कार्टून ......! ना बाबा ना !!
कार्टून ......! ना बाबा ना !!
प्रोफ़ेसर अम्बिकेश महापात्रा...रसायन की रेसिपी लिखते-लिखते कार्टून लिख डाला ,क्या धांसू
व्यंग था,आर.के.लक्ष्मण की दुनिया याद आ गयी ,मगर अफसोस....! रसायन के प्रोफेसर को
जेल की हवा खानी पड़ गयी क्योंकि उनके खिलाफ "सम्मानित व्यक्ति के खिलाफ अपमानजनक
सन्देश भेजने का आरोप लगाया गया .
प्रोफ़ेसर महापात्रा,जो व्यक्ति इस देश में चुनाव जीत जाता है वह सम्मानित गणमान्य कहलाता
है चाहे वह देश का ,समाज का या आम जनता का भला करता हो या नहीं करता हो लेकिन आप
यह बात गले क्यों नहीं उतार पाए यह भी आम जनता के लिए शोध का विषय बन सकता है क्योंकि
हमारे हनुमान की तरह उनकी पूंछ तो नहीं परन्तु पहुँच बड़ी लम्बी होती है .पूंछ यदि लंका जला
सकती है तो पहुँच जेल की खातिरदारी भी करवा सकती है .
प्रोफ़ेसर, क्या आपने भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग खेलते युवा भारतीयों को नहीं जानते जिन्होंने इन
वचन भंग करने वाले सम्मानित गणमान्यो की नक़ल देश के सामने उतारी और उसके बाद इनके
तन मन में ऐसी आग लगी कि नक़ल उतारने पर विशेषाधिकार हनन का नोटिस भेजा.
प्रोफ़ेसर, इस देश में सम्मानित नेता जो ओहदे पर विराजमान होता है वह सावन के सूरदास के
समान होता है ,इनके इर्द-गिर्द सुरक्षा का घेरा या खुसामद खोर लोगों कि भीड़ रहती है मगर आपने
इनका कटु चेहरा पुन: दिखला दिया क्योंकि एक बार तो बजट के समय जो नौटंकी हुयी उसे पूरा
देश देख चूका था.आपने कार्टून रसायन कि जो रेसिपी लिखी उसे कोई भी सम्मानित व्यक्ति कैसे
पचा पाता? वह समय बीत चूका है जब ज्ञानी गुरु सम्मानित होता था आज तो चुनाव जीत जाने
वाला दागी नेता भी सम्मानित जन प्रतिनिधि होता है,यही कटु सत्य है.
प्रोफ़ेसर, हमारे देश में अभिव्यक्ति कि आजादी सिर्फ संविधान के पन्नो पर है ,हमारे देश में जीने
कि आजादी सिर्फ कानून के कागजो पर है इस हकीकत से आप आज रूबरू हो गए हैं ,आपसे पहले
भी सच के सिपाही बने आर टी आई कार्यकर्ता संविधान प्रदत्त अधिकार के कारण जान गँवा चुके हैं
लोकपाल के पक्ष में तथा कालेधन के खिलाफ आवाज उठाने के कारण सैंकड़ो लोग पुलिस के डंडे
खा चुके हैं .सम्मानित लोगो के खिलाफ आवाज उठाने से करोडो जागते हुए भारतीयों कि नींद में
खलल पड़ने के सिवाय कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है !!!
आपने आर.के.लक्ष्मण कि दुनिया को अमृत पान करवा दिया मगर खुद को गरल गटकना
पड़ा .गरल गटकने वाला ही शिव बनता है यह भी प्रकृति का सत्य है .सत्य का रूप कैसा ही हो ,
सत्य किसी भी विधा से निकलता हो मगर जीत सत्य कि ही होती है .ये आज के सम्मानित तथा
अतिसम्मानित व्यक्ति हम आम भारतीयों के कारण ही तो है ,यदि ये सत्य को सही रूप से सहन
करने में असमर्थ हैं तो फिर हम इनका बोझ अपने सिर पर क्यों ढोये..कब तक ढोये ...... ?
No comments:
Post a Comment