साम्प्रदायिकता
लोकतंत्र के आँगन में-
फलती फूलती है साम्प्रदायिकता.
कोई बहुसंख्यक में साम्प्रदायिकता देखता है,
कोई अल्पसंख्यक में साम्प्रदायिकता देखता है,
मगर सत्य यही है कि-
हर बार जीतती है साम्प्रदायिकता .
कोई बाटला काण्ड पर आंसू बहाता है,
कोई भिंडरावाले पर फूल चढ़ाता है,
कोई मालेगांव बम्ब कांड पर उकसाता है,
लक्ष्य इतना ही कि भड़कती रहे साम्प्रदायिकता.
कोई आरक्षण को धर्म से जोड़ता है,
कोई राम को राजनीती से जोड़ता है,
कोई मोलवी से फतवे करवाता है,
कोई जाती को राजनीती में ढकेलता है,
सपना इतना ही,
कि,
सुलगती रहे साम्प्रदायिकता.
लोकतंत्र के आँगन में,
हम-
एक दूजे को सांप्रदायिक कहते हैं,
हिन्दू-मुस्लिम- सिक्ख- इसाई ,
सब आपस में झगड़ते हैं .
एक दूजे पर आरोप -प्रत्यारोप लगाते हैं,
कि -
सिर्फ तुम सांप्रदायिक हो .
मगर -
कहाँ फुरसत है किसी को,
अपने गिरेबान में झाँकने की,
खुद को टटोलने की,
आत्म अवलोकन करने की,
कि,
क्या मैं खुद साम्प्रदायिक हूँ ?
हम सांप्रदायिक सियासत करते हैं,
क्योंकि-
यह आसान रास्ता है सत्ता के गलियारे का,
यह आसान रास्ता है जनता को भरमाने का,
यह आसान रास्ता है सत्ता सुख भोगने का ,
यही कारण है कि-
हम साम्प्रदायिकता को मरने नहीं देते,
येन केन प्रकारेण,
साम्प्रदायिकता को जिन्दा रखते हैं,
ताकि
सियासत कि दूकान चमकती रहे .
मानवता रोती रहे सियासत चलती रहे .
very true .happy holi .YE HAI MISSION LONDON OLYMPIC
ReplyDeletenitant naastik ewam chor ya bhrasht hone se to laakh achchhaa hai saampradaayik hona . kam se kam wahaan eeshwar ka naam to hai .
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