3.4.12

दिल्ली के दगल में आप का स्वागत है...

हल्ला गुल्ला...


 दुष्यंत ने कहा था कि....
इस सड़क पर इस क़दर कीचड़ बिछी है,
हर किसी का पाँव घुटनों तक सना है

पक्ष औ' प्रतिपक्ष संसद में मुखर हैं,
बात इतनी है कि कोई पुल बना है

हो गई हर घाट पर पूरी व्यवस्था,
शौक से डूबे जिसे भी डूबना है

दोस्तों ! अब मंच पर सुविधा नहीं है,
आजकल नेपथ्य में संभावना है
 
बहुत दिन हुए कुछ लिखा नहीं सोचा की कि पांच राज्यों के चुनाव के समाप्त होने पर कुछ शांति मिली ही थी कि दिल्ली नगर निगम का चुनाव की तैयारिया तेज होने लगी... तो सोचा कि कुछ लिखा जाएं.... दिल्ली के 272 सीटों के चुनाव होने है.. इसके पहले नगर निगम पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है... इस बार किसका होगा ये बताना बहुत मुश्किल है... मुश्किल इस लिए है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में जो चुनावी विशेषज्ञ थे उनकी गणित थरी की थरी रह गयी... इसलिए नगर निगम किसके कब्जे में होगी बताना मुश्किल होगा.... अब बात करते है.. मुद्दो कि.... एमसीडी चुनाव का हर मुद्दा दिल्ली सरकार की गद्दी को तय करता है... इसलिए... दिल्ली का सीएम हो... या फिर विपक्ष हो...सबके सब चुनाव में लगे है... बीजेपी के एक विधायक से मेरी बात हो रही थी वो बेचारे इतना परेशान थे.. कि लगता था कि चुनाव एमसीडी का न होकर दिल्ली विधानसभा का हो.... हमने उनसे कहा कि... दो मिनट समय देगे...कुछ बात करनी है....तो उन्होंने कहा...कि भाई समय नहीं है...उन्होंने कारण भी बताया... उन्होंने कहा कि..भाई जितनी सीटे पर हम जीत दर्ज करेगें... विधानसभा चुनाव में मेरी मौजूदगी...उतनी मजबूत होगी.... तो मुझे लगा कि... कि मुद्दा तो जो है सो है...लेकिन हर पार्टी का विधायक दिल्ली विधानसभा चुनाव.....या फिर इस तरह से कह सकते है..कि.. एमसीडी चुनाव तो बहाना है.. विधानसभा चुनाव जीतना है.... आपको लगता होगा कि इतनी भूमिका गढ़ने की क्या जरुरत है... क्योकि भूमिका जितनी मजबूत होगा कहानी भी उतनी बढ़िया होगी... मुद्दो की बात करे तो लोगों ने कहा कि पार्षद बीजेपी का........ विधायक भी बीजेपी का लेकिन सरकार कांग्रेस की.. तो विकास कहा से होगा... जनता से पूछा तो कहा कि चुनाव के समय सब याद करते है.. मुद्दे भी जिन्नाद की तरह निकल आते है... लेकिन चुनाव के बाद मुद्दो का डिब्बा गोल हो जाता है.. और जो जितता है... वो फिर से पांच साल के बाद वोट मांगने आता है... लेकिन बीच में न तो किसी पार्टी का नुमांइदा दिखाई देता है... न तो कोई सुनता है... हमने जब संगम विहार का दौरा किया तो पता चला कि संगम विहार का नाम संकट विहार होना चाहिए.... वहां के लोग कैसे जीते है... उसको या तो वो महसूस कर सकते है.. या फिर भगवान क्योंकि हममे से कोई नही महसूस कर सकता है... वहां पीने के पानी के लिए लोगो को इतनी मशक्त करनी पडती है.. कि लगता है.. पानी नहीं किसी युद्ध पर विजय पाने की कोशिश कर रहे है... लेकिन सड़क पर पानी देखेगे तो आप को लगेगा कि जब सड़क पर इतना पानी है तो घर में कितना होगा... क्योंकि मै भी यही सोचता था... सड़क पर जल भराव के कारण से हर दिन कोई न कोई जरुर बीमार रहता है... लोगों का कहना कि न तो पार्षद सुनता है.. न ही विधायक लेकिन मुझे लगता है कि अगर सड़क का मुद्दा और पानी का मुद्दा समाप्त हो जाएं तो शायद राजनीति खत्म हो जाएंगी... इसीलिए कोई भी पार्टी नही चाहती कि ये मुद्दे खत्म हो.... इसी तरह कई मुद्दे है जो हर रोज हम सबको दो चार होना पड़ता है... लेकिन सरकार अगर को ये मुद्दे मंदिर में भगवान को चढ़ने वाले लड्डू लगते है.. जो चढ़ते तो भगवान को है... लेकिन उपयोग और उपभोग आम आदमी करता है... जिस तरह से एक साहूकार मिर्जा गालिब से कहता है... कि सुना है.. कि पान आपको ज़हर लगता है.. तो गालिब कहते है..कि ज़हर होता तो मै खा लेता..... पान है इसलिए नहीं खाऊंगा... हो सकता है कि आप लोगों को लगे कि मै स्टोरी से भटक गया हूं.. लेकिन मैने जो देखा वहीं लिखा...

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