ईश्वर , प्रेम और भविष्य का अस्तित्त्व नहीं है । आत्मा का भी तो अस्तित्त्व नहीं है । यदि अपनी कोई आत्मा बनायीं है , तब तो वह होगी । वरना आत्मा जैसी कोई चीज़ नहीं होती । इसी प्रकार देश ! क्या देश भी कहीं होता है ? या होना चाहिए ? बहुत से लोग मानते हैं कि धरती तो है , पर देश -प्रदेश ,अरांत - प्रान्त , गाँव - शहर सब मनुष्य के बनाये हुए हैं और इस हिसाब से तो घृणा भी कहीं नहीं होनी चाहिए । जो वह है तो उसे भी मनुष्यकृत मना जाना चाहिए ।
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