13.4.12

तृणणूल कांग्रेस के दो रंग

शंकर जालान



तीन अप्रैल को पश्चिम बंगाल की जनता को चंद घंटों के दौरान ही तृणमूल
कांग्रेस के दो अलग-अलग रंग देखने को मिले। पहला रंग पार्टी के विधायक की
दबंगगिरी का और दूसरा रंग पार्टी प्रमुख की दरियादिली का। पढा था कि
गिरगिट रंग बदलने में माहिर होते हैं और सुना था कि नेता मौका पाकर रंग
यानी पाली बदल लेने हैं, लेकिन एक ही पार्टी के विधायक और उस पार्टी के
प्रमुख के अलग-अलग रंग पहली बार देखने को मिला।
तृणमूल कांग्रेस के फूलबागान इलाके के विधायक पारेश पाल ने उत्तर कोलकाता
स्थित उल्टाडांगा में प्रदर्शन कर रहे आटो चालकों को बेरहमी से पीट कर
अपनी दबंगी का परिचय दिया। विधायक ने कई आटो चालकों को कान-पकड़कर
उठख-बैठक भी कराई। कई चैनलों पर दिखाई गए इस कांड पर जब शुक्रवार ने
विधायक से पूछा क्या कानून हाथ में लेकर आपसे सही किया ? पहले तो वे जवाब
देने से कतराते रहे, लेकिन उनसे कहा गया कि आप के कृत को सभी ने न्यूज
चैनलों में देखा है तो उन्होंने तपाक से कहा जो किया अच्छा किया।
तृणमूल कांग्रेसी विधायक की दबंगगिरी ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया
कि क्या ये वहीं राजनीति दल है जो मां-माटी-मानुष के नारे के साथ
सत्तासीन हुई थी। बीते साल हुए विधानसभा चुनाव के पहले पार्टी के
उम्मीदवार, नेता व समर्थक यह कहते थे कि हम जनता के साथ रहेंगे। हर
सुख-दुख में खड़े दिखेंगे, लेकिन तृणमूल कांग्रेस विधायक पारेश पाल के
जघंन्य कांड ने लोगों को सोचने को बाध्य कर दिया कि हमने यह कैसा
परिवर्तन किया। माकपा रूपी सांप नाथ के स्थान पर तृणमूल रूपी नाग नाथ को
सत्ता की चाबी दे दी।
ध्यान रहे कि इससे पहले में ममता के भतीजे के पुलिस अधिकारी को थप्पड़
मारकर यह बता दिया था कि अब राज्य में तृणमूल की सत्ता है और तृणमूल के
समर्थक जो कर रहे हैं वहीं सही है।
राजनीति के जानकार मानते हैं कि बीते दस महीनों के दौरान ममता के नेतृत्व
वाली तृणमूल सरकार ने कार्य प्रणाली से यह साफ हो गया है कि परिवर्तन के
नाम पर केवल झंडा बदला है। सही मायने में राज्य की स्थित बदतर हुई है।
राज्य की बागडोर की महिला के हाथों में होने के बावजूद न केवल महिलाओं पर
अत्याचार बल्कि बलात्कारों की घटना में काफी इजाफा हुआ है। राज्य की
महिलाओं की सुरक्षा और स्थिति का पता लगाने के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग
का प्रतिनिधिमंडल में राज्य का दौरा कर चुका है।
राजनीति के पंडितों की माने तो लोकतांत्रिक प्रणाली में शासन कानून से
चलता है। ऐसे में, किसी भी दल के नेता, विधायक और पार्षद को कानून हाथ
में लेकर मनमानी करने की छूट नहीं दी जा सकती। यदि कोई सीमा का उल्लंघन
करता है, तो उसकी
चौतरफा भ‌र्त्सना होनी चाहिए। प्रशासनिक कार्यो में रोक-टोक व नेताओं
द्वारा कानून हाथ में लेने से विधि-व्यवस्था बिगड़ सकती है। कानून को
अपना काम करने देना चाहिए। नहीं तो लोग समझेंगे कि सत्ता की ताकत का
प्रदर्शन किया जा रहा है।
इस मामले में बुद्धिजीवियों ने सवाल उछाला कि कोई नेता यह कैसे तय सकता
है कि वह जो कह रहा है या कर रहा है, वही ठीक है?
तृणमूल विधायक ने पूर्व उल्टाडांगा में जिस ढंग से अपने समर्थकों के साथ
सड़क जाम व बसों में तोड़फोड़ कर रहे आटो चालकों की पिटाई की और कान पकड़
कर उठक-बैठक कराया, उसे लेकर माकपा समेत अन्य राजनीतिक दलों के साथ-साथ
आम लोग भी
तरह-तरह के सवाल उठा लाजिमी हैं।
यह ठीक है कि आटो चालकों ने बसों पर पथराव व सड़क जाम कर गलत किया था,
लेकिन उससे पुलिस तो निपट रही थी। ऐसे में जनप्रतिनिधि खुद सजा कैसे दे
सकते हैं? आज यदि विधायक व पार्षद ऐसे अपनी ताकत का इस्तेमाल करेंगे तो
पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच क्या संदेश जाएगा? राजनीति में इस तरह के
रास्ते को आम जनता कतई पसंद नहीं करती हैं, जिससे अशांति को बढ़ावा मिले।
भले ही तृणमूल कांग्रेस के नेता यह कह रहे हो कि माकपा ने माकपा ने आटो
चालकों को भड़का कर कानून-व्यवस्था बिगाड़ने की कोशिश की। किंतु, इसके
लिए कानून तोड़ने की जरूरत क्यों महसूस हुई? अवरोध हटाने के लिए वह
स्थानीय पुलिस की मदद ले सकते थे, पर ऐसा नहीं कर वे समर्थकों के साथ आटो
चालकों को दंडित कर शक्ति प्रदर्शन करने पहुंच गए, जो गैर कानूनी है।
सरकार यदि यह कहती है कि कानून अपना काम करेगा तो सवाल उठना स्वभाविक है
कि किसी भी व्यक्ति को यह अधिकार कहां से मिला कि वह किसी को भी सरेआम
दंडित करे? यदि इसके बाद स्थिति बिगड़ जाती तो इसके लिए जिम्मेवार कौन
होता?
वहीं दरियादिली का दूसरा रंग दिखाते हुए राज्य के मुख्यमंत्री ममता
बनर्जी ने नेताजी इंडोर स्टेडियम में इमामों के सम्मलेन को संबोधित करते
हुए राज्य के तीस हजार इमामों को प्रति महीने ढाई हजार रुपए देने का एलान
कर दिया। ममता के अस एलान पर प्रदेश भाजपा समेत अन्य विपक्षी दलों ने
कड़ी प्रतिक्रिया जाहि्र की। प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष राहुल सिन्हा ने तो
यहां तक कह दिया कि वे इस एलान के खिलाफ अदालत जाएंगे।

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