दोस्तों, वर्ष 2011 की शुरूआत देशहित के साथ हुई जब अन्ना ने भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ पूरे देश भर में लोगों को जागरूक किया और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सख्त कानून की माँग को लेकर आंदोलन खड़ा किया।उस आंदोलन में उन्हें जनता का समर्थन भी प्राप्त हुआ।आंदोलन के सहारे पूरे देश की जनता ने एक मंच पर आकर भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद की।उस वक्त देश के हर एक नागरिक ने खुद को एक मंच पर पाया जिस मंच पर भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मुहिम छिड़ी हुई थी।ऐसा लग रहा था कि देर से ही सही पर लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरूक हुए हैं।
पर वर्ष के अंत में आखिर देश की जनता को ऐसा क्या हो गया कि उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई से अपना मुँह मोड़ लिया?बहुत से लोगों का यह मानना है कि आंदोलन की अति हो गई।लगातार इतने आंदोलन के लिए देश तैयार नहीं है।मैं पूछता हूँ कि देश भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के लिए नहीं तो किस के लिए तैयार है?भ्रष्टाचार से देश तबाह हो जाए, इसके लिए तैयार है?अगर अन्ना भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई जारी नहीं रखते तो क्या एक बार सिर्फ आंदोलन करके औपचारिकता पूरी करके लौट जाते?तब उनके विरोधी कहते कि अन्ना तो लड़ाई अधूरी छोड़ कर चले गए।आपको लगता है कि यह बहरी सरकार एक बार आंदोलन करने से ही मजबूत लोकपाल ले आती?तीन बार आंदोलन करने के बाद तो सरकार ने मजबूत लोकपाल लाया ही नहीं तो एक बार आंदोलन करके भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई अधूरी छोड़ने के बाद क्या खाक लाती।भ्रष्टाचार के खिलाफ हमें और एकजुटता की जरूरत थी जो देश की जनता की वजह से संभव नहीं हो पाया।भ्रष्टाचार के खिलाफ तीसरी लड़ाई में जब मुंबई में लोग नहीं पहुँचे तो भ्रष्टाचारियों ने अन्ना के बारे में कहा कि उनका जादू अब उतर चुका है।अन्ना कोई जादूगर थोड़े ही हैं कि उनका जादू उतर जाएगा।आंदोलन में जब लोग नहीं आए तो कुछ नेताओं ने अन्ना के व्यक्तित्व पर ही सवाल उठा दिए।अन्ना ने तो भ्रष्टाचार के खिलाफ लगातार लड़ाई जारी रखकर अपनी देशभक्ति दिखा दी।अब समय था देश की जनता को अपना परिचय देने का कि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ कितने जागरूक हैं जिसमें वे असफल रहे।आंदोलन में जनता नहीं गई तो इसके दोषी अन्ना कैसे हो गए?उन्होंने तो अपना फर्ज़ निभाया।भ्रष्टाचार खत्म करने के उद्देश्य को पूरा करने के लिए एक और कदम उठाया।देश की जनता ने अपना फर्ज़ नहीं निभाया।कुछ नेताओं ने अन्ना पर आरोप लगाया कि वे रास्ता भटक चुके हैं।रास्ता अन्ना नहीं देश की जनता भटक चुकी है।अन्ना ने बहुत कोशिश की देश की जनता को सही रास्ता दिखाने की, लेकिन देश की जनता को यह मंजूर ही नहीं था।अगर कोई दोषी है तो वह देश की जनता है न कि अन्ना।
समझ नहीं आता है कि आखिर जनता को अन्ना में ऐसा क्या दिखाई दिया कि उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई से भी खुद को अलग कर लिया।क्या वे अन्ना को गुनहगार मानने लगे हैं?अगर भ्रष्टाचार खत्म करना गुनाह है, तो हाँ मैं मानता हूँ कि अन्ना गुनहगार हैं।अगर एक भ्रष्टाचार मुक्त समाज की शुरूआत करना गुनाह है, तो हाँ अन्ना ने वह गुनाह किया है।अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों को एकजुट करना गुनाह है, तो हाँ अन्ना गुनहगार हैं।हम किस मुँह से अन्ना की बुराई करते हैं?अन्ना ने हमें भ्रष्टाचार से लड़ना सिखाया।जब सारा देश भ्रष्टाचार की चपेट में था उस वक्त अन्ना ने हमें उम्मीद की किरण दिखाई थी।कहने के लिए आज हम 1 अरब 21 करोड़ हैं लेकिन जब भ्रष्टाचार ने अपनी जड़ें मजबूत कर ली थी, उस वक्त किसी ने आवाज नहीं उठाई थी।उस 1 अरब 21 करोड़ में से भ्रष्टाचार के खिलाफ एकमात्र आवाज अन्ना और उनकी टीम की थी।एक समय भ्रष्टाचार देश के लिए स्वीकार्य हो चुका था।रोज अखबारों में भ्रष्टाचार के नए-नए किस्से मिलते थे।जब भ्रष्टाचार हद से ज्यादा हो गया तब अन्ना ने देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने की ठानी।भ्रष्टाचार के खिलाफ लोग कुछ हद तक जागरूक हुए भी थे तो अन्ना के ही बदौलत।आज सभी जानते हैं कि सीबीआई कैसे काम करती है।किसकी बदौलत?अन्ना के ही बदौलत।
अन्ना पर आरोप ऐसे लगाए जाते हैं जैसे कि वह आंदोलन खुद के लिए करते हैं, जैसे वह लोकपाल की माँग खुद के लिए कर रहे हैं।वह जो भी करते हैं देश के लिए करते हैं।अन्ना को शौक नहीं है कि वह बुखार में भी आंदोलन करें।वह शौक से दस दिनों तक भूखे- नहीं थे।कोई चीज थी जो दस दिनों तक उन्हें भूखे रहने में मदद कर रही थी।कोई चीज थी जो तपती बुखार में भी उन्हें आंदोलन करने को मजबूर कर रही थी।वह कुछ और नहीं बल्कि उनकी देशभक्ति और उनका देशप्रेम ही था।जो भी अन्ना पर आरोप लगाते हैं मैं उन सभी से पूछता हूँ कि क्या आपमें वो जज्बा है कि आप देश की आम जनता के लिए दस दिनों तक भूखे रहें, तपती बुखार में भी अनशन करें।अगर हम उनके टीम के दो अहम सदस्यों अरविंद केजरीवाल और किरन बेदी की बात करें तो माना कि उनसे कुछ वित्तीय गलती हुई थी लेकिन इसके साथ-साथ उनका एक और पहलु भी है।वे जिन विभागों में जिन पदों पर थे वे किसी को भी गरीब से अमीर बनाने के लिए काफी हैं अगर कोई अपना ईमान बेचने के लिए तैयार हो जाए।ऐसे बहुत से उन्हीं के लेवल के अफसर होंगे जो कि विभिन्न विभागों में मौज कर रहे होंगे।आखिर क्या जरूरत थी अरविंद केजरीवाल और किरन बेदी को अपने-अपने पदों से इस्तीफा देकर समाज-सेवा में लगने की?वे भी चाहते तो आराम से अपने-अपने विभागों में मौज कर सकते थे लेकिन नहीं उन्होंने वो रास्ता नहीं अपनाया तो यह बात तो उनका देशप्रेम ही झलकाता है।किसी विद्वान ने कहा है कि किसी की बुराइयों पर नहीं बल्कि अच्छाइयों पर गौर करना चाहिए।
आज जब अन्ना ने हमें भ्रष्टाचार से लड़ना सिखा दिया तो हम तरह-तरह की बातें कर रहे हैं।जैसे कि लोकपाल की जरूरत नहीं है, भ्रष्टाचार तो खुद से खत्म होगा।ये सब बेकार की बातें हैं।माना कि भ्रष्टाचार खुद से खत्म होगा लेकिन भ्रष्टाचार मिटाने का यही एकमात्र जरिया बिल्कुल नहीं हो सकता।भ्रष्टाचार मिटाने के लिए सख्त कानून की जरूरत है।सिर्फ लोकपाल ही नहीं उस जैसे और भी कई कानून की जरूरत है।लोकपाल तो भ्रष्टाचार मिटाने की शुरूआत है क्योंकि हमारे देश में भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए कोई ठोस कानून ही नहीं है।अन्ना हजारे ने तो भ्रष्टाचार मिटाने की शुरूआत की।कहना बहुत आसान है कि भ्रष्टाचार खुद से खत्म होगा लेकिन हकीकत में यह बहुत मुश्किल है।अगर भ्रष्टाचार सिर्फ खुद से ही खत्म होता तो आज तक खत्म हो गया रहता।खत्म तो दूर की बात है भ्रष्टाचार का नामोनिशान भी नहीं रहता।अगर भ्रष्टाचार खुद से ही खत्म होना रहता तो फिर कोर्ट की भी क्या जरूरत होती?पुलिस की क्या जरूरत रहती?अगर भ्रष्टाचार सिर्फ खुद से ही खत्म होना रहता तो न कोई चोर होता न कोई भ्रष्टाचारी।देश को एक सख्त लोकपाल की जरूरत है, कई और कानूनों की भी जरूरत है और जनता के साथ की जरूरत है तब खत्म होगा देश से भ्रष्टाचार।
मेरी देश की जनता से यह गुजारिश है कि कभी यह न भूलें कि जब देश के लिए भ्रष्टाचार स्वीकार्य हो चुका था, जब देश को मानो लकवा मार गया था उस वक्त अन्ना ने अपने स्वास्थ्य को दांव पर लगाकर देश को भ्रष्टाचार से लड़ने का रास्ता दिखाया था।जब भ्रष्टाचार की जड़ें गुलामी की जंजीरों से ज्यादा मजबूत हो चुकी थी उस वक्त भ्रष्टाचार के खिलाफ एकमात्र आवाज अन्ना ने उठाई थी।अगर देश के 25% व्यक्ति भी अन्ना जैसे हो जाएँ तो भ्रष्टाचारियों की शामत आ जाएगी।देश को आतंकवाद से भी ज्यादा खतरा भ्रष्टाचार से है।आतंकवादियों के बारे में तो सभी जानते हैं कि वे सिर्फ तबाही ही कर सकते हैं लेकिन भ्रष्टाचारी तो चुपचाप भीतर ही भीतर देश को तबाह कर रहे हैं।
यह बड़ा ही दुखद पहलु है कि देश की जनता के पास इतना समय तो है कि वे खराब खेलने वाले खिलाड़ियों के घर के आगे प्रदर्शन करें लेकिन उनके पास इतना भी समय नहीं है कि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में भाग ले।ऐसा नहीं है कि भ्रष्टाचार सिर्फ सख्त कानून से ही खत्म हो जाएगा।भ्रष्टाचार मिटाने के लिए देश की जनता को जागरूक होना पड़ेगा।आज भ्रष्टाचारी सिर उठा कर घूम रहे हैं।अगर जनता जागरूक हो जाए और भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कानून आ जाए तो भ्रष्टाचार को मजबूर होना पड़ेगा देश छोड़ने के लिए।
देश के इतिहास का वो सबसे शर्मनाक दिन था जब कांग्रेस ने लोकपाल बिल की हत्या करके उसे लोकसभा में पेश किया।जिस कांग्रेस ने लोकपाल बिल जैसे भ्रष्टाचार निरोधक कानून की हत्या कर दी, जिसने अन्ना जैसे देशभक्त का सम्मान नहीं किया उस कांग्रेस की एक-एक जीत भ्रष्टाचार, घुसखोरी की जीत मानी जाएगी।
मेरी भगवान से यह प्रार्थना है कि इस वर्ष एक मजबूत लोकपाल बिल पास हो और भ्रष्टाचार मिटाने की शुरूआत हो।देश की जनता जागरूक बने और भ्रष्टाचारियों का देश में दबदबा कम हो।भ्रष्टाचार का नामोनिशान मिटे ताकि देश को एक भ्रष्टाचार मुक्त और खुशहाल समाज नसीब हो।
जय हिन्द! जय भारत!
पर वर्ष के अंत में आखिर देश की जनता को ऐसा क्या हो गया कि उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई से अपना मुँह मोड़ लिया?बहुत से लोगों का यह मानना है कि आंदोलन की अति हो गई।लगातार इतने आंदोलन के लिए देश तैयार नहीं है।मैं पूछता हूँ कि देश भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के लिए नहीं तो किस के लिए तैयार है?भ्रष्टाचार से देश तबाह हो जाए, इसके लिए तैयार है?अगर अन्ना भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई जारी नहीं रखते तो क्या एक बार सिर्फ आंदोलन करके औपचारिकता पूरी करके लौट जाते?तब उनके विरोधी कहते कि अन्ना तो लड़ाई अधूरी छोड़ कर चले गए।आपको लगता है कि यह बहरी सरकार एक बार आंदोलन करने से ही मजबूत लोकपाल ले आती?तीन बार आंदोलन करने के बाद तो सरकार ने मजबूत लोकपाल लाया ही नहीं तो एक बार आंदोलन करके भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई अधूरी छोड़ने के बाद क्या खाक लाती।भ्रष्टाचार के खिलाफ हमें और एकजुटता की जरूरत थी जो देश की जनता की वजह से संभव नहीं हो पाया।भ्रष्टाचार के खिलाफ तीसरी लड़ाई में जब मुंबई में लोग नहीं पहुँचे तो भ्रष्टाचारियों ने अन्ना के बारे में कहा कि उनका जादू अब उतर चुका है।अन्ना कोई जादूगर थोड़े ही हैं कि उनका जादू उतर जाएगा।आंदोलन में जब लोग नहीं आए तो कुछ नेताओं ने अन्ना के व्यक्तित्व पर ही सवाल उठा दिए।अन्ना ने तो भ्रष्टाचार के खिलाफ लगातार लड़ाई जारी रखकर अपनी देशभक्ति दिखा दी।अब समय था देश की जनता को अपना परिचय देने का कि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ कितने जागरूक हैं जिसमें वे असफल रहे।आंदोलन में जनता नहीं गई तो इसके दोषी अन्ना कैसे हो गए?उन्होंने तो अपना फर्ज़ निभाया।भ्रष्टाचार खत्म करने के उद्देश्य को पूरा करने के लिए एक और कदम उठाया।देश की जनता ने अपना फर्ज़ नहीं निभाया।कुछ नेताओं ने अन्ना पर आरोप लगाया कि वे रास्ता भटक चुके हैं।रास्ता अन्ना नहीं देश की जनता भटक चुकी है।अन्ना ने बहुत कोशिश की देश की जनता को सही रास्ता दिखाने की, लेकिन देश की जनता को यह मंजूर ही नहीं था।अगर कोई दोषी है तो वह देश की जनता है न कि अन्ना।
समझ नहीं आता है कि आखिर जनता को अन्ना में ऐसा क्या दिखाई दिया कि उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई से भी खुद को अलग कर लिया।क्या वे अन्ना को गुनहगार मानने लगे हैं?अगर भ्रष्टाचार खत्म करना गुनाह है, तो हाँ मैं मानता हूँ कि अन्ना गुनहगार हैं।अगर एक भ्रष्टाचार मुक्त समाज की शुरूआत करना गुनाह है, तो हाँ अन्ना ने वह गुनाह किया है।अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों को एकजुट करना गुनाह है, तो हाँ अन्ना गुनहगार हैं।हम किस मुँह से अन्ना की बुराई करते हैं?अन्ना ने हमें भ्रष्टाचार से लड़ना सिखाया।जब सारा देश भ्रष्टाचार की चपेट में था उस वक्त अन्ना ने हमें उम्मीद की किरण दिखाई थी।कहने के लिए आज हम 1 अरब 21 करोड़ हैं लेकिन जब भ्रष्टाचार ने अपनी जड़ें मजबूत कर ली थी, उस वक्त किसी ने आवाज नहीं उठाई थी।उस 1 अरब 21 करोड़ में से भ्रष्टाचार के खिलाफ एकमात्र आवाज अन्ना और उनकी टीम की थी।एक समय भ्रष्टाचार देश के लिए स्वीकार्य हो चुका था।रोज अखबारों में भ्रष्टाचार के नए-नए किस्से मिलते थे।जब भ्रष्टाचार हद से ज्यादा हो गया तब अन्ना ने देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने की ठानी।भ्रष्टाचार के खिलाफ लोग कुछ हद तक जागरूक हुए भी थे तो अन्ना के ही बदौलत।आज सभी जानते हैं कि सीबीआई कैसे काम करती है।किसकी बदौलत?अन्ना के ही बदौलत।
अन्ना पर आरोप ऐसे लगाए जाते हैं जैसे कि वह आंदोलन खुद के लिए करते हैं, जैसे वह लोकपाल की माँग खुद के लिए कर रहे हैं।वह जो भी करते हैं देश के लिए करते हैं।अन्ना को शौक नहीं है कि वह बुखार में भी आंदोलन करें।वह शौक से दस दिनों तक भूखे- नहीं थे।कोई चीज थी जो दस दिनों तक उन्हें भूखे रहने में मदद कर रही थी।कोई चीज थी जो तपती बुखार में भी उन्हें आंदोलन करने को मजबूर कर रही थी।वह कुछ और नहीं बल्कि उनकी देशभक्ति और उनका देशप्रेम ही था।जो भी अन्ना पर आरोप लगाते हैं मैं उन सभी से पूछता हूँ कि क्या आपमें वो जज्बा है कि आप देश की आम जनता के लिए दस दिनों तक भूखे रहें, तपती बुखार में भी अनशन करें।अगर हम उनके टीम के दो अहम सदस्यों अरविंद केजरीवाल और किरन बेदी की बात करें तो माना कि उनसे कुछ वित्तीय गलती हुई थी लेकिन इसके साथ-साथ उनका एक और पहलु भी है।वे जिन विभागों में जिन पदों पर थे वे किसी को भी गरीब से अमीर बनाने के लिए काफी हैं अगर कोई अपना ईमान बेचने के लिए तैयार हो जाए।ऐसे बहुत से उन्हीं के लेवल के अफसर होंगे जो कि विभिन्न विभागों में मौज कर रहे होंगे।आखिर क्या जरूरत थी अरविंद केजरीवाल और किरन बेदी को अपने-अपने पदों से इस्तीफा देकर समाज-सेवा में लगने की?वे भी चाहते तो आराम से अपने-अपने विभागों में मौज कर सकते थे लेकिन नहीं उन्होंने वो रास्ता नहीं अपनाया तो यह बात तो उनका देशप्रेम ही झलकाता है।किसी विद्वान ने कहा है कि किसी की बुराइयों पर नहीं बल्कि अच्छाइयों पर गौर करना चाहिए।
आज जब अन्ना ने हमें भ्रष्टाचार से लड़ना सिखा दिया तो हम तरह-तरह की बातें कर रहे हैं।जैसे कि लोकपाल की जरूरत नहीं है, भ्रष्टाचार तो खुद से खत्म होगा।ये सब बेकार की बातें हैं।माना कि भ्रष्टाचार खुद से खत्म होगा लेकिन भ्रष्टाचार मिटाने का यही एकमात्र जरिया बिल्कुल नहीं हो सकता।भ्रष्टाचार मिटाने के लिए सख्त कानून की जरूरत है।सिर्फ लोकपाल ही नहीं उस जैसे और भी कई कानून की जरूरत है।लोकपाल तो भ्रष्टाचार मिटाने की शुरूआत है क्योंकि हमारे देश में भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए कोई ठोस कानून ही नहीं है।अन्ना हजारे ने तो भ्रष्टाचार मिटाने की शुरूआत की।कहना बहुत आसान है कि भ्रष्टाचार खुद से खत्म होगा लेकिन हकीकत में यह बहुत मुश्किल है।अगर भ्रष्टाचार सिर्फ खुद से ही खत्म होता तो आज तक खत्म हो गया रहता।खत्म तो दूर की बात है भ्रष्टाचार का नामोनिशान भी नहीं रहता।अगर भ्रष्टाचार खुद से ही खत्म होना रहता तो फिर कोर्ट की भी क्या जरूरत होती?पुलिस की क्या जरूरत रहती?अगर भ्रष्टाचार सिर्फ खुद से ही खत्म होना रहता तो न कोई चोर होता न कोई भ्रष्टाचारी।देश को एक सख्त लोकपाल की जरूरत है, कई और कानूनों की भी जरूरत है और जनता के साथ की जरूरत है तब खत्म होगा देश से भ्रष्टाचार।
मेरी देश की जनता से यह गुजारिश है कि कभी यह न भूलें कि जब देश के लिए भ्रष्टाचार स्वीकार्य हो चुका था, जब देश को मानो लकवा मार गया था उस वक्त अन्ना ने अपने स्वास्थ्य को दांव पर लगाकर देश को भ्रष्टाचार से लड़ने का रास्ता दिखाया था।जब भ्रष्टाचार की जड़ें गुलामी की जंजीरों से ज्यादा मजबूत हो चुकी थी उस वक्त भ्रष्टाचार के खिलाफ एकमात्र आवाज अन्ना ने उठाई थी।अगर देश के 25% व्यक्ति भी अन्ना जैसे हो जाएँ तो भ्रष्टाचारियों की शामत आ जाएगी।देश को आतंकवाद से भी ज्यादा खतरा भ्रष्टाचार से है।आतंकवादियों के बारे में तो सभी जानते हैं कि वे सिर्फ तबाही ही कर सकते हैं लेकिन भ्रष्टाचारी तो चुपचाप भीतर ही भीतर देश को तबाह कर रहे हैं।
यह बड़ा ही दुखद पहलु है कि देश की जनता के पास इतना समय तो है कि वे खराब खेलने वाले खिलाड़ियों के घर के आगे प्रदर्शन करें लेकिन उनके पास इतना भी समय नहीं है कि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में भाग ले।ऐसा नहीं है कि भ्रष्टाचार सिर्फ सख्त कानून से ही खत्म हो जाएगा।भ्रष्टाचार मिटाने के लिए देश की जनता को जागरूक होना पड़ेगा।आज भ्रष्टाचारी सिर उठा कर घूम रहे हैं।अगर जनता जागरूक हो जाए और भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कानून आ जाए तो भ्रष्टाचार को मजबूर होना पड़ेगा देश छोड़ने के लिए।
देश के इतिहास का वो सबसे शर्मनाक दिन था जब कांग्रेस ने लोकपाल बिल की हत्या करके उसे लोकसभा में पेश किया।जिस कांग्रेस ने लोकपाल बिल जैसे भ्रष्टाचार निरोधक कानून की हत्या कर दी, जिसने अन्ना जैसे देशभक्त का सम्मान नहीं किया उस कांग्रेस की एक-एक जीत भ्रष्टाचार, घुसखोरी की जीत मानी जाएगी।
मेरी भगवान से यह प्रार्थना है कि इस वर्ष एक मजबूत लोकपाल बिल पास हो और भ्रष्टाचार मिटाने की शुरूआत हो।देश की जनता जागरूक बने और भ्रष्टाचारियों का देश में दबदबा कम हो।भ्रष्टाचार का नामोनिशान मिटे ताकि देश को एक भ्रष्टाचार मुक्त और खुशहाल समाज नसीब हो।
जय हिन्द! जय भारत!
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