28.12.11

नई सरकार और सामूहिक मौतों का सिलसिला

शंकर जालान


लगता है पश्चिम बंगाल की नई सरकार और सामूहिक मौतों का चोली-दामन का साथ हो गया है। तृणमूल शासित ममता बनर्जी की अगुवाई वाली सरकार ने हाल ही में दो सौ दिन पूरे किए हैं और इन दो सौ दिनों में विभिन्न शिशु अस्पतालों में नवजात बच्चों, एएमआरआई अस्पताल अग्निकांड और बीते दिनों घटी जहरीली शराब की घटना ने छह सौ से ज्यादा लोगों को मौत की सुला दिया। इस गणित से देखा जाए तो जब से कांग्रेस व तृणमूल कांग्रेस की गठबंधन सरकार ने राज्य के कमान संभाली है रोजाना तीन लोग यानी प्रत्येक आठ घंटे में एक व्यक्ति की मौत सरकार की लापरवाही के कारण हो रही है।
दूसरे शब्दों में कहे तो एमआरआई अस्पताल में लगी आग की तपिश अभी शांत भी नहीं हुई कि दक्षिण चौबीस परगना जिले में जहरीली शराब की घटना ने आग में घी डालने का काम किया।
यह बिल्कुल सच है, जो आया है वह जरूर जाएगा यानी जिसका जन्म हुआ है उसकी मौत भी अवश्य होगी। यह सभी जानते हैं कि आज तक किसी ने अमर बूटी खाकर जन्म नहीं लिया। एक ना एक दिन हर व्यक्ति को मरना है, लेकिन ऐसी सामूहिक मौत, जिसके पीछे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राज्य सरकार की उदासीनता झलक रही हो तो यह मांग की उठना बिल्कुल जायज है कि आखिरकार राज्य की मुख्यमंत्री सह स्वास्थ्य मंत्री ममता बनर्जी कर क्या रही हैं?
बीते सप्ताह बुध-वृहस्पतिवार (१४-१५ दिसंबर) को पश्चिम बंगाल के दक्षिण चौबीस परगना जिल के मगराहाट स्थित संग्रामपर व आसपास के इलाकों में जहरीली शराब ने १५५ लोगों को (समाचार लिखे जाने तक) सदा-सदा के लिए सुला दिया और करीब १६५ लोगों जीवन-मौत के बीच अस्पताल में संघर्ष कर रहे हैं। चिकित्सकों व विशेषज्ञों की माने तो अस्पताल में भर्ती कुछ लोग ही स्वस्थ होकर घर लौट पाएंगे। जहर इतना फैल चुका है कि वह ज्यादातर लोगों को श्मशान का रास्ता दिखाएगा। हालांकि इस घटना पर दुख और चिंता जताते हुए ममता बनर्जी ने मृतकों के परिजनों को दो-दो लाख रुपए देने के साथ-साथ मामले की सीआईडी जांच के आदेश भी दिए हैं। इस सिलसिले में एक दर्जन लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है और उनसे पूछताछ कर रही है। जबकि देशी शराब माफिया के रूप में महशूर फरार बादशाह खोकन की तलाश जारी है। दक्षिण चौबीस परगना जिले क मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी शिखा अधिकारी ने एमआर बांगुड़, नेशनल मेडिकल कॉलेज अस्पताल और डायमंड हार्बर अस्पताल में भर्ती लोगों को बचाने की भरपूर कोशिश की जा रही है।
ध्यान रहे कि राज्य में कई जिलों में सालों से देशी शराब जिसे आम भाषा में चुल्लू कहा जाता है के सेवन से अक्सर लोगों क मौत होती रहती है। देशी शराब क भट्टियों के खिलाफ स्थानीय महिलाएं समय-समय पर आंदोलन और तोड़फोड़ करती रह हैं, लेकिन पुलिस की मिली-भगत और कुछ नेताओं क सह पर चुल्लू का धंधा फिर से पनप उठता है। महानगर कोलकाता समेत राज्य के विभिन्न जिलों में बीते सात सालों में एक सौ लोगों चुल्लू के कारण मौत के मुंह में समां गए हैं। जहरीली शराब से नवंबर २००४ में टेंगरा इलाके में ३५ लोग, अक्तूबर २००७ में पूर्व मेदिनीपुर में पांच, जनवरी २००९ में पोर्ट इलाके में २७, मई २००९ में दक्षिण चौबीस परगना में छह व पूर्व मेदिनीपुर में २० और बीते साल जुलाई २०१० में विधाननगर में सात लोगों क मौत हुई है। यानी सात साल में कुल मिलाकर जहरीली शराब ने जितने लोगों को नहीं निला उतने नहीं उससे ज्यादा लोगों बीते सप्ताह की घटना के शिकार हुए।
इस आंकड़े को नजरअंदाज करते हुए सरकार कह रही है कि पिछले तीन महीने (सितंबर, अक्तूबर व नवंबर) में जहरीली शराब के धंधे से जुड़े ८८ लोगों को न केवल पकड़ा गया है, बल्कि इस दौरान १५ हजार सात सौ ६३ लीटर शराब भी जब्त की गई है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक सितंबर में ४०, अक्तूबर में ३६ और नवंबर में १२ लोगों को गिरफ्तार किया गया। सरकार या सरकारी नुमाइंदों के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि जितने लोगों को जहरीली शराब मामले में तीन महीने में गिरफ्तार किया गया है। उससने दुगने लोग जहरीली शराब के कारण मात्र तीन पहर (२४ घंटे) में मारे गए हैं।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, जो राज्य की स्वास्थ्य मंत्री भी हैं अपने सफाई में रही है और यह मान रही है कि अवैध (जहरीली) शराब का धंधा राज्य में लंबे अर्से से चल रहा है। यह एक सामाजि कुरीति बन चुकी है। इसे रोकने के लिए सर्वदलीय स्तर पर आम राय की आवश्यकता है। साथ ही एक मझी हुई नेता की तरह वे यह प्रलोभन भी दे रही हैं कि अवैध शराब से जुड़े लोग यदि अन्य व्यवसाय से जुड़ना चाहे तो सरकार उनक मदद करेगी।
जानकार ममता के इस कथित प्रलोभन को पब्लिकसिटी स्ट्ड मान रहे हैं। लोगों को मुताबिक अपने को जमीन से जुड़ी और समझदार मुख्यमंत्री मानने वाली ममता बनर्जी की नजर अब तक क्यों इस ओर क्यों नहीं पड़ी? शिशु अस्पताल में बच्चों की मौत के बाद सचेत होना और फऱमान जारी करना, एएमआरआई अस्पताल में आग लगने के बाद नींद से जागना और जहरीली शराब से हुई १५० से ज्यादा लोगों की मौत के बाद सफाई देना या दुख जताने भर से पीड़ित परिवार के गम को कम नहं किया जा सकता।
वहीं, विशेषज्ञों का कहना है कि मरने पर मुआवजा और प्रलोभन से अवैध शराब के धंधे पर अंकुश लगना मुश्किल है। जानकारी गुजरात की तर्ज पर नए व सख्त कानून की जरूरत महसूस कर रहे हैं। ध्यान रहे कि जहरीली सबसे से सबसे अधिक लोग गुजरात में मरे और अब दूसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल है।
स्थानीय लोगों की शिकायत है कि देशी शराब बेचने की आड़ में मिलावटी शराब बेचने का गोरखधंधा यहां खूब चलता है और पुलिस को इस बारे में कई बार सूचित किया गया है। संग्रामपुर में ऐसी ही एक दुकान पुलिस स्टेशन के सामने ही स्थित है। लेकिन पुलिस की कार्रवाई न करना यह दर्शाता है कि इसमें लाभ का हिस्सा उस तक भी पहुंचता ही होगा। पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी भी इससे इंकार नहीं करते, उनका कहना है कि हो सकता है निचले दर्जे के कुछ पुलिसकर्मी इसमें शामिल हों, लेकिन जैसे ही हमें उनके बारे में पता लगेगा, कार्रवाई की जाएगी। इस इलाके में देशी शराब जिसे चुल्लू के नाम से जाना जाता है, उसका एक लीटर का पैक दस रपए और आधे लीटर का पैक पांच रुपए में बिकता है। शराब की मात्रा और नशा बढ़ाने और कीमत कम करने के लिए मिथाइल अल्कोहल नामक पदार्थ उसमें मिला दिया जाता है। इसमें कई बार पीने वाले को उल्टियां होने लगती हैं और मौत भी हो जाती है। जाहिर है दिनभर की थकान दूर करने के लिए रिक्शेवालों और मजदूरों ने शराब नहीं सीधे जहर पिया, जो उन्हें पांच और दस रुपए में बेचा गया। जीवनयापन उनके लिए महंगा था, लेकिन मौत इतनी सस्ती मिल जाएगी, इसका अनुमान उन्हें नहीं होगा।
देश में जहरीली शराब से मौत की घटनाएं आए दिन होती रहती हैं। जब मौत का आंकड़ा अधिक होता है, तो हंगामा मचता है, अन्यथा इसे सामान्य अपराध की तरह नजरंदाज कर दिया जाता है। गुजरात में 2009 में बड़ी संख्या में जहरीली शराब से मौतें हुई थीं, राज्य में पूर्ण नशाबंदी होने के बावजूद ऐसा हुआ था। तब एक विधेयक पेश किया गया था, जिसके तहत जहरीली शराब को बनाने और बेचने की सजा मौत रखी गयी थी। राज्यपाल प्रारंभ में मौत की सजा हटवाना चाहती थीं, लेकिन आखिरकार इस दिसम्बर में इसे पारित कर कानून बना ही दिया गया। गुजरात देश का एकमात्र राज्य है, जहां पूर्ण नशाबंदी है और अब इस कानून के बाद वहां शराब के अवैध धंधे पर सख्ती से रोक लग पाएगी, ऐसा अनुमान है। पूर्ण नशाबंदी एक आदर्श स्थिति है, जो केवल कानून से नहीं, बल्कि जनजागरूकता से ही संभव है। अन्यथा लोग किसी न किसी प्रकार नशा करने के गलत रास्ते ढूंढ ही लेते हैं। इसलिए बेहतर है कि सरकार इस बारे में थोड़ी व्यवहारिक सोच रखे। पूर्ण नशाबंदी की जगह जहरीली शराब या गैरकानूनी तरीके से शराब के व्यापार पर पूर्ण रोक लगाने के उपाय करे, तभी ऐसी अकाल मौतों को रोका जा सकेगा।

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