23.2.12

अनबुझी प्यास


एक वो था,
जो सारा समन्दर,
अपने प्रेम का,
मुझको सौंप देना चाहता था।

एक तुम हो,
जिसके पास मेरे लिये,
प्रेम का एक कतरा भी नहीं है।

यह मेरे नसीब की साजिश है,
या फिर,
उसकी बद्दुआ रही होगी?

जो रह गई,
मेरी प्यास अनबुझी,
तुम्हारे होते हुये भी।

  • रविकुमार बाबुल


चित्र : साभार

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