4.12.11

भड़ास के यशवंत सिंह

भड़ास  के यशवंत सिंह  के बारे में पढ़ कर ऐसा लगा की की जैसे कोई अपने ऊपर ही गंदगी फेंक कर अट्टहास  कर रहा है , लिखने वाले प़र तरस भी आया और स्वनामधन्य  सज्जन प़र हंसी भी आई , किसी को जानने के  लिए उस से मिलने की ज़रूरत नहीं होती , उसके लेल्हन से रूबरू  होना ही पर्याप्त  होता है . 

भड़ास की सामग्री  ही भड़ास के बारे में बताने के लिए काफी होती है  और साथ ही उसके संपादक के बारें में भी .
लेखक को लगता है की आज के समाचारपत्रों  और चैनलों  के बारे में अपर्याप्त  ज्ञान है . की वो कैसे संचालित किये जाते है .

अगर भड़ास ने सहायता के नाम प़र कोई मदद ली भी तो कौन सा जुर्म किया , इस की तो भड़ास ने खुले आम अपील कर  रखी है  .
एक नेक काम करने वाले के रास्ते में ऎसी दिक्कतें  पैदा करना , निहित स्वार्थ वालों  के पसंदीदा  शगल होता है .
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2 comments:

  1. मुझे पता नहीं किस सन्दर्भ में ये बातें हो रही हैं.

    पर में तो यशवंत जी का जबरदस्त फेन हूँ . और उनके इस कार्य से बहुत प्रभावित हूँ .

    इस भड़ास से मुझे बहुत मित्र मिले हैं . तेजवानी जी उसमें सबसे ऊपर हैं.

    उनकी वजह से मुझे अपनी भड़ास निकलने का एक मंच मिला है.

    यशवंत जी हम खुल्ले में आपके साथ हैं .

    अशोक गुप्ता
    दिल्ली

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