१९ मई , एक कातिल (?) का जन्म दिन
नाथू राम गोडसे एक नया दृष्टिकोण
आज का दिन बहुत ही पावन है क्योंकि आज के दिन 19 मई 1910 को बारामती पुणे के एक राष्ट्रभक्त संस्कारित हिन्दू परिवार में एक दिव्य बालक का जन्म हुआ , जो आगे चलकर एक सच्चा समाज सुधारक , विचारक , यशस्वी संपादक व भारत की अखण्डता के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाला महात्मा सिद्ध हुआ, उस वीर का नाम है नाथूराम गोडसे।
नाथूराम गोडसे का असली नाम रामचन्द्र विनायक गोडसे था। उनके पिता विनायक गोडसे पोस्ट ऑफिस में काम करते थे। जब विनायक गोडसे के पहले तीन पुत्र बचपन में ही चल बसे और एक पुत्री जीवित रह गई तो विनायक को आभाष हुआ कि ऐसा किसी शाप के कारण हो रहा है। विनायक गोडसे ने कुलदेवी से मन्नत मांगी कि अगर अब लडका होगा तो उसका पालन - पोषण लडकियों की तरह ही होगा। इस मन्नत के कारण रामचन्द्र को नथ पहननी पडी। बचपन से ही नाक में नथ पहनने के कारण घर वाले उन्हें नाथूराम अथवा नथूराम पुकारने लगे थे।
लडकियों की तरह पाले जाने के बावजूद नाथूराम गोडसे को शरीर बनाने, व्यायाम करने और तैरने का विशेष शौक था। नाथूराम बाल्यकाल से ही आध्यात्मिक संत तथा क्रान्तिकारी विचारों के समाज सेवक और समाज सुधारक थे। जब भी गॉव में गहरे कुएँ से खोए हुए बर्तन तलाशने होते या किसी बिमार को शीघ्र डॉक्टर के पास पहुँचाना होता तो नाथूराम को याद किया जाता। नाथूराम गोडसे ब्रह्मण - भंगी को भेद बुद्धि से देखने के पक्ष में नही थे। वह छुत - अछुत, जाति, पंथ, वर्ग, रंग भेद आदि कुरूतियों को मानवता के विरूद्ध घोर अन्याय, पाप और अत्याचार मानते थे तथा इसके विरूद्ध कार्य करते थे, इसी कारण से उनका कई बार अपने परिवार वालों से झगडा भी हो जाता था।
बचपन में नाथूराम गोडसे अपनी कुलदेवी की मूर्ति के सामने बैठकर तांबे के श्रीयन्त्र को देखते हुए एकाग्रचित होते तो वह ध्यान की उच्च अवस्था में पहुँच जाते थे और इस अवस्था में ऐसे संस्कृत श्लोकों का पाठ करते थे जो उन्होंने कभी पढें भी नही। इस अवस्था में वह घर वालों के प्रश्नों के उत्तर भी देते थे। लेकिन सोलह वर्ष की आयु के होते ही नाथूराम ने ध्यान - समाधि के दिव्य आनन्द को भी राष्ट्र - धर्म के लिए न्यौछावर कर दिया और परिवार जनों के प्रश्नों के उत्तर देना बन्द कर दिया।
नाथूराम गोडसे को हिन्दू धर्म - संस्कृति से विशेष स्नेह था। वह बाबू पैदा करने वाली मैकालेवादी शिक्षा प्रणाली व अंग्रेजी - उर्दु भाषा को भारत के लिए हलाहल विष के समान घातक मानते थे तथा संस्कार व विज्ञान के समुचित समन्वय पर आधारित मनुष्य बनाने वाली गुरूकुल शिक्षा प्रणाली व हिन्दी भाषा को भारत के लिए आदर्श मानते थे।
पुणे से अपना क्रान्तिकारी विचारों का " हिन्दू राष्ट्र " समाचार पत्र निकाल कर उन्होंने महाराष्ट्र की जनता में राष्ट्रभक्ति की भावना का प्रबल संचार कर दिया। जब हैदराबाद के निजाम ने अरब साम्राज्यवादी मानसिकता के अनुसार हिन्दुओं पर जजिया कर लगा दिया था तब आर्य समाज के आह्वान पर वीर महात्मा श्रीनाथूरामजी गोडसे के नेतृत्व में आन्दोलनकारियो का पहला दल हैदराबाद गया था और उन्ही के आन्दोलन के कारण हैदराबाद के निजाम को जजिया कर वापिस लेना पडा था।
गांधी जी अपने सामने किसी चुनौती को स्वीकार न कर पाते थे और वह उन्हें अपने रास्ते से हटाने का पूरा प्रयास करते थे। वह चाहे चौरा - चौरी का कांड हो, सांडर्स की हत्या हो, भगत सिंह की फाँसी हो, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का दिल्ली चलो आन्दोलन हो या रॉयल इंडियन नेवी का मुक्ति समर। गांधी जी वीरोचित सशस्त्र क्रान्ति करने वालो की हमेशा अहिंसा की ढाल लेकर आलोचना किया करते थे और चाहते थे कि ब्रिटिस कानून के अनुसार उन्हें कडी से कडी सजा मिले। अहिंसा के मसीहा गांधी जी ने अफ्रीका से लौटने पर भारत भ्रमण किया और प्रथम विश्वयुद्ध ( 1914 से 1918 ) में जर्मनो की हत्या के लिए अंग्रेजी सरकार की सेना में भारतीय युवाओं को भर्ती कराया, तो क्या वह हिंसा इसलिए नहीं थी कि जर्मनो के संहार के लिए वे सैनिक उन्होंने भर्ती कराये थे !
14 - 15 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था कि गांधी जी ने वहाँ पहुँच कर प्रस्ताव का समर्थन कराया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही कहा था कि देश का बटवारा उनकी लाश पर होगा।
नाथूरामजी गोडसे कतई गांधीजी के विरोधी नहीं थे, लेकिन जब गांधीजी की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीतियों के कारण हिन्दुओं पर होने वाले अत्याचारों की प्रकाष्ठा चरम पर पहुँच गयी, उर्दू को हिन्दुस्तानी के नाम से भारत की राष्ट्रभाषा बनाने का कुचक्र रचा जाने लगा, विश्व की सबसे भयानक त्रासदी साम्प्रदायिक आधार पर भारत का विभाजन करा दिया गया, सतलुज नदी का जल पाकिस्तान को देना और 55 करोड रूपये को भी पाकिस्तान को दिलाने के लिए किया गया गांधी का आमरन अनशन जिसने गोडसे को गांधी का वध करने के लिए मजबूर कर दिया और 30 जनवरी 1948 को गोडसे ने दिल्ली में गांधी का वध कर दिया।
गोडसे ने गांधी वध के 150 कारण न्यायालय के सामने बताये थे , जिन्हें " गांधी वध क्यों " पुस्तक में पढा जा सकता है । एक व्यक्ति की हत्या के अपराध में उन्हें व उनके मित्र नारायण आपटेजी को मृत्युदण्ड दिया गया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया और 15 नवम्बर 1948 को अंबाला ( हरियाणा ) की जेल में वन्दे मातरम् का उद्घोष कर अखण्ड भारत का स्वप्न देखते हुए फाँसी का फंदा चुम कर आत्मबलिदान दे दिया।
नाथूराम गोडसे ने कहा था कि " मेरी अस्थियाँ पवित्र सिन्धू नदी में ही उस समय प्रवाहित करना जब सिन्धू नदी एक स्वतंत्र नदी के रूप में भारत के झंडे तले बहने लगे, भले ही इसमें कितने भी वर्ष लग जाये, कितनी भी पीढियाँ जन्म ले, लेकिन तब तक मेरी अस्थियाँ विसर्जित न करना । " आज भी गोडसे का अस्थिकलश पुणे में उनके निवास पर उनकी अंतिम इच्छा पूरी होने की प्रतिक्षा में रखा हुआ है।
वन्दे मातरम्
जय अखण्ड भारत।
- विश्वजीत सिंह 'अनंत'
साभार :
aagar gandhi brahmin hote to aisa nahi likha jta.darasal gandhi ki hatya aajadi ke bad aakhand bramhin samrajya kayam karne ke liye ki gaye thi.isme godse ne aansdan kar rasta saf kar diya tha
ReplyDeleteaagar gandhi brahmin hote to aisa nahi likha jta.darasal gandhi ki hatya aajadi ke bad aakhand bramhin samrajya kayam karne ke liye ki gaye thi.isme godse ne aansdan kar rasta saf kar diya tha
ReplyDeleteaagar gandhi brahmin hote to aisa nahi likha jta.darasal gandhi ki hatya aajadi ke bad aakhand bramhin samrajya kayam karne ke liye ki gaye thi.isme godse ne aansdan kar rasta saf kar diya tha
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