26.3.12

plitical dairy of seoni disst. of M.P.

बेचारे किसानों के लिये नेता तो सभी परेशान हैं लेकिन पिछले साल से ज्यादा कुछ मिलने की संभावना नहीं हैं

जिले में भी सपा ने अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने पर जिला अस्पताल में मरीजों को फल वितरण करके राजनैतिक पटल पर लंबे अर्से बाद अपनी उपस्थिति दर्ज की हैं। सपा,बसपा और गौगपा तीसरी पारी खेलने के लिये बेताब भाजपा के लिये संजीवनी का काम कर सकती हैं। भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के आदिवासी नेता फग्गनसिंह कुलस्ते के राज्यसभा के लियेे निर्विरोध निर्वाचित हो जाने से भाजपा के राजनैतिक समीकरणों में बदलाव आने की संभावनायें व्यक्त की जा रहीं हैं। अब जिले के तीन सांसद हो गये हैं लेकिन यदि कुलस्ते सिर्फ इन दो रेल परियोजनाओं को ही गति दिलवा दें तो जिले के विकास में उनका यह योगदान मील का पत्थर साबित हो सकता हैं। गेहूं खरीदी की मात्रा को लेकर राजनीति का खेल तेजी से जारी हैं। सबसे पहले जिला पंचायत के उपाध्यक्ष इंका नेता अनिल चौरसिया ने फिर विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह और अब वित्त आयोग के अध्यक्ष डॉ. ढ़ालसिह बिसेन ने किसानों की चिंता की हैं। सूखी और सिंचिंत दोनों ही किस्म की खेती करने वाले किसानों से सरकार एक ही मानक स्तर पर खरीदी करेगी जो किसानों के हित में होगा या बिचौलियों के हित में? यह तो आने वाला समय ही बतायेगा।

यू.पी.की जीत से सपां में उत्साह-उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणामों से समाजवादी पार्टी में उत्साह का वातावरण बन गया है। जिले में भी सपा ने अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने पर जिला अस्पताल में मरीजों को फल वितरण करके राजनैतिक पटल पर लंबे अर्से बाद अपनी उपस्थिति दर्ज की हैं। प्रदेश में इंका और भाजपा के अनावा और कोई राजनैतिक विकल्प ना होने के कारण इन दलों की सक्रियता के अलावा किसी भी अन्य पार्टी की सक्रियता नहीं के बराबर हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश के हाल ही के चुनावों में सपा को मिली सफलता ने प्रदेश में भी राजनैतिक उम्मीदें जगा दी हैं। अब यह आगे सपा की राजनैतिक गतिविधियों पर ही निर्भर करेगा कि वे प्रदेश के राजनैतिक पटल पर अपनी कितनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज करा पातें हैं। वैसे इसके लिये आवयक संगठनात्मक ढ़ांचा अभी वैसा मजबूत नहीं है जैसा कि जरूरी है। सपा,बसपा और गौगपा तीसरी पारी खेलने के लिये बेताब भाजपा के लिये संजीवनी का काम कर सकती हैं।

अब तीन तीन सांसद हो गये हैं जिले में-भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के आदिवासी नेता फग्गनसिंह कुलस्ते के राज्यसभा के लियेे निर्विरोध निर्वाचित हो जाने से भाजपा के राजनैतिक समीकरणों में बदलाव आने की संभावनायें व्यक्त की जा रहीं हैं। पूर्व केन्द्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते पहले तो वोट फार नोट के मामले में संकंट में फंसे थे और उसके बाद पिछले लोस चुनाव में वे इंका के बसोरी सिंह मसराम से चुनाव हार गये थे। उनके चुनाव परिणाम का सबसे रोचक तथ्य यह था कि वे लोकसभा क्षेत्र में आने वाले केवलारी और गोटेगांव क्षेत्र से चुनाव जीत गये थे जहां से कांग्रेस के हरवंश सिंह और नर्मदा प्रजापति विधायक हैं लेकिन शेष सभी उन छः क्षेत्रों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था जहां भाजपा के विधायक थे। कुलस्ते के दोबारा सांसद बन जाने से जिले की राजनीति में भी प्रभाव पड़ने की बात कही जा रही हैं क्योंकि जिले की लखनादौन और केवलारी सीटें मंड़ला संसदीय क्षेत्र में ही आती हैं। इनमें केवलारी विस क्षेत्र ऐसा हैं जो कि इंका और भाजपा दोनों की राजनीति में निर्णायक भूमिका अदा करता हैं। पिछले अठारह सालों का इतिहास यह बताता है कि इंका भाजपा का तालमेल जिले के अन्य क्षेत्रों का राजनैतिक भविष्य तय करता हैं। इसमें कोई शक नहीं हैं कि कुलस्ते एक कद्दावर नेता है और राष्ट्रीय राजनैतिक परिदृश्य में भी उनकी प्रभावशाली उपस्थिति हैं। कुलस्ते की यह उपलब्धि इंका सांसद बसोरी सिंह के लिये परेशानी का सबब बन सकती हैं। लेकिन कुलस्ते के राजनैतिक कद का जिले को कोई लाभ होगा या नहीं ? यह अभी भविष्य की गर्त में हैं। वैसे भी जिले की फोर लेन, छिंदवाड़ा सिवनी नैनपुर गेज परिवर्तन और रामटेक गोटेगांव नई रेल परियोजना जैसी कई महत्वाकांक्षी विकास योजनायें दबंग राजनैतिक व्यक्तित्व के आभाव में अधूरी पड़ी हैं। रामटेक गोटेगांव रेल लाइन में भी गोटेगांव से लेकर छपारा तक का एक लंबा हिस्सा मंड़ला लोकसभा क्षेत्र में ही आता हैं। इसके अलावा कलबोड़ी से लेकर खवासा तक का हिस्सा बरघाट विस क्षेत्र में आता हैं जहां से उनके रिश्तेदार कमल मर्सकोले भाजपा के विधायक हैं। इसी तरह भोमा से लेकर मंड़ला फोर्ट तक का हिस्सा भी मंड़ला क्षेत्र में आता हैं जो कि गेज परिवर्तन की राह तक रहा हैं। वैसे कहने को तो अब जिले के तीन सांसद हो गये हैं लेकिन यदि कुलस्ते सिर्फ इन दो रेल परियोजनाओं को ही गति दिलवा दें तो जिले के विकास में उनका यह योगदान मील का पत्थर साबित हो सकता हैं।

गेहूं खरीदी केी मात्रा पर नेताओं में मचा घमासान -गेहूं खरीदी की मात्रा को लेकर राजनीति का खेल तेजी से जारी हैं। सबसे पहले जिला पंचायत के उपाध्यक्ष इंका नेता अनिल चौरसिया ने फिर विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह और अब वित्त आयोग के अध्यक्ष डॉ. ढ़ालसिह बिसेन ने किसानों की चिंता की हैं। अनिल चौरसिया ने प्रति हेक्टेयर खरदी के लिये निर्धारित गेहूं की मात्रा पर आपत्ति उठायी थीं। फिर जिले के इकलौते इंका विधायक हरवंश सिंह ने 20 मार्च को पत्र लिखकर अपनी आपत्ति दर्ज करायी और कहा कि सरकार प्रति हेक्टेयर 30 क्विंटल गेहूं खरीदी का निर्णय ले। आपने यह भी उल्लेख किया कि पिछले वर्ष सरकार ने केवलारी मंड़ी में 35 एवं पलारी उप मंड़ी में 45 क्वि. प्रति हेक्टे. गेहूं खरीदा था किन्तु फिर भी पूरा गेहूं नहीं खरीदा जा सका था। अपने इसी पत्र में हरवंश सिंह ने यह भी लिखा था कि इस साल पानी अच्छा गिरा हैं इसलिये गेहूं की अच्छी फसल आयेगी। इस पत्र के आकड़ें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देते हैं। जब 35 और 45 क्वि. खरीदी के बाद भी पूरा गेहूं ना ले पाने की बात कही गयी है तो फिर ऐसा क्याकारण हैं कि एक विपक्ष के विधायक होने के बाद भी उन्होंने सिर्फ तीस क्वि. खरीदी को मांग क्यों उठायी ? क्या ऐसा तो नहीं कि सरकार तीस क्वि. के आदेश जारी करने जा रही हो और यह बात उन्हें पता लग गयी हो इसलिये ऐसा किया गया? या अपने ही पत्र के विरोधाभास का वे ध्यान नहीं रख पाये? बात जो कुछ भी हो लेकिन तीन दिन बाद ही उनका एक दूसरा पत्र मीडिया को जारी किया गया जिसमें असंिचत में 30 और सिंचिंत में 45 क्वि. प्रति हेक्टेयर की मांग फिर से उठायी गयी हैं। असिंचिेत जमीन में एक हेक्टेयर में तीस क्वि. गेहूं पैदा होने की बात पर भी किसान यह कहने से नहीं चूक रहें हैं कि ऐसी खेती खेतों में तो नहीं लेकिन कागजों पर जरूर हो सकती हैं जो कि कालेधन सफेद धन में बदलने के लिये चंद लोग किया करते हैं। इसके बाद प्रदेश के वित्त आयोग के अध्यक्ष डॉ. ढ़ालसिंह बिसेन ने एक बयान जारी कर किसानों से चिंता ना करने की बात कही और यह विश्वास दिलाया कि पिछले वर्ष के समान ही इस साल भी खरीदी की जायेगी। सरकार जल्दी ही संशोधित आदेश जारी कर देगी। यहां यह विशेषरूप से उल्लेखनीय हैं कि पिछले वर्ष बाद में संशोधित आदेश के अनुसार प्रदेश सरकार ने 35 से 45 क्वि. प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खरीदी की थी जिसमें सिंचिंत और असचिंत भूमि के लिये कोई अलग से मानदंड़ तय नहीं किये गये थे। जबकि इस साल प्रदेश सरकार ने सिर्फ 16.5 क्वि. प्रति हेक्टे. के हिसाब से खरीदी करने के आदेश दिये हैं। जिले के बेचारे किसानों के लिये सभी नेता तो परेशान है लेकिन अंतिम तौर पर बाद में बस इतना ही होने की संभावना दिख रही हैं कि पिछले साल के हिसाब से ही खरीदी हो सकेगी। याने पर्याप्त पानी गिरने के बाद अच्छी फसल होने की संभावना के बाद भी किसान से सरकार एक क्विंटल भी अधिक गेहूं नहीं खरीदेगी। सूखी और सिंचिंत दोनों ही किस्म की खेती करने वाले किसानों से सरकार एक ही मानक स्तर पर खरीदी करेगी जो किसानों के हित में होगा या बिचौलियों के हित में? यह तो आने वाला समय ही बतायेगा।

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