मित्रों, कहने को तो बिहार जातीय राजनीति को ७ साल पीछे छोड़कर विकास की
राजनीति के मार्ग पर चल पड़ा है लेकिन वास्तव में यह कथन एक अर्द्धसत्य
मात्र है. पूरा सच यह है कि कहीं-न-कहीं आज भी जातीय वोटबैंक के ठेकेदारों
को प्रदेश और प्रदेश सरकार में पर्याप्त सम्मान प्राप्त है. ऐसे ही दलितों
के वोट बैंक के एक ठेकेदार का नाम है-रमई राम, राजस्व एवं भूमि सुधार
मंत्री, बिहार सरकार. इनकी कुलजमा योग्यता इतनी ही है कि ये जाति से चमार
हैं यानि महादलित हैं. अन्यथा न तो काम करने की तमीज और न ही बोलने का शऊर.
कब और कहाँ जुबान फिसल जाए और कब क्या बोल जाएँ खुद रमई बाबू को भी नहीं
पता. जाने पढ़े-लिखे भी हैं या नहीं परन्तु दुर्भाग्यवश बिहार में
दलितों-महादलितों के बड़े ही नहीं बहुत बड़े और शायद राम विलास पासवान के
बाद सबसे बड़े नेता के रूप में जाने और माने जाते हैं. माननीय के बारे में
सबसे बड़ी और बुरी बात यह है कि श्रीमान में ईन्सानियत नाम की चीज ही नहीं
है. जनाब की तंगदिली का ताजातरीन नायाब नमूना है अपने नौकर अनंदू पासवान
के साथ हुजुर का क्रूर और शातिराना व्यवहार जिसे देखकर शायद एकबारगी शैतान
भी काँप जाए. हुआ यूं कि मंत्री रमई बाबू के विधानसभा क्षेत्र का एक
महादलित मतदाता जब अपने और अपने परिवार को भूखो मरते नहीं देख सका तो जा
पहुँचा मंत्री जी के पटना स्थित आवास पर काम की तलाश में. चूँकि उसकी हालत
जानवरों से मिलती-जुलती थी इसलिए उसे मंत्री जी ने अपने पालतू जानवरों की
देखभाल का जिम्मा सौंप दिया. दुर्भाग्य, अभी उसे पहला वेतन मिला भी नहीं था
कि इसी बीच बेचारे के साथ हादसा हो गया. विगत 9 अप्रैल को मंत्री जी की
गाय ने सींग मार कर उसके पापी पेट को फाड़ डाला. परन्तु मंत्री जी भी जानवर
से कम जानवर तो थे नहीं. इसलिए उस अपने ही खून में नहाए हुए मजलूम का ईलाज
कराने के बदले उसे उसके घर पर यानि मुजफ्फरपुर के मुशहरी प्रखंड के मणिका
चौक पर फेंकवा दिया.
मित्रों, इस अप्रत्याशित वज्रपात से हैरान-परेशान अनंदू
के चाँद तक को रोटी समझनेवाले परिजनों ने पहले तो उसे सरकारी अस्पताल
एस.के.एम.सी.एच.में भर्ती करवाया परन्तु हालत नहीं सुधरने पर उसे एक निजी
अस्पताल माँ जानकी अस्पताल में ले आए जहाँ उस पेट के मारे के पेट का आपरेशन
हुआ. सबसे बड़े आश्चर्य की स्थिति तो यह थी कि सड़क दुर्घटना में घायल की
चिकित्सा करवाले वाले को भी चाय-पानी के लिए तंग-परेशान करनेवाली बिहार
पुलिस मंत्री के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज ही नहीं कर रही थी. जब मामला मीडिया
में आ गया तब जाकर मुजफ्फरपुर पुलिस ने मरणासन्न पीड़ित का फर्द बयान लिया
और अब गेंद पटना सचिवालय थाने के पाले में है. पुलिस के कदम भले ही नहीं उठ
रहे हों लेकिन मौत के कदम नहीं रुके हैं और वह अब भी अहिस्ता-अहिस्ता
अनंदू की तरफ बढती आ रही है. बाद में कई राजनेता और राजनैतिक दल सामने आए.
हंगामा भी खूब हुआ लेकिन आर्थिक सहायता नहीं मिली. मंत्री का तो पुलिस अब
तक स्वाभाविक तौर पर बाल भी बांका नहीं कर पाई है और शायद अनंदू के मर जाने
के बाद भी कुछ नहीं कर पाएगी.मित्रों, इसी बीच २० अप्रैल को जब मंत्री जी अपने विधानसभा क्षेत्र पहुंचे तो अनंदू के ग्रामीण उग्र हो उठे और मंत्री की गाड़ी को घेर लिया. मंत्री समर्थकों ने खुद को खुद ही घायल कर लिया और इल्ज़ाम अनंदू के ग्रामीणों पर लगा दिया. इस मामले में जरूर पुलिस बहुत ज्यादा सक्रिय है. बात भी मामूली नहीं है. माननीय पर हमला हुआ है, भारतीय लोकतंत्र के सम्मान और प्रतिष्ठा पर प्राणघातक आक्रमण हुआ है. आम लोगों की इतनी हिम्मत कि वे अपने द्वारा ही चुने गए मंत्री के अत्याचार का विरोध करने की हिमाकत करें.
मित्रों, यह कहने की बात नहीं है कि मानवता के प्रति ऐसा अपराध अगर किसी सवर्ण मंत्री ने किया होता हो वह सामंतवादी होता और उसका कृत्य सामंतवाद. परन्तु महादलित नेता रमई बाबू चूँकि जन्म से महादलित हैं इसलिए वे सामंतवादी तो हो ही नहीं सकते; परन्तु अगर वे सामंतवादी नहीं हैं तो हैं क्या? क्या वे वास्तव में दलितों के मसीहा हैं या हमदर्द हैं? क्या उनका कुकर्म उन्हें उस महान विशेषण के निकट भी सिद्ध करता है जिससे कभी बाबा साहेब को विभूषित किया गया था. या फिर क्या वे कर्म से आदमी हैं या आदमी साबित किए जा सकते हैं? गाय तो फिर भी पशु थी और इसलिए उसने पशुता दिखाई लेकिन क्या रमई उससे भी बड़े पशु नहीं साबित हो चुके हैं? ऐसे मंत्री अगर सरकार व शासन का सञ्चालन करेंगे तो उसमें फिर हुमेनटेरियन यानि मानवतावादी टच कहाँ से आएगा? कहते हैं कि मटके में पक रहे चावल की हकीकत जानने के लिए पूरी हांड़ी को उलटने की जरुरत नहीं होती बस एक चावल को निकालिए और समझ जाईए. ठीक उसी तरह अगर आपको यह जानना हो कि बिहार में सुशासन किस प्रकार काम कर रहा है तो अपने रमई बाबू के इस महान और मसीहाई कृत्य को देखकर खुद ही जान लीजिए. कितनी बड़ी बिडम्बना है कि एक तरफ तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जनता के बीच सेवायात्रा पर निकले हुए हैं तो वहीं दूसरी और उनके चहेते मंत्री मानवता की ही शवयात्रा निकालने में पिले हुए हैं. मैं यह नहीं चाहता कि मंत्री को सीधे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए और मामले को समाप्त समझ लिया जाए बल्कि पहले अनंदू पासवान के ईलाज की समुचित व्यवस्था सरकारी खर्चे पर की जाए और फिर बाद में मंत्री को निकालना हो तो निकाल बाहर किया जाए. वैसे ऐसे मंत्री को जो मानवता के नाम पर काला टीका हो; को मंत्रिमंडल में रखने का क्या फायदा? उस पर इन जनाब की तो दलित नेता और मसीहा वाली कलई भी उतर चुकी है. क्या पता अब माननीय खुद की विधानसभा सीट भी निकाल पाएंगे कि नहीं? अंत में आदतन मंत्रीजी रमई बाबू को निःशुल्क सीख कि चाहे उन्हें जितने पशु पालना हो पालें लेकिन कृपया पशुता नहीं पालें क्योंकि जब उनके भीतर मानवता ही नहीं बचेगी तो वे आदमी तो नहीं ही रह जाएँगे और शायद मंत्री भी नहीं.
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