शंकर जालान
कोलकाता। गुरू बह्मा, गुरू विष्णु...का उच्चाऱण तो पूजा-पाठ के दौरान हर कोई करता है और कहने को लोग गुरू को माता-पिता का दर्जा भी देते हैं, लेकिन हकीकत में गुरू को माता-पिता मनाने वाले आठ वर्षीय नगा साधु भोलागिरि के कहने ही क्या। नंगे बदन, खुली जटा और शरीर पर विभूति (राख) लगाए वह बिंदास कहना है कि उसने संसार को त्याग दिया है, उसका काम अंतिम श्वांस तक प्रभु का नाम जपना है।
हैं ना अचरज की बात। जिस उम्र में बच्चे स्कूल में होना चाहिए। उसके हाथ में कॉपी-पेंसिल होनी चाहिए और जुबान पर किताब का पाठ। वह बच्चा स्कूल की बजाए खुले मैदान साधु-संतों के बीच, कॉपी-पेंसिल की जगह हाथों में चिमटा और किताबों के पाठ के बदले जुबान में राम-राम। लेकिन भोलागिरि को इसमें कोई अचरज नहीं। उसने बताया कि जब उसे मल-मूत्र के त्याग क समझ भी नहीं थी तभी उसकी मां ने उसे आश्रम में दान कर दिया था। आश्रम के प्रमुख महेशगिरि से उसकी देखरेख की और दो साल पहले औपचारिक संस्कार देकर साधु बनाया। उसने बताया कि गुरू यान महेशगिरि से दीक्षा लेते वक्त उसने उन्हें वचन दिया था कि उसका सारा जीवन अब आश्रम को समर्पित रहेगा।
आप को और बच्चों की तरह खोलना, पहनना, स्कूल जाना और धूमना-फिरना अच्छा नहीं लगता? इसके जवाब में भोलागिरि ने कहा कि वह पूरी तरह से सांसारिक मोह-माया से दूर हो चुका है। भौतिक जीवन से उसका कोई लेना-देना नहीं है। वह पूरी तरह आध्यामिक जीवन जीना चाहता है।
आउट्रमघाट में आठ वर्षीय नगा साधु भोलागिरि के दर्शन के लिए शुक्रवार को लोगों का तांता लगा रहा। लोगों का कहना है सर्दी के मौसम में आठ वर्षीय नगासाधु को देखना किस रोमांच से कम नहीं है।
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