुँचता है इतना पैसा कहाँ से आ जाता है कि ये हाजीपुर जैसे महंगे शहर में जमीन खरीदकर घर बनवा रहे हैं.यहाँ मैं आपको यह भी बता दूं कि मेरे मोहल्ले में ९०% घर वर्तमान या भूतपूर्व पुलिसकर्मियों के हैं.तो मैं बता रहा था कि मेरे पड़ोस में जो सिपाही जी के नाम से मशहूर व्यक्ति घर बनवा रहा है एकदम महामूर्ख है,दम्भी है,कामुक है,वर्दी के घमंड में फूला हुआ है,मनमौजी है और नशेड़ी भी है.उसकी दुष्टता से मेरा पहला परिचय तब हुआ जब वह मेरे पड़ोसी त्रिवेदी जी के दामाद को भूमिविवाद के दौरान रंडी की औलाद इत्यादि विशेषणों से विभूषित करने लगा.आप भी सोंच सकते हैं कि तब त्रिवेदी जी और उनके पूरे परिवारवालों के दिलों पर क्या गुजर रही होगी लेकिन उन्होंने जवाब तक नहीं दिया.पचासों लोग उसे ऐसा करने से मना कर रहे थे लेकिन वह बार-बार त्रिवेदी परिवार को मोहल्ला से भगा देने और जीना मुश्किल कर देने की धमकी दे रहा था.मैंने अपनी जिंदगी में न जाने कितने पुलिसवाले देखे हैं लेकिन आज तक इतना लम्पट और बदतमीज पुलिसवाला नहीं देखा.इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि फ़िलहाल उसकी पोस्टिंग एक लम्बे समय से हाजीपुर शहर में ही है.आश्चर्य है कि बिहार सरकार को शिवदीप लांडे जैसे ईमानदार पुलिस अधिकारियों की बदली करने की तो खूब सूझती है लेकिन इन भ्रष्ट,लम्पट और गुंडानुमा पुलिसवालों की बदली करने के बजाए उन्हें सालों तक गृह जिला में पोस्टिंग कैसे मिली रहती है?मित्रों,टीम अन्ना के अनुसार जिस प्रकार निचले स्तर के अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा ही जनता ज्यादा प्रताड़ित होती है ठीक उसी तरह बिहार पुलिस या अन्य राज्यों की पुलिस के ये सिपाही,हवलदार और थानेदार ही होते हैं जो अपने पड़ोसियों सहित पूरे जनसमाज का जीना मुहाल किए रहते हैं.मेरा यह नया पड़ोसी दिन-रात मोबाईल फोन पर फुल वॉल्युम में ''लगाई दिहीं चोलिया के हूक राजाजी'' और ''ओही रे जगहिया दांती काट लिहलअ राजाजी'' जैसे अश्लील भोजपुरी गाने बजाता रहता है.फिर दिन ढलते ही उसका छोटा-सा टेंट मधुशाला में बदल जाता है और विभिन्न असामाजिक तत्व उसके साथ जाम छलकाते हैं.सत्र के अंत में पूरे मोहल्ले वालों को जमकर गलियां दी जाती हैं.इन असामाजिक तत्त्वों में से एक को तो मैं भली-भांति जानता भी हूँ जिसका नाम है संतोष पासवान.पास में ही संत कबीर नगर में ही उसका घर है और वो चोरी के कई मामलों में नामजद अभियुक्त भी रह चुका है.
मित्रों,इस प्रकार त्रिवेदी जी का परिवार इस पुलिसवाले से भले ही परेशान नहीं हुआ हो लेकिन हमलोग तो अच्छी मात्रा में रोजाना परेशान हो रहे हैं.हो भी क्यों नहीं घर में महिलाएँ तो हैं ही छोटे-छोटे बच्चे भी हैं?हमारे बच्चे इस पड़ोसी से क्या सीख लेंगे;आसानी से समझा जा सकता है?पूर्व के लेख ''पुलिस वाला लुटेरा अथवा वर्दी वाला गुंडा'' में वर्णित पप्पू यादव की तरह ही इस वर्दी वाले गुंडे ने भी साधिकार बिजली का टोंका फंसाकर चोरी की बिजली का उपयोग करना प्रारंभ कर दिया है.पप्पू यादव तो अब चोरी की बिजली से मोटर भी चला रहा है.मुझे घोर आश्चर्य हो रहा है कि एक तरफ बिहार राज्य विद्युत् बोर्ड लगातार बिजली महंगा करता जा रहा है वहीं इन चोर पुलिसकर्मियों के खिलाफ कोई कदम भी नहीं उठा रहा.इनके जैसे लोगों के चलते उसे जो रोजाना करीब ४ करोड़ रूपये का घाटा हो रहा है;उसे कौन भरेगा?हम जैसे शरीफ और कानूनप्रेमी ही न?हाँ,एक बात और है कि अगर इन वर्दीवालों के स्थान पर हमने टोंका फंसाया होता तो कब के हाजीपुर जेल की शोभा बढ़ा रहे होते.इसी को तो कहते हैं कि वो करें तो रासलीला और हम करें तो कैरेक्टर ढीला.
मित्रों,देश की सीमा की रक्षा करते हैं सेना के जवान और लोगों के घरों की रक्षा करती है पुलिस.मुठभेड़ों में मरते दोनों ही हैं लेकिन जब एक सेना का जवान मरता है तब पूरा जनसमुदाय श्रद्धा से सिर झुका लेता है.लोगों में शोक की एक स्वतःस्फूर्त लहर-सी दौड़ जाती है.परन्तु जब एक पुलिसकर्मी मारा जाता है तब जनता शोकमग्न नहीं होती बल्कि खुश होती है.खुश होती है कि एक आदमीनुमा जानवर मर गया.खुश होती है कि उसे रोज-रोज नोचनेवाला,काट खाने वाला और उस पर बेवजह भौंकनेवाला कुत्ता मर गया.कितनी बिडम्बनापूर्ण स्थिति है कि जिस जनता के पैसे से इन पुलिसवालों का घर चलता है उससे वे सीधे मुंह बात तक नहीं करते,ईज्जत देने की तो बात ही दूर रही.दुर्भाग्यवश आपको कभी थाने में जाना पड़ा तो वहां आपको जमकर जलील किया जाएगा लेकिन दलालों को,जेबकतरों को,गुंडों को खूब ईज्जत दी जाएगी;उनकी सेवा की जाएगी.आज जुए का अड्डा चलानेवाला कल राज्य या शहर को चलाने लगता है तो दोषी कौन है?ये पुलिसवाले! आज लोगों की जेबों को काटनेवाला कल लोगों का गला काटने लगता है तो दोषी कौन है?? एक बार फिर से वही पुलिसवाले!! कल तक चकला चलानेवाला आज प्रदेश और देश की सरकार चलाने लगता है तो दोषी कौन है??? फिर से वही पुलिसवाले!!! कल तक शराब बेचनेवाला आज देश को बेचने लगता है तो दोषी कौन है???? फिर से वही पुलिसवाले,वही पुलिसवाले,वही पुलिसवाले!!!! और बिडम्बना यह है कि इन्हीं दुश्शासन सदृश पुलिसवालों के बल पर नीतीश कुमार राज्य में सुशासन लाना चाहते हैं.सुशासन बाबू पहले इन सिपाहियों को सुधारिए चोर तो खुद ही सुधर जाएँगे.
पहले इन सिपाहियों को सुधारिए -
ReplyDeletesateek bat kahi hai .aabhar
बहुत-बहुत धन्यवाद् शिखाजी.
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति, आभार.
ReplyDeleteकहते हैं कि हम जिस संगत में अधिक वक्त गुजारते हैं, खुद भी वैसे ही बन जाते हैं। पुलिसवालों का अधिकांश समय अपराधियों के बीच गुजरता है। शायद एक वजह यह भी है उनके आचरण के भ्रष्ट हो जाने की। नेताओं और नौकरशाहों द्वारा पुलिसतंत्र का दुरुपयोग किया जाना एक अन्य वजह है। आपका लेख पढ़कर फिल्म 'सहर' का एक संवाद याद आ रहा है, ''अगर पुलिस को आइडियली ऑपरेट कराना चाहते हैं तो उसे आइडियल एनवायरनमेन्ट भी तो दीजिये।'' मैं कोई पुलिसवाला नहीं हूँ, न ही मेरा कोई आत्मीयजन पुलिस विभाग में है। मैं केवल विषय के दूसरे पहलू को सामने रख रहा हूँ। मेरे घर के सामने एक पुलिस कान्स्टेबल अपने परिवार सहित दो साल से किराये पर रह रहा है। उसकी परिस्थतियों को देखकर ये विचार आये सो लिख रहा हूँ।
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