24.1.12

न तो रोया न हँसा था

बहुत देर तक मेरे दोनों हाथ
मजे में थे साथ-साथ ।
फिर बही बयार एक
कई पेड़ उखड़े
मेरे दो हाथ भी अलग-अलग अकड़े।
हुआ क्या ? मैं भी
यह सोच लगा डरने ;
मेरे दो हाथ तभी
लगे बात करने ।
दायें ने कहा ,
'वाम , दूर नहीं हटता है ?
गंदा है काम तेरा
पास मेरे सटता है ?'
बाएँ ने कहा ,
' अरे चमचे , चिल्लाता है ?
बकबक जो करता है
उसको खिलाता है ।
जो है उपेक्षित
मैं उसे साफ़ करता हूँ ;
गलती है मेरी जो
तुझे माफ़ करता हूँ ?'
कई प्रश्न उभरे फिर
सुलझे-अनसुलझे
लड़ने को आपस में
हाथ मेरे उलझे ।

खुली जब नींद
न तो रोया न हँसा था ;
दोनों हाथों के बीच
गला मेरा फँसा था ।

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