21.12.11

बापू और श्यामाप्रसाद मुख़र्जी को और उनके सिद्धांतों को सिर्फ पोस्टर में नहीं अपने मन में भी बसाओ।


दोस्तों, आपको मोहनदास करमचंद गाँधीजी के समय का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस तो याद ही होगा।अगर हम कांग्रेस के वर्तमान नेताओं पर नजर डाले तो ऐसा लगता ही नहीं है कि ये वही पार्टी है जिसकी बागडोर कभी महात्मा गाँधी जैसे शख्सियत के हाथ में थी।जिस पार्टी में कभी देश पर मर-मिटने वाले नेता पैदा हुए आज वही पार्टी में भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों का बोलबाला है।जिस पार्टी के प्रयासों ने देश को अंग्रेजों से आजादी दिलाई आज वही पार्टी देश को सिवाय महँगाई और भ्रष्टाचार के कुछ नहीं दे रही है।आज अगर बापू जीवित होते तो उन्हें लगता जैसे उनके सपनों का भारत महँगाई, भ्रष्टाचार, चापलूसी के बोझ तले दब चुका है।भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में जितने भी नेता हुए अब उनकी कमी को भर पाना नामुमकिन है।सत्य और अहिंसा, यही थे हमारे प्रिय बापू के मूल सिद्धांत जिन्हें आज हर मोड़ पर चोट पहुँचा रही है कांग्रेस।अगर हम हाल-फिलहाल का उदाहरण लें तो जिस तरह से पूरी कांग्रेस मिल कर वरिष्ठ समाज-सेवक अन्ना हजारे की बेवजह खिंचाई कर रही है, क्या अगर बापू होते तो इसे कभी भी जायज ठहराते।पहले के कांग्रेसी नेता देश के लिए जीते थे, चाहे वो महात्मा गाँधी, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गाँधी या सरदार वल्लभभाई पटेल हो, पर आज के कांग्रेसी नेताओं को देश की जनता से मतलब ही कहाँ रहता है, वे जीते हैं सिर्फ अपने लिए।जिस कांग्रेस ने देश को आजाद भारत दिलाया आज उसी कांग्रेस ने देश को सुरेश कलमाड़ी जैसा कलंक भी दिया है।बापू के बारे में ये तो सभी जानते हैं कि वो सत्य और अहिंसा के पुजारी थे लेकिन अगर आज वो जीवित होते और कांग्रेस के शीर्ष के नेता रहते तो वो कभी भी भ्रष्टाचारियों को इतनी छूट नहीं देते जितना कि आज उन्हें कांग्रेस के शीर्ष के नेताओं से मिलता है।भले ही वर्तमान प्रधानमंत्री डा॰ मनमोहन सिंह खुद ईमानदार हो पर उनके शासन काल में भ्रष्टाचारियों को खुली छूट तो मिली ही हुई है।सभी कहते हैं कि वर्तमान प्रधानमंत्री डा॰ मनमोहन सिंह बेहद ही विद्वान एवं योग्य व्यक्ति हैं तो क्या उनके जीवन की पूरी पढ़ाई और उनकी योग्यता का मापदंड वर्तमान में देश में फैला भ्रष्टाचार ही है।हर बार जब भी देश पर कोई संकट आता है तो प्रधानमंत्री के साथ-साथ पूरी सरकार ही सिर्फ अपनी मजबूरियाँ गिनाने में ही व्यस्त हो जाती है।क्या ऐसे ही मजबूरियाँ गिना कर वो देश का विकास करेंगे?क्या देश की जनता ने उन्हें देश की जिम्मेदारी इसलिए सौंपी थी ताकि वो मुसीबत के समय ही जनता का साथ छोड़ दे?एक देश की सरकार आखिर होती किसलिए है, ताकि वो देश की जनता की सेवा, सहायता कर सके।पर कांग्रेसी नेता मुसीबत के वक्त ही अपनी मजबूरियाँ गिना कर क्या देश की जनता तक यही संदेश पहुँचाना चाहते हैं कि वो जनता की सहायता करने में असमर्थ हैं और देश की जनता ही उनकी सहायता करे।ये सरकार इतनी गैरजिम्मेदार है कि अगर दिल्ली विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण हुए किसी छात्रों के समूह को सरकार चलाने को दे दिया जाए तो वो इनसे तो जरूर अच्छी सरकार चलाएँगे।इतने गैरजिम्मेदार नेताओं को देख कर लगता ही नहीं है कि ये वही कांग्रेस पार्टी है जिसका देश की आजादी में एक अहम योगदान था।पार्टी की पुरानी इज्जत को धूमिल कर चुके हैं आज के कांग्रेसी नेता।सभी बस अपने-अपने पद को बचाने के लिए अपने आका को खुश करने में लगे हुए हैं।
     अगर कांग्रेस के वर्तमान नेताओं को बापू के सिद्धांतों का ख्याल नहीं है तो भारतीय जनता पार्टी भी कुछ कम नहीं है।भारतीय जनता पार्टी के भी वर्तमान नेता डा॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी के सिद्धांतों पर चलने का ढोंग करते हैं।केवल नाम की ही जनता की पार्टी है भारतीय जनता पार्टी।देश की आम जनता से इस पार्टी के नेताओं को भी कुछ खास मतलब नहीं रहता है।भारतीय जनता पार्टी की तो यह हालत हो गई है कि लगता ही नहीं है देश में विपक्ष भी है।जब सोनिया गाँधी कुछ आश्चर्य भरे फैसले लेती हैं तो सभी उनकी आलोचना करते हैं और आलोचना होनी भी चाहिए पर जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने एक अनुभवहीन राज्य-स्तरीय नेता को प्रमुख विपक्षी दल का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया तब उनकी आलोचना क्यों नहीं हुई?क्या ये जायज है कि उस वक्त पार्टी में कई शीर्ष के नेताओं की मौजूदगी के बावजूद कमान सौंप दी जाए एक राज्य-स्तरीय नेता को?मैं नितिन गडकरी जी की काबिलियत पर सवाल नहीं उठा रहा हूँ और न ही उनकी आलोचना कर रहा, मैं सिर्फ यह कह रहा हूँ कि पार्टी के शीर्ष के अनुभवी नेताओं को छोड़कर नितिन गडकरी जी को कमान सौंपना समझ से पड़े है।भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस के खिलाफ हुंकार भरते रहती है और कहती है कि वे कांग्रेस के खिलाफ लड़ने का साहस रखते हैं।तो क्या अब उनकी यह स्थिति हो गई कि एक अनुभवहीन नेतृत्व के साथ वो कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी का सामना करेंगे।जब आपका नेतृत्व ही उस स्तर का नहीं है जैसा कि एक राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी का होना चाहिए तो आप सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ क्या खाक लड़ोगे।भाजपा तो इतनी कमजोर हो चुकी है कि लगता है अगले आम चुनाव में कई क्षेत्रीय पार्टियाँ भी उनसे ज्यादा वोट प्राप्त करेंगी।देश की जनता से इनके नेताओं को कोई मतलब है है नहीं और आजकल अखबारों में सिर्फ प्रधानमंत्री की दावेदारी को लेकर ही इनके बारे में खबरें रहती हैं।भाजपा के कई नेता तो ऐसे हैं कि वो राज्यसभा में ही हैं तो ज्यादा सही है वरना लोकसभा के लिए जहाँ से भी चुने जाएँगे, वहाँ की जनता के लिए अभिशाप बन जाएँगे।आर.एस.एस. अगर भारतीय जनता पार्टी को कुछ सिखा सकती है तो उसे बस आम जनता के करीब आना सिखा दे।
    कांग्रेस और भाजपा के सभी नेता अपने-अपने घरों, दफ्तरों, गाड़ियों में महात्मा गाँधी और डा॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी के पोस्टर जरूर लगाए रहते हैं लेकिन उनके बताए रास्ते, सिद्धांतों पर चलते बहुत कम हैं।ये मायने नहीं रखता कि बापू और श्यामा प्रसाद मुखर्जी की तस्वीर आपके गाड़ियों पर लगी है या नहीं, वे और उनके सिद्धांत तो आपके मन में बसने चाहिए तभी आप उनके सच्चे अनुयायी कहलाएँगे।        

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