28.12.11

नसीब


हर किसी की आंखों में,
उनका नसीब पढ़ लेता हूं,
कि वह किसी से मिल रहे हैं,
या फिर बिछड़ रहे हैं आज?

रोज देखता हूं,
स्टेशन पर नमी,
जो किसी को लेने आते हैं,
या फिर किसी को छोड़ने आयें हैं,
उनकी आंखों में?

इंतजार मुझे भी है,
खुद के नसीब लिखने का?
जब तुम मुझे लेने आओ,
और हम दोनों,
निचोड़ लें अपनी-अपनी आंखों की नमी,
डूबो दें स्टेशन,
रोक दें रेलगाड़ी,
सदा-सदा के लिये।


  • रवि कुमार बाबुल


No comments:

Post a Comment