शंकर जालान
सुना था कि भरी तिजोरी की चॉबी कोई किसी को नहीं देता और खाली तिजोरी का रखवाला कोई बनना नहीं चाहता। यहां शीर्षक में लिखे खाली तिजोरी का अर्थ पश्चिम बंगाल का वित्त मंत्रालय है और रखवाला का संबंध वित्तीय सचिव से है। वैसे तो बंगाल अर्से से कर्ज के बोझ तले डूबा है, लेकिन जब से कांग्रेस-तृणमूल कांग्रेस की सरकार बनी है तब से कर्ज का बोझ बढ़ा है। ध्यान देने वाली बात यह है कि फिलहाल अमित मित्रा राज्य के वित्त मंत्री हैं, जो कभी फिक्की के सचिव हुआ करते थे वे भी राज्य की माली हालत को सुधारने की दिशा में को उल्लेखनीय कार्य नहीं कर पाए। स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि कोई भी आईएएस अधिकारी राज्य का वित्तीय सचिव बनने को तैयार नहीं है।
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री की भूमिका में आने के बाद ममता बनर्जी ने तेज आवाज में कहा - गुजरात, गुजरात है और बंगाल, बंगाल। बंगाल अपने विकास का अपना तरीका ढूंढेगा। करीब आठ महीने के बाद भी बंगाल में कुछ विशेष बदलाव नहीं नजर आ रहा है। नए निवेश को तो भूल जाएं, जो वर्तमान परियोजनाएं हैं, वह भी नहीं आगे बढ़ रही हैं।
राज्य के वित्तीय संकट को देखते हुए खाली तिजोरी (वित्त मंत्रालय) के रखवाले (सचिव) सी एम बच्छावत ने राज्य सरकार से अनुरोध किया है कि उन्हें किसी हल्के पद पर स्थानांतरित कर दिया जाएगा। हालांकि उन्होंने अपने अनुरोध में इसकी वजह निजी स्वास्थ्य बताया है, लेकिन जानकारों मानते हैं कि मामला कुछ और ही है। तभी को वर्तमान में आबकारी विभाग के सचिव एच के द्विवेदी भी यह पद नहीं लेना चाहते। इस सिलसिले में द्विवेदी ने राज्य के मुख्य सचिव समर घोष ने भेंट की और उनसे अनरोध किया कि उन्हें वित्त विभाग को सचिव नहीं बनाया जाए। सूत्रों के मुताबिक द्विवेदी ने घोष से कहा कि फिलहाल राज्य बदतर वित्तीय संकट से गुजर रहा है। उन्हें भरोसा नहीं है कि वे सही तरीके से वित्तीय सचिव की जिम्मेवारी निभा पाएँगे। जानकार मानते हैं कि इसकी वजह बनर्जी की ताबड़तोड़ नीति है।
द्विवेदी ही क्यों अधिकांश आईएएस अधिकारी वित्तीय सचिव का पद लेने से कतरा रहे हैं। वजह साफ है नई सरकार को पुरानी सरकार से विरासत में दो लाख करोड़ रुपए का कर्ज प्राप्त हुआ है। जिसकी भरपाई नई सरकार यानी तृणमूल कांग्रेस को करन है। सूत्रों ने बताया कि ममता ने दिल्ली में अपने राजनीतिक प्रभाव के कारण केंद्र सरकार से नौ हजार करोड़ रुपए का पैकेज हासिल कर लिया है। बावजूद इसके निकट भविष्य में सुधार के कोई आसार नहीं दिख रहे हैं। सरकार ने 30 फीसद विकास दर की जो परिकल्पना सोच रखी है। वह शायद ही पूरी हो। मौजूदा समय में विकास दर महज 14 फसीद है। ऐसी स्थिति में वित्त सचिव पर भारी दवाब रहेगा, खासकर तब जब ममता बिना सोचे-समझे दो लाख पदों क एलान कर दिया है।
भले बनर्जी खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश सहित कैबिनेट के कुछ अहम फैसलों को पलटने में भी सफल रहीं लेकिन वह अपने राज्य के लिए कोई बड़ा वित्तीय पैकेज हासिल करने में अब तक कामयाब नहीं हो पाई हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि वित्तीय बदलाव लाने के निश्चय के साथ सत्ता संभालने वाली बनर्जी का राज्य गहरे कर्ज में डूबता जा रहा है। पूरे निवेशक समुदाय की यही मांग है, जो बनर्जी की राजनीति के साथ मेल नहीं खा रही है। ममता सरकार की योजना है कि सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों सहित औद्योगिक परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण के मामले में सरकार साफ सुथरी रहे। हाल ही में लार्सन ऐंड टूब्रो की एक टीम ममता बनर्जी से मिली, सिर्फ यह कहने के लिए कि अगर वे जमीन, पानी और कोल लिंकेज की सुविधा मुहैया करा दें तो कंपनी बिजली संयंत्र स्थापित करने को इच्छुक है, लेकिन न जाने क्यों ममता टीम को संतोषजनक उत्तर नहीं दिया।
गूंगे और बहरे वित्त मंत्री- कोलकाता राज्य परिवहन निगम (सीएसटीसी) के 6,000 सेवानिवृत्त कर्मचारियों के अचानक पेंशन रोक दिए जाने के सवाल पर पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा ने कहा- कृपया कोई सवाल न करें। वित्त मंत्री गूंगे और बहरे हैं। केंद्र से निकट भविष्य में सहायता न मिलता देख पश्चिम बंगाल सरकार को भारतीय रिजर्व बैंक के बॉन्ड ऑक्शन विंडों से 1,000 करोड़ रुपये जुटाने पर मजबूर होना पड़ा। राज्य सरकार ने 1,300 करोड़ रुपये बाजार से उधार लिए। इसके साथ ही राज्य की वर्तमान वित्त वर्ष में उधारी 18,723 करोड़ रुपये के करीब हो गई है। जबकि इस वित्त वर्ष राज्य की उधार लेने की सीमा 17,828 करोड़ रुपये है, लेकिन राज्य को वित्तीय संकट से उबारने के लिए केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने एफआरबीएम सीमा के अतिरिक्त 2,706 करोड़ रुपये जुटाने की अनुमति दी थी। बढ़ी हुई उधारी की सीमा 20,534 करोड़ रुपये किए जाने के बाद राज्य सरकार अब शेष 3 महीने में 1,811 करोड़ रुपये का कर्ज ले सकती है। इस मामले से जुड़े एक सूत्र ने कहा, 'वर्तमान उधारी सीमा में सरकार के लिए मार्च तक वादे के मुताबिक खर्च करना मुश्किल होगा, अगर कोई विशेष पैकेज नहीं दिया जाता।'
लोकलुभावन कदम - खाली खजाने के बावजूद बनर्जी के लोकलुभावन घोषणाओं में कोई कमी नहीं है। सरकार ने विधानसभा सदस्यों के डीए में प्रति कार्यदिवस 1000 रुपये की बढ़ोतरी की है। इसके बाद ही सरकार ने कर्मचारियों के महंगाई भत्ते में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर दी, जिससे राज्य के खजाने पर 250 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। बते दिनों हथियार त्यागने वाले नक्सलियों के लिए सरकार ने लुभावने पैकेज की घोषणा की। सरकार हथियार त्यागने वाले हर सदस्य को तीन साल के लिए 2,000 रुपये प्रतिमाह देगी। सरकार इनमें से प्रत्येक को एकमुश्त 1.5 लाख रुपये देगी, लेकिन यह राशि उनके नाम से बैंक में 3 साल के लिए सावधि जमा के अंतर्गत रहेगी।
राज्य में नई परियोजनाओं पर कोई निवेश नहीं हो रहा है, नई नौकरियों का सृजन नहीं हो रहा है, शायद ऐसे में बनर्जी के वादे बढ़ते असंतोष को टालने में मददगार हो रहे हैं। लेकिन ऐसा कब तक संभव हो सकेगा, ज्यादातर लोग यह सवाल उठाने लगे हैं। बहरहाल इतना तो तय है कि राज्य वित्त सचिव का पद खाली नहीं रहेगा। अब देखना यह है कि कौन बनेगा करोड़पति की तर्ज पर इस पद की जिम्मेदारी कौन संभालता है।
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