दोहे नेता जी के !
याचक बन नेता चले ;घर घर मांगें वोट
बदले में ले लो भले मदिरा ,साड़ी,नोट .
अग्नि परीक्षा की घडी ;हाल हुए बेहाल
जनता को कैसे ठगें चले कौनसी चाल ?
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पांच साल कटे मौज से ; खूब उड़ाया माल
जनता के भी खून में अब आया है उबाल !
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भाषण देने की भला कैसे करे मजाल ?
जनता तो अब क्रोध में जूता रही उछाल !
.जूते से जो डर गया ;नेता न बन पाए ,
डर और शर्म जो छोड़ दे सो नेता कहलाये !
शिखा कौशिक
बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया।
ReplyDeletethanks a lot verma ji .
ReplyDeleteअच्छा लगा.......
ReplyDeleteबहुत खूब....
ReplyDeletehardik dhanyvad MUKTABH JI
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