- अतुल
जहां खींची गई हरसू फकत मौजों कि रेखा है,
सियासत के नवासों ने कभी क्या दर्द देखा है.
अजाबों-इज्तिराबों की नदी जिस ओर बहती है,
वहां रहते हैं दिलखुश लोग, जीने का सलीका है।।
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बजे जिस ओर मोबाइल तो तेरी याद आती है..
मिले कस्ती को जो साहिल तो तेरी याद आती है,
न जाने किस गली में खो गया हूँ मैं नहीं मालूम,
बजे गलियों में जो पायल तो तेरी याद आती है..
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तबस्सुम का यही परदा नजर में डाल दो मेरी,
किसी की आंख से बहता हुआ आंसू न दिख जाये।...
जहां खींची गई हरसू फकत मौजों कि रेखा है,
सियासत के नवासों ने कभी क्या दर्द देखा है.
अजाबों-इज्तिराबों की नदी जिस ओर बहती है,
वहां रहते हैं दिलखुश लोग, जीने का सलीका है।।
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बजे जिस ओर मोबाइल तो तेरी याद आती है..
मिले कस्ती को जो साहिल तो तेरी याद आती है,
न जाने किस गली में खो गया हूँ मैं नहीं मालूम,
बजे गलियों में जो पायल तो तेरी याद आती है..
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तबस्सुम का यही परदा नजर में डाल दो मेरी,
किसी की आंख से बहता हुआ आंसू न दिख जाये।...
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