31.5.12

मुख्यमंत्री पद के नए दावेदारों में उछला ज्योति मिर्धा का नाम

कांग्रेस हाईकमान विचार कर रहा है गहलोत के विकल्पों पर
हालांकि विधानसभा चुनाव अभी दूर हैं, मगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कार्यशैली की वजह से कांग्रेस विधायकों में बढ़ते असंतोष के चलते कांग्रेस में विकल्पों की अटकलबाजियां शुरू हो गई हैं। हालांकि फिलहाल उनके स्थान पर किसी और को कमान सौंपे जाने की संभावना कम ही नजर आती है, मगर अगला चुनाव उनके नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा, इस पर तनिक संदेह किया जा रहा है। हालांकि स्वयं गहलोत अपने मुख्यमंत्रित्व काल के तीन साल पूरे होने पर कह चुके हैं कि अगली सरकार कांग्रेस की ही होगी और मुख्यमंत्री भी वे ही होंगे, मगर उनके इस कथन को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डा. चंद्रभान ने तुरंत नकार दिया कि विधायक ही तय करेंगे कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा।
दरअसल कांग्रेस हाईकमान को उत्तरप्रदेश में मिली करारी हार के बार राजस्थान की चिंता सताने लगी है। यद्यपि यहां भाजपा अंदरुनी कलह से ग्रस्त है, मगर आज भी भाजपा के पास वसुंधरा राजे जैसा आकर्षक चेहरा मौजूद है और संभावना यही है कि उन्हीं के नेतृत्व में भाजपा चुनाव लड़ेगी। यूं कभी गहलोत को भी राजनीति का जादूगर माना जाता था। उसकी वजह ये थी कि प्रदेश कांगे्रस अध्यक्ष पद पर रहते हुए उन्होंने पूरे राजस्थान में कार्यकर्ताओं से काफी नजदीकी हासिल कर ली थी। उसी का परिणाम रहा कि उन्हें मुख्यमंत्री पद से नवाजा गया। उनका पिछला कार्यकाल शानदार रहा, मगर अकेले कर्मचारियों को नाराज कर उन्होंने सत्ता खो दी। हाईकमान ने उन्हें दुबारा मौका दिया, मगर इस बार उनकी चमक पहले जैसी नहीं रही है। उनका यह दूसरा कार्यकाल पिछली बार की तुलना में अच्छा नहीं माना जा रहा। हालांकि उन्होंने लोक कल्याणकारी योजनाएं तो लागू कीं, मगर उसे भुनाने में कामयाब नहीं हो पाए हैं। वे न तो पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा के हमलों का सामना करने में सफल रहे हैं और न ही कांग्रेसियों को एकजुट रखने में कामयाब हो पाए हैं। कांग्रेस में भी उनकी विरोधी लाबी धीरे-धीरे मजबूत होती जा रही है। हाल ही कांग्रेस के असंतुष्ट विधायकों ने एक बार फिर से सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए अपनी गतिविधियां तेज कर दीं। 6 असंतुष्ट विधायकों ने कैबिनेट मंत्री अशोक बैरवा के घर बैठक कर खुलकर सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए। विधायक दौलत राज नायक ने कहा कि 18 एससी विधायक मौजूदा व्यवस्था से नाराज हैं और वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। बैरवा ने भी माना कि 25 से 30 विधायक समस्याओं को लेकर नाराजगी दर्ज करा चुके हैं, जो कि बहुत बड़ा मामला है। इससे पहले भी असंतुष्ट विधायकों ने पिछले दिनों जिस तरह दिल्ली दरबार में जा कर खुले आम शिकायत की, वह बगावत का ही संकेत था।
बहरहाल, इसी से जुड़ी हुई चर्चा ये हो रही है कि इन हालातों के मद्देनजर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी किसी नए चेहरे पर दाव खेलने पर विचार कर सकते हैं। उसमें सबसे ऊपर नाम है अपने जमाने में गुर्जरों के जाने-माने नेता रहे स्वर्गीय राजेश पायलट के पुत्र केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट का, जो कि उनके मित्र भी हैं। वे गुर्जर समाज के एक बड़े तबके का प्रतिनिधित्व भी करते हैं, मगर चूंकि जाट समाज लंबे समय से मुख्यमंत्री पद के लिए संघर्ष कर रहा है, इस लिए उसे भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। किसी जमाने में जाट पूरी तरह से कांग्रेस के साथ थे, मगर अब हालात बदल गए हैं। भंवरी मामले में जेल में बंद पूर्व जनस्वास्थ्य मंत्री महिपाल मदेरणा के प्रकरण सहित अन्य कारणों से भी जाटों की कांग्रेस के प्रति नाराजगी बढ़ी हुई है। इस कारण उसमें भी चेहरे तलाशे जा रहे हैं। परसराम मदेरणा व रामनिवास मिर्धा सरीखे दिग्गजों के बाद यूं हरेन्द्र मिर्धा उभर कर आए, मगर पिछले विधानसभा चुनाव में हार जाने के कारण उनकी चमक कम हो गई है। इसी कड़ी में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डा. चंद्रभान के नाम पर भी कयास लगाए जा रहे हैं, मगर उनसे भी ज्यादा चौंकाने वाला नाम उछला है जाट समाज के देवता समाज दिग्गज नेता रहे स्वर्गीय नाथूराम मिर्धा की पोती नागौर सांसद ज्योति मिर्धा का। पता नहीं इस नए नाम के प्रति कांग्रेस हाईकमान कितना गंभीर है या कहीं योजनाबद्ध तरीके से उनका नाम तो नहीं उछाला जा रहा, मगर नाम चर्चा में आया तो है। तर्क ये दिया जा रहा है कि एक तो वे जाट समाज से हैं, नाथू बाबा की पोती हैं और दूसरा ये कि वसुंधरा के समान आकर्षक चेहरे के कारण उनका मुकाबला कर सकती हैं। वे युवा, खूबसूरत, माडर्न, तेज-तर्रार होने के साथ राजस्थानी, हिंदी व अंग्रेजी पर समान अधिकार रखती हैं, इस कारण उनका व्यक्तित्व करिश्माई आंका जा रहा है। हालांकि उनका नाम एकाएक गले नहीं उतरता, मगर राजनीति में कब क्या हो जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता।

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

प्रताड़ित होने से बेहतर तो पराजित होना : सत्यमेव जयते



बचपन से ये सीख सुनता आ रहा हूँ कि सच प्रताड़ित तो हो सकता है पर पराजित नहीं..और इसी बात पे यकीन रखते हुए कठिन विपदाओं में भी सच का आँचल नहीं छोड़ता...लेकिन कई बार वर्तमान दौर की प्रताड़नायें बर्दाश्त के बाहर हो जाती है तब ये आँचल भले न छूटे, पर उस आँचल पे अपनी पकड़ ढीली होती हुयी जरुर महसूस करता हूँ...तब भी एक विश्वास के साथ किसी न किसी तरह थामे रहता हू उस दामन को..ये सोचकर कि कोई तो होगा जो इन प्रताडनाऑ में साथ देने आएगा, पर नहीं...मूल्यविहीनता के इस दौर में साथ तो दूर कोई उस राह पे बढते रहने के लिए हौसला-अफजाई भी नहीं करता...जो आवाजें आती है वो यही कहती है...समय के साथ चलो...और ये वक़्त सच के चीरहरण का है ये वक़्त सत्य को पैरों तले कुचलने का है...ये वक़्त निजी स्वार्थों में सच को अनदेखा करने का है...तब ये दिल भी कह उठता है कि साला प्रताड़ित होने से बेहतर तो पराजित होना है!

डार्विन का survival of fittest (शक्तिशाली ही जियेंगे, बाकि हासिये पे फेंक दिए जायेंगे) का सिद्धांत भी इसी ओर इशारा करता है कि भैया शक्ति का संचार अपने अंदर करो और ताकतवरों की ही संगत करो...अपने अंदर शक्ति का उत्सर्जन कर ही आप इस दौर में ज़माने से कदमताल मिलाकर आगे बढ़ पाओगे...लेकिन उस शक्ति के लिए हमें भ्रष्टता की संगत करनी होगी, मूल्यविहीनता का आलिंगन करना होगा, ज़माने के हितों से आँखें मूंद कर स्वार्थी होना होगा...क्योंकि वर्तमान दौर की शक्ति इन्ही सब चीजों में निहित है...और भ्रष्टता के पुजारी ही फल-फूल रहे है...चुनाव आपके हाथ में है..एक तरफ चौंधिया देने वाली भौतिक समृद्धि तो एक ओर फटे हुए सच का दामन थामे अकेले खड़े आप...

बात सच के साथ आमिर के बहुचर्चित शो सत्यमेव जयते’’ की भी करनी है...बहुत पहले से इस बारे में कुछ लिखने का सोच रहा हूँ...पर आमिर खान का हॉट फेनहोने के कारण सोचा कि अभी यदि कुछ लिखा तो आमिर के पक्षव्यामोह से ग्रसित होने के कारण संतुलित लेख न लिख पाउँगा...और लेखन में अतिरेक हो जाने का भय बना रहेगा... किन्तु अब चार एपिसोड बीत जाने के बाद भी मुझे यही लग रहा है कि लेखन अतिरेक पूर्ण ही होगा क्योंकि भले इस शो की आलोचना के स्वर भी सुनाई दे रहे हैं...पर मैं शो के उद्देश्य, और विषय-चयन को महान मानते हुए आमिर का और अधिक कद्रदान हो गया हूँ.....

भ्रूण-हत्या, बालयौन-शोषण, दहेज और चिकित्सातंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार को अब तक के चार एपिसोड में प्रस्तुत किया गया है...इन्हें देख कई बार रगों में खून तेज हो जाता है तो कई बार कमबख्त पानी बनकर आँखों से झर भी जाता है...माथे पे सलवटें आ जाती है...तो कई बार शर्म भी कि हम इस माहौल में जी रहे हैं...सच की कड़वाहट गले की नीचे उतरते हुए बहुत तड़पाती है...दिल दिमाग से सवाल पूछता है कि कैसे इंसान इतना बहसी और संवेदनशून्य हो सकता है?

भौतिकता की आस, असीमित इच्छाएं और स्वार्थ अपराधों को जन्म दे रही हैं पर उन अपराधों का रूप इतना भयावह है कि दिल परेशान हो उठता है..हर इंसान अपराधी जान पड़ता है...अपने रिश्ते-नातेदार और करीबी दोस्त भी संदिग्ध निगाहों से देखे जाने लगते हैं...हद इस बात की नहीं कि ये अपराध हो रहे हैं...हद तो तब होती है कि अपराध चौराहों पे नहीं घरों में ही हो रहे हैं...घर में ही हत्या, घरों में ही बलात्कार और घरों के अंदर ही लूट हो रही है...और ये हत्यारे, बलात्कारी और लुटेरे कोई असभ्य, अशिक्षित समाज के नहीं बल्कि सभ्य, सुसंस्कृत, सुशिक्षित समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं...और घर के बाहर इनकी अपनी अलग चमक है, सम्मान है...गोयाकि घर के बाहर चमकीला डिस्टेम्पर है और अंदर की दीवारें उधड़ रही है..ब्रांडेड कमीज के अंदर फटी बनियान है... इंसान का चेहरा उसकी फितरत बयां नहीं कर रहा...चेहरे पे सभ्यता का मुखौटा और दिल में हवस का सांप लहरा रहा है....

आमिर का ये प्रयास सराहनीय है...हालाँकि कुछ लोग इसे उनकी व्यावसायिक बुद्धि मानते है और सिर्फ पैसा कमाना ही एक मात्र उद्देश्य कहते हैं...व्यावसायिकता का होना बुरा नहीं है किन्तु आप उस व्यावसायिकता के जरिये यदि सामाजिक सरोकार का भी कुछ काम कर पाए तो वो उत्तम ही है...सिर्फ धंधा करना और सामाजिक जिम्मेदारी को निभाते हुए बिजनेस करने में फर्क होता है...पैसा कमाना बुरा नहीं है पर आप उस पैसे को कमाने का जरिया किसे बनाते हो ये आपके दृष्टिकोण का परिचायक होता है...शाहरुख खान की आईपीएल वाली टीम भी पैसा कमा रही है और आमिर का सत्यमेव जयते भी..पर दोनों कमाई में फर्क तो है न..और फर्क दोनों के नजरिये में भी है....एक अखवार के संपादक ने कहा था कि सत्यमेव जयते जैसा शो न्यूज चैनल के ४ इंटर्न ही बना सकते हैं...शायद वो सही कह रहे हों..पर क्या वो न्यूज चैनल वाले इतनी व्यापकता दे पाते अपने शो को...शायद नहीं...तो भले आमिर की लोकप्रियता ही इस शो को चर्चित बना रही हो...पर प्रशंसनीय तो ये भी है न कि उन्होंने अपनी लोकप्रियता का प्रयोग किस दिशा में किया...सोनी टीवी पे प्रसारित शो क्राइम पेट्रोल भी उम्दा प्रयास है..किन्तु उसका कथ्य कुछ अलग है.....

खैर, इस शो में दिखने वाले कड़वे सच एक बात और बयां करते हैं कि इन सारे अपराधों के पीछे कहीं न कहीं हमारी कमजोर बुनियाद भी जिम्मेदार है...जो हमें अपने परिवार से और प्रारंभिक शिक्षा से मिलती है...बच्चों को बचपन से ही महत्वाकांक्षाऑ का पाठ पढाया जाता है...नाम,पैसा,शोहरत कमाने के लिए ही जीवन है ऐसे उपदेश मिलते हैं...और यही चीज उन्हें अपनी शिक्षा पद्धति से सीखने को मिलती है...पर इन महत्वाकांक्षाऑ में नैतिकता और सामाजिक मूल्य हासिये पे फेंक दिए जाते हैं...गांधीजी कहते थे कि शिक्षा की बुनियाद चरित्र होना चाहिए, बाकि चीजें तो बच्चे अपनी प्रतिभा और माहौल से स्वतः सीख लेंगे...किन्तु शिक्षा ने उस बुनियाद को ही मजबूत बनाने की कोशिश नहीं की..इससे न तो चरित्र विकसित हो पाया नाही दृष्टिकोण व्यापक बन पाया!

बहरहाल, इस शो में नकारात्मकता के साथ कुछ सकारात्मक पहलु भी उजागर किये जाते है पर वो बहुत थोड़े है...और बरबाद होते इस समाज को आबाद करने में नाकाफी हैं...किन्तु वो सकारात्मक प्रयास राहत देते हैं...और कभी तो सवेरा होगाकी उम्मीद जागते हैं...इन छुटमुट सी रोशनियों का सहारा लेकर हमें भी सच का साथ देना है...और सच को जिन्दा रखने के लिए अपने-अपने स्तर पर प्रयास करते रहना है...सच पे से विश्वास खो देना कभी समस्या का समाधान नही हो सकता...भले इस डगर में आप अकेले हों लेकिन फिर भी आपको सच का दिया लेके इस घनघोर दुनिया के जंगल में अपने-अपने स्तर पे रोशनी बिखेरते रहना है...आपकी ये रोशनी कभी न कभी, किसी न किसी वन में भटके पथिक की जिंदगी में उजियारा जरुर लाएगी............


अब अलसी से दौड़ेंगी गाड़ियां


अब अलसी से दौड़ेंगी गाड़ियां

Updated on: Sat, 05 Nov 2011 06:32 PM (IST)
 
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अब अलसी से दौड़ेंगी गाड़ियां
संवाद सूत्र, नवांशहर : पेट्रोल व डीजल के सूख रहे तेल भंडार की भरपाई के तौर केसी इंजीनियरिंग कालेज के छात्रों ने फ्यूचल फ्यूल की खोज से हैरान कर दिया है, जिसे पेट्रोल व डीजल के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल कर गाड़ियां दौड़ाई जा सकेंगी। कालेज के मेकेनिकल विभाग के सातवें सेमेस्टर के दस छात्रों ने ऐसा दम दिखाया कि उन्होंने अलसी के यूजड तेल का इस्तेमाल कर बायो डीजल बना डाला है। इन खोज करने वाले छात्रों ने दावा किया है कि यूरोप में बायो डीजल से गाड़ियां चलाने का परीक्षण किया जा चुका है।
केसी ग्रुप के सीईओ एचएस भंडाल की देखरेख में हुए सेमिनार में छात्रों ने बायोडीजल बनाकर सबको अपनी इस खोज से अचंभित कर दिया, जबकि यह बायोडीजल यूरोप में गाड़ियों में डाल कर सफलता पूर्वक प्रयोग किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के मुख्य मेहमान केसी ग्रुप के वाइस चेयरमैन हितेश गांधी रहे। कालेज प्रिंसिपल डा. नागराज ने बताया कि यह प्रोजेक्ट मेकेनिकल विभाग के एचओडी गौरव द्विवेदी व डिप्टी एचओडी गीतेश गोगा के योग्य मार्गदर्शन में छात्र बेअंत सिंह, बलविंदर सिंह, कुलविंदर सिंह, हरसंगीत सिंह, मोहित कुमार, जगमोहन सिंह, गुरप्रीत सिंह, अनुज धीमान, गौरव पलियाल व नवीन पाल ने तैयार किया है। छात्रों ने बताया कि इस प्रक्रिया के पहले चरण में लैब में अलसी का प्रयोग हो चुका तेल लिया, जिसमें मैथनोल, सोडियम हाइड्रोक्साइड डालकर तीन घंटे तक हॉट प्लेट पर गर्म किया, फिर उसका तापमान समय-समय पर माप कर उसे फिल्टर किया। एक दिन रखने के बाद देखा कि इसमें से ग्लीसरीन नीचे रह जाती है, जिसे अलग किया गया। फिर बायोडीजल को अलग किया। गर्म करके पर जो पानी बीच में आ जाता है, उसको उड़ाया गया। इस प्रकार यह बायोडीजल तैयार हो गया, जिसको डीजल व पेट्रोल की जगह डाल कर गाड़ी को चलाया जा सकता है। इसके बाद इंजीनियर छात्रों ने इसको डीजल इंजन पर चला कर चेक भी किया। बायोडीजल के बलेंड बना कर अलग अलग लोड पर उसकी गुणवता की जांच की, जो कि सही पाई गई। एचओडी द्विवेदी ने बताया कि इसको अगर ज्यादा मात्रा में तैयार किया जाए तो इस पर कम कॉस्ट आएगी, बायोडीजल को यूरोप में प्रयोग किया जा रहा है, वहां पर कुछ स्थानों पर डीजल व पेट्रोल का इस्तेमाल काफी कम कर दिया गया है। उन्होंने बताया कि इस बायोडीजल से प्रदूषण कम होगा और गाड़ियों की आयु बढ़ने के साथ-साथ आवाज भी कम आती है। अभी इस पर और रिसर्च जारी है, जिसमें सोडियम व मैथनोल की मात्रा को घटा तथा बढ़ाकर रिस्पांस सरफस मैथलॉजी की मदद से काम किया जा रहा है। अलसी के तेल के साथ अन्य रिफाइंड का भी प्रयोग किया जाएगा। इस बायोडीजल से भविष्य में देश को फायदा होगा, इसे फ्यूचर फ्यूल कहा जाए तो अतिश्योक्ति न होगी।

29.5.12

पिछली सदी का झूट धडल्ले से चल रहा है , पढ़े लिखे मूर्खों में , पूरे विश्व में


the biggest lie of last century, still running good. इस सदी का सबसे बड़ा झूट :

  
when i searched about darwin's theory on internet, i found following adjectives for it. : 


wrong 
lie 
science 
absurd 
unscientific 
false 
hoax 
ridiculous 
funny 
imagination 
stupid 
misleading
चूँकि यह लेख अंग्रेजी में है , इसलिए इसे पढ़ने के लिए निचे पर क्लिक करें :

Ganga ke Kareeb: तीर्थ नगरी की विवशता................!

Ganga ke Kareeb: तीर्थ नगरी की विवशता................!: जैसे -जैसे गर्मी से पारा बढता जा रहा है वैसे वैसे तीर्थ नगरी की मुशकिलें भी  बढती जा रही है । भीषण गरमी के कारण बीमारियां तो अपने पाव पैसार ...

भाजपायी किसानपुत्र  के राज में और इंकाई किसानपुत्र के विस क्षेत्र में ही किसान के नाम पर गेहूं बेचते पकड़े गये व्यापारी
प्रदेश कांग्रेस कमेटी इन दिनों इस मामले में काफी गंभीर हो गयी हैं कि धरने और आंदोलनों में स्थानीय नेताओं और कार्यकर्त्ताओं की उपस्थिति अनिवार्य रूप से हो। इस बार यह बताया जा रहा है कि प्रदेश कांग्रेस ने पर्यवेक्षकों की रपट पर यह तलब किया हैं कि इस       धरने में कौन कौन नेता उपस्थित थे और कौन कौन नहीं? प्रदेश कांग्रेस की इस पहल का कोई असर होता हैं या नहीं? यह तो आने वाले समय में ही पता चल पायेगा। इस बैठक में संभागीय संगठन मंत्री ने सभी की जम कर क्लास ली हैं। जहां एक तरफ संगठन के पदाधिकारियों को सीख दी गयी हैं तो वहीं दूसरी ओर भाजपा के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को भी सख्ती के साथ कहा गया हैं कि वे कार्यकर्त्ताओं को साथ लेकर चलें। अपने आप को किसान पुत्र कहने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के राज्य में किसानों को अपना गेहूं बेचने में पसीने छूट रहें हैं।जिले में इकलौते इंका विधायक हरवंश सिंह भी आपने आप को किसान पुत्र कहलाना पसंद करते हैं। लेकिन कमाल की बात तो यह हैं कि किसानपुत्र मुख्यमंत्री के राज में किसानपुत्र विस उपाध्यक्ष के विधानसभा क्षेत्र में ही तीन स्थानों पर किसानों का शोषण करने वाले व्यापारियों को दंड़ित किया गया। जबकि इसके कुछ ही दिन पहले क्षेत्रीय विधायक हरवंश सिंह ने खरीदी केन्द्रेां का दौरा किया था। अधिकांश केन्द्रों पर जिले के प्रशासनिक अमले ने इसे रोकने की कोई कोशिश नहीं की हैं। इस पर यदि नियंत्रण नहीं किया गया तो किसानो का शोषण कभी भी रुकने वाला नहीं हैं।  
प्रदेश कांग्रेस की पहल चर्चित -प्रदेश कांग्रेस कमेटी इन दिनों इस मामले में काफी गंभीर हो गयी हैं कि धरने और आंदोलनों में स्थानीय नेताओं और कार्यकर्त्ताओं की उपस्थिति अनिवार्य रूप से हो। पिछले दिनों जिला कांग्रेस कमेटी ने प्रदेश के निर्देश पर बरेली में गोली से मारे गये कृषक की मौत पर धरना आयोजित किया गया था। इसमें प्रदेश सरकार द्वारा गेहूं खरीदी में किसानों के साथ की जा रही ज्यादतियों को उजागर करने के साथ साथ बरेली में मृत किसान प्रजापति को श्रृद्धांजली भी अर्पित की जाना था। जिला इंकाध्यक्ष हीरा आसवानी और नगर अध्यक्ष इमरान पटेल ने सभी से उपस्थिति की अपील की थी। वैसे तो आम तौर पर देखा जाता हैं कि जिला इंका द्वारा आयोजित कई कार्यक्रमों में नगर मे रहने वाले पदाधिकारी ही उपस्थित नही रहते हैं।ऐसे भी कार्यक्रम हुये हैं जिनमें प्रदेश कांग्रेस ने पर्यवेक्षक नियुक्त किये थे लेकिन उनमें भी यही नजारा देखने को मिलता रहा हैं। हां ऐसा कभी नहीं होता कि जिला इंका के इकलौते विधायक हरवंश सिंह जब किसी कार्यक्रम मेंआयें तो कोई भी पदाधिकारी या नेता ना आये। वैसे कई कांग्रेसी तो यह कहते भी देखे जाते हैं कि बहुत से पदाधिकारी तो ऐसे हैं जिनको कांग्रेस से कोई लेना देना ही नहीं हैं। उनकी निष्ठा तो सिर्फ हरवंश सिंह के प्रति है और उनके कारण ही वे पदाधिकारी बन पाये हैं। ऐसे में उनसे कांग्रेस की मजबूती और कमजोरी की अपेक्षा करना ही बेमानी हैं। लेकिन इस बार यह बताया जा रहा है कि प्रदेश कांग्रेस ने पर्यवेक्षकों की रपट पर यह तलब किया हैं कि इस धरने में कौन कौन नेता उपस्थित थे और कौन कौन नहीं? प्रदेश कांग्रेस की इस पहल का कोई असर होता हैं या नहीं? यह तो आने वाले समय में ही पता चल पायेगा।
संभागीय संगठन मंत्री ने की जमकर खिचायी -बीते दिनों जिला भाजपा की कार्यकारिणी की बैठक हुयी। इस बैठक में संभागीय संगठन मंत्री ने सभी की जम कर क्लास ली हैं। बताया जाता हैं कि जहां एक तरफ संगठन के पदाधिकारियों को सीख दी गयी हैं तो वहीं दूसरी ओर भाजपा के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को भी सख्ती के साथ कहा गया हैं कि वे कार्यकर्त्ताओं को साथ लेकर चलें। संभागीय संगठन मंत्री ने कार्यकर्त्ताओं को भी हिदायत दी हैं कि वे आपसी मन मुटाव के चलते ऐसा कोई काम ना करें जिससे पार्टी को नुकसान हो। बताया जाता हैं कि संभागीय संगठन मंत्री ने अलग अलग कई दौर की बैठक कर सबसे हालात की जानकारी ली और जिस पदाधिकारी या जनप्रतिनिधि की शिकायत मिली तो शिकायत करने वालों को अलग कर तुरंत ही संबधित को सख्ती से सीख दी गयी कि वे सबको साथ लेकर चलें।इस बैठक में जिले के सभी विधायक नीता पटेरिया,शशि ठाकुर और कमल मर्सकोले तथा नपा अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी सहित सभी प्रमुख जनप्रतिनिधि उपस्थित थे। इसके साथ ही संगठन के सभी पदाधिकारी भी मौजूद थे। इसके अलावा जिले के प्रभारी मंत्री नाना भाऊ और केबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त डॉ. ढ़ालसिंह बिसेन और नरेश दिवाकर तो बैठक में उपस्थित थे लेकिन सांसद के.डी.देशमुख गैरहाजिर थे। राजनैतिक क्षेत्रों में व्याप्त चर्चओं के अनुसार तीसरी पारी खेलने की तैयारी में भाजपा कोई कसर छोड़ने के मूड में नहीं हैं और अब जब विधानसभा चुनाव में मात्र 18 महीने ही शेष बचें हैं तब सभी कार्यकर्त्ताओं के आक्रोश एवं असंतोष को कम करने के लिये जतन किये जा रहे हैं। जबकि कार्यकर्त्ताओं की आम    शिकायत यह हैं कि पिछले विस चुनाव के समय भी ऐसा ही किया गया था और जब चुनाव पार्टी तीज गयी थी तो उसके द्वारा जिताये गये नेता ही उनकी बात नहीं सुनते थे। अब फिर चुनाव आ रहा हैं तो मान सम्मान देने की बात कहीं जा रही हैं। लेकिन संभागीय संगठन मंत्री ने जिन तीखे तेवरों में सभी नेताओं की क्लास ली हैं उससे सभी भाजपा नेता भौंचक हैं और इसे लेकर तरह तरह के राजनैतिक कयास लगाये जा रहें हैं। कहीं जिले में नेतृत्व परिवर्तन के चर्चे चल रहें हें तो कहीं यह कहा जा रहा हैं कि अधिक शिकायतें आने वाले जनप्रतिनिधियों का भविष्य भी उज्जवल नहींे रहेगा। अनुशासनप्रिय मानी जाने वाली भाजपा में जिले में इस समय इसकी ही सबसे बड़ी कमी देखी जा रही है जिसके लिये भविष्य में कुछ सख्त कदम भी उठाये जा सकते हैं।
किसानपुत्र के क्षेत्र में पकडे गये गेहूं बेचते व्यापारी-गेहूं खरीदी में प्रदेश सरकार के दावे खोखले साबित हो रहें हैं। अपने आप को किसान पुत्र कहने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के राज्य में किसानों को अपना गेहूं बेचने में पसीने छूट रहें हैं। दूसरी तरफ कुचिया व्यापारियों ने खरीदी केन्द्रों से तालमेल बिठाकर अपनी चांदी कर ली हैं। मनमानी तौल और अव्यवस्था के चलते दो जगहों पर दो किसान गोली का शिकार भी हो गये हैं। जिले में इकलौते इंका विधायक हरवंश सिंह भी आपने आप को किसान पुत्र कहलाना पसंद करते हैं। लेकिन कमाल की बात तो यह हैं कि किसानपुत्र मुख्यमंत्री के राज में किसानपुत्र विस उपाध्यक्ष के विधानसभा क्षेत्र में ही तीन स्थानों पर किसानों का शोषण करने वाले व्यापारियों को दंड़ित किया गया। जबकि इसके कुछ ही दिन पहले क्षेत्रीय विधायक हरवंश सिंह ने खरीदी केन्द्रेां का दौरा किया था। केवलारी के एस.डी.एम. ने क्षेत्रीय व्यापारियों पर कार्यवाही कर भारी जुर्माना भी लगाया हैं। छपारा में तो हद ही हो गयी जहां यू.पी.,पंजाब और हरियाणा का पुराना गेहूं बेचते एक मामला रंगे हाथों पकड़ा गया। ऐसे कुछ मामले जो पकड़े गये वो तो ठीक है लेकिल राजनैतिक संरक्षण प्राप्त स्थानीय व्यापारियों ने किसानों का कितना शोषण किया होगा इसकी कल्पना तो की ही जा सकती हैं। जब राजनैतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों में यह आलम हैं तो अन्य स्थानों क्या ना हुआ होगा? समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदी की प्रक्रिया में इतनी अधिक खामियां है जिनके कारण भ्रष्टाचार करने वालों को खुला मौका हाथ लग गया था। इसीलिये परेशानियों से बचने के लिये कई किसानों ने तो अपना माल कुचिया व्यापासरियों के माध्यम से ही बिकयावा। इसमें या तो किसान ने कुछ कम पैसे में अपना माल बेच दिया या निर्धारित मात्रा से कम गेहूं होने के कारण किसान के गेहूं के साथ कुचिया व्यापारियों ने अपना गेहू भी समर्थन मूल्य पर बेच लिया जिसमें उसे 100 से 150 रु. प्रति क्विंटल तक का मुनाफा मिल गया। लेकिन अधिकांश केन्द्रों पर जिले के प्रशासनिक अमले ने इसे रोकने की कोई कोशिश नहीं की हैं। इस पर यदि नियंत्रण नहीं किया गया तो किसानो का शोषण कभी भी रुकने वाला नहीं हैं। “मुसाफिर”          
साप्ताहिक दर्पण ढूठ ना बोले,सिवनी से साभार

जीवंत नदी गंगा

गंगा जैसे हमारी आत्मा का प्रतीक हो गई है क्या कारण होगा गंगा के गहरे प्रतीक बन जाने का की हजारो वर्ष पहले कृष्ण भी कहते है की नदियों में मै गंगा हु? गंगा नदियों में विशेष उस अर्थ में नहीं है। गंगा से बड़ी विशाल नदिया प्रथ्वी पर है। गंगा कोई लम्बाई में, विशालता में, चौडाई में किसी द्रष्टि से कोई बहुत बड़ी गंगा नहीं है। ब्रह्मपुत्र है, और अमेजन है, और ह्वांगहो है, और सेकड़ो नदिया है जिनके सामने गंगा फीकी पड़ जाए। पर गंगा के पास कुछ और है, जो प्रथ्वी पर किसी भी नदी के पास नहीं है और उस कुछ और के कारण भारतीय मन ने गंगा के साथ एक ताल-मेल बना लिया। एक तो बहुत मजे की बात है की पूरी प्रथ्वी पर गंगा सबसे ज्यादा जीवंत नदी है, अलाईव. सारी नदियों का पानी आप बोतल में भरकर रख दे सभी नदियों का पानी सड जायेगा, गंगा भर का नहीं सड़ेगा। गंगा में ईतनी लाशे हम फेकते है। गंगा में हमने हजारो-हजारो वर्षो से लाशें बहाई है। अकेले गंगा के पानी में सब कुछ लीन हो जाता है,हड्डी भी। हड्डी भी पिघलकर लीन हो जाती है और बह जाती है और गंगा को अपवित्र नहीं कर पाती । गंगा सभी को आत्मसात कर लेती है, हड्डी को भी। गंगा अछूती बहती रहती है। उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता. लेकिन यह बड़े मजे की बात है की जो नदी गंगा में नहीं मिली , उस वक्त उसके पानी का गुड्धर्म और होता है और गंगा में मिल जाने के बाद उस पानी का गुड्धर्म और हो जाता है। क्या होगा कारण ? केमिकल तो कुछ पता नहीं चल पता। रूप से इतना तो पता चलता है की विशेषता है और उसके पानी में खनिज और केमिकल्स का भेद है। लेकिन एक और भेद है वह भेद विज्ञान के ख्याल में आज नहीं तो कल आना शुरू हो जाएगा और वह भेद है गंगा के पास लाखो लाखो लोगो का जीवन की परम आवस्था को पाना। जब भी कोई अपवित्र व्यक्ति पानी के पास बैठता है पानी के भीतर प्रवेश करने की बात तो अलग पानी के पास बैठता भी है तो पानी प्रभावित होता है। पानी उस व्यक्ति की तरंगो से आच्छादित जाता है।लाखो वर्ष से भारत के मनीषी गंगा के किनारे बैठकर प्रभु को पाने चेष्टा करते रहे है। और जब भी कोई एक व्यक्ति ने गंगा के किनारे प्रभु को पाया है तो गंगा उस उपलब्द्धि से वंचित नहीं रही, गंगा भी आच्छादित हो गई है। (ओशो के विचार)

28.5.12

धर्म आराधना के साथ राष्ट्र सेवा:                      श्रीविनायक दामोदर सावरकर ...

धर्म आराधना के साथ राष्ट्र सेवा:

                     श्रीविनायक दामोदर सावरकर 

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:                       श्री विनायक दामोदर   सावरकर   स्वातंत्र्यवीर सावरकर का स्वतंत्र भारत में क्या स्थान है ? न तो उन्हें भारत रत्न दिया गया , न संसद के केंद्रीय कक्ष में उनका चित्र लगाया गया, न संसद के अंदर या बहार उनकी मूर्ति स्थापित की गयी, न उन पर अभी तक कोई बढ़िया फिल्म बने गयी, न उनकी जन्म-शताब्दी मनाई गयी और न ही उनकी जन्म-तिथि और पुण्य-तिथि पर उनको याद किया जाता है जबकि वो इसके सबसे अच्छे उमीदवार थे कम से कम कुछ भ्रष्ट, ढोंगी, और विलासी नेताओ से तो अच्छे तो थे ही पर ये हमारे देश का एक तरह से दुर्भाग्य ही है की माँ भारती के सच्चे पुत्र को आज विदेशी कथित भारतीय सरकार श्रधांजली भी नहीं देती | आइये हम जानते है अपने वीर सावरकर के बारे में कुछ |

यादें

मेरे कई साथी गाँव कक्षा 1 से 8 तक 5 से 8 किलोमीटर पैदल चलकर आते जाते थे. पर आज तो मेरे बच्चों से ज्यादा उनकी माँ को फिक्र रहती कि 2 किमी देर साइकिल जाने में बच्चा थक जायेगा। ग्लूकोज पाउडर मैने बिना किसी जरुरत के पहली बार अपनी मेहनत (घर काम होने पर एक मजदूर मेरी जिद पर कम लगाया गया था और उसकी मजदूरी की बजत के बदले मे माँ से जिद करके एक ग्लूकोज पाउडर मगाया था) की कमाई से पिया था। सच कहता हूँ मेरी दिन कच्चे मकान के लिए मजदूरो के साथ मिट्टी उठवाता था फावड़ा चलाता था और शाम को जब ग्लूकोज पाउडर एक गिलास पानी में घोल कर जब माँ के हाथ से पीता था तो माँ की सारी चिंता और मेरी थकान मिट जाती थी यह घटना मेरी 10-11 साल की उम्र की है। आज मेरे पास अपना परिवार है। घर में ग्लूकोज पाउडर भी है। पर माँ नहीं है। यह सब मैं माँ-बाप की तश्वीर के सामने बैठकर लिख रहा हूँ और उनको भी याद कर रहा हूँ।

''लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं'

वन्दे मातरम दोस्तों,

माना तुम्हारी वाह के, हकदार हम नही,
पल में भुलाये जाएँ, वो फनकार हम नही..........  


क्यों सूलियों पे हमको चढाते हो बारहा,
सबको खबर है यारा, गुनाहगार हम नही.............

कशमीर से कन्याकुमारी तक सब हमारा है,
फकत यूपी, उड़ीसा या बिहार हम नही.............

गरजो, उठो, बतादो, सत्तानसिनों को,
अब और जुल्म सहने, तैयार हम नही.............

तख्तो- ताज पल में, बदल दे वो गीत है,
सिर्फ प्यार के ही यारा, अशआर हम नही .............

सोचता है मेरा, ज़िहन भी बगावतें,
तुम ठूंसो जिसमे अपनी, वो भंगार हम नही............

अपनी पे गर आ जाएँ, कलम के हम सिपाही,
जमाना न बदल दे, वो हथियार हम नही...........

जो तू डगर ना आया, ना कहेंगे हम "दीवाना"
''लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं''............

तेरे रोकने से रुके वो रफ्तार हम नही

वन्दे मातरम दोस्तों,

वादा जो तोड़ दे ऐसे यार हम नही,
ये बात अलग है कि तेरा प्यार हम नही,

हर हाल में हर हाल ही खुश रहते हैं सदा,
पतझड़ में चली जाए वो बहार हम नही,

माना की आज चार सू आस्तीनों में सांप हैं,
पीठ में खंजर गढाए गद्दार हम नही,

गंगा की तरह से अटल मेरा उफान है,
तेरे रोकने से रुके वो रफ्तार हम नही,

तेरी नौकरी से पेट पलता जानते हैं हम,
गला गरीब का काटे वो हथियार हम नही,

नौनिहाल तेरे राज भूखे पेट सोते है,
भूखा रखे क्यों महंगाई की मार हम नही,

सोती हुई जवानियों अंगड़ाइयाँ तो लो,
ये भागेगे कहेंगे माफ़ करो सरकार हम नही,

सलीब पर चढ़ा के हमे खुश तो बहुत हो,
"लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नही"

हम भारत के लोग

                    केजरीवाल हो या अन्ना या फिर बाबा रामदेव या उनकी तरह सत्ता-प्रतिस्ठानों की नीति और नियत पर सवाल खड़ा करने वाला कोई ओर आम आदमी सत्ता-प्रतिष्ठानों की सर्वोच्चता के दंभ का शिकार हो रहा है ! इन लोगों की भाषा-शैली पर सवाल खड़े किये जा सकतें है पर केवल इस कारण से मूल-मुद्दों को दरकिनार नहीं किया जा सकता !
               आज मूल्यों, नैतिकता और उसूलों की सिर्फ बातें ही होती है पर हकीकत में तो तमाम नेता घटिया परम्पराओं को ही बढ़ावा दे रहें है ! दागी लोगों को दरकिनार कर दाग मिटाने के बजाय सवाल खड़े करने वालों को ही कटघरे में खड़ा किया जा रहा है मानों वे ही दागी हो! यह मात्र दंभ है ! 'सर्वोच्चता का दंभ' ! सोचने की बात है की एक आदमी के कहे को इतनी अहमियत क्यों ? जाहिर है सर्वोच्च-संस्था के दंभ में भी कहीं कुण्ठा है, टीस है, आत्म-स्वीकृति है - सर्वोच्च न होने की !
               समूह में होने पर सर्वोच्च होने और सर्वोच्चता  बनाये रखने का ढोल पीटने वाले वही जन-प्रतिनिधि जन-सभाओं में जनता-जनार्दन के सामने 'त्वमेव माता च पिता त्वमेव' की मुद्रा में साष्टांग करते नज़र आतें है ! इतना ही नहीं महामना भीमराव आंबेडकर के नेतृत्व में सविंधान सभा  द्वारा बनाये गए  सविंधान की उद्देशिका में ही कहा गया है - "हम,  भारत के लोग ............इस सविंधान को अंगीकृत, अधिनियमित और  आत्मार्पित करते है" इस प्रकार यह  'restatement of social compact' हुवा  और इस संविधान से ही सत्ता-प्रतिष्ठान का सारा ताना-बना बुना गया है ! 
                   माननीय न्यायपालिका ने भी 'सविंधान की उद्देशिका'को सविंधान की आत्मा करार देते हुवे बार-बार निर्णित किया है की कोई भी सविंधान संशोधन इस के विपरीत होने पर असंवैधानिक होगा ! तो फिर बड़ा कौन ? 
                  इतना ही नहीं विधायिका, कार्यपालिका और माननीय न्यायपालिका ही नहीं केंद्र और राज्य सरकारों और यहाँ तक की महामहिम राष्ट्रपति  और महामहिम राज्यपाल महोदय तक में बड़ा कोन का प्रश्न बार-बार उठ खड़ा होता है ! मात्र  विधिक परिप्रेक्ष्य में देखा जाय तो ये सभी सत्ता-प्रतिष्ठान अपने-अपने दायरे में  सर्वोच्च है  पर ये सर्वोच्चता स्वीकार्यता से है ! प्रजा जब चाहे अपनी सर्वोपरिता साबित कर देती है  यह तो  लोकतंत्र है लोक-शक्ति के आगे तो सैन्य-तंत्र और तानाशाही भी धुल-धूसरित हो जाती है फिर भी सर्वोच्चता का दंभ ? कुलमिलाकर सर्वोच्च संस्थाओं में सुधार की न इच्छा-शक्ति है और न कोई स्पस्ट रणनीति ! अब तो नीति ही नहीं नीयत में ही खोट नज़र आने लगा है ! ऊपर से सर्वोच्चता का दंभ आमजन को ही चेतना होगा !       
                     यह दंभ राजनेताओं में ही नहीं सत्ता-प्रतिष्ठानों में भी हावी होता जा रहा है ! 'अधीनस्थ संस्थाओं को सर्वोच्च संस्था की अधीनता स्वीकार करनी ही होगी'! केंद्र आये दिन राज्यों को और राज्य स्थानीय निकायों को हड़काते रहतें है ! किसी भी राजनितिक पार्टी का अध्यक्ष अपनी तो, क्षत्रप अपनी धोंसपट्टी दिखाते नज़र आते है ! इसी मजबूरी में  इतना बड़ा मंत्रिपरिषद घोषित होता है की स्वयं मुखिया को भी अपने मंत्री और उसके पद तक  अपने पूरे कार्यकाल में याद नहीं हो पाते  और इस बन्दर-बाँट में इसको या उसको पटाने या किसी को हटाने के चक्कर में ४-६ माह में ही मंत्रिमंडल का नए सिरे से गठन हो जाता है !अन्दर और बाहर के समर्थन की बेचारी सरकारें विकास न कर पाने का रोना ही रोती रहती है,पर पैसा और पद देकर संतुष्ट तो सभी को करना पड़ता है
केद्रीय या राज्य मंत्री हो , स्वतंत्र प्रभार हो या राष्ट्र पर भार 
मुलायम ममता हो या माया,सत्ता सुख चाहे सबकी काया !
एक वस्त्र धारी बाबा को, लेन-देन का अस्त्र बनाया !
दिल से निकला बापू, जेबों में न समाया !
छोटा पड़ा भारत, स्वित्ज़रलेंद है भाया ! 
दागी हमको न बोलो, हमने दाग छुड़ाया ! (अपनी गरीबी और ईमानदारी का दाग)
दागी तो तुम हो, दाग पोंछना नहीं आया !
आलतू जलालतू, पड़े चिल्ला रहे फालतू (PCRF)!
सीधा उलझो मत, पहले सीखो आई बला को टाल तूं !

आज विनायक दामोदर सावरकरती है की jayanti hai



आज विनायक दामोदर सावरकरती है की जयं। हम में से कितनों को याद है।सावरकर का महत्व केवल इसलिये नही है कि उन्होने हिंदू महा सभा की स्थापना की या कालापानी की सजा काटी अपितु मदनलाल धींगरा,मैडम कामा,चंपक रमन पिल्लई या यो कहें उस दिनों विदेश में रह कर क्रांति  की अलख जगाने वालों में प्रथम पंक्ति में उनका नाम आता है।वीर सावरकर पर सांप्रदायिक होने का आरोप लगाने वालों को तो शायद ज्ञात भी न होगा कि १८५७ की क्रांति को अंग्रेजों ने तो सिपाही विद्रोह कहा था वे सावरकर ही थे जिन्होने २३ वर्ष की अवस्था मे विदेश में रहते हुये अल्प साधनों से १८५७ का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम  पुस्तक लिखकर मौलवी अहमदउल्ला शाह को उस संग्राम का सबसे बडा नायक सिद्ध किया।साहित्यकार,इतिहासकार,दार्शनिक,चिंतक आदि के उनके व्यक्तित्व के इतने आयाम हैं कि उनके हर पक्ष पर एक पुस्तक लिखी जा सकती है।आज़ाद भारत ने उनके इस योगदान का सम्मान करते हुये उन्हे गांधी की हत्या के बाद जेल में डालकर दिया।वे वीर सावरकर ही थे जिन्होने सुभाष बाबू को विदेश जाकर सशस्त्र क्रांति करने का सुझाव दिया था।जीवन के अंतिम दिनों मे जब जवाहरलाल नेहरू ने उन्हे से कहा कि वे सावरकर के लिये कुछ करना चाहते हैं तो उन्होने केवल १घंटा नियमित रूप से रेडियो पर बोलने की अनुमति मांगी जिसे नेहरू ने यह कहकर ठुकरा दिया कि यदि ऐसा हो गया तो देश में अराजकता फैल जायेगी।१९६२ के चीनी आक्रमण से क्षुब्ध सावरकर १९६५ के पाकिस्तानी आक्रमण से भीतर ही भीतर इतने टूट गये थे न ki अंततः अन्न-जल त्याग कर प्राण दे दिये।
मेरी अपनी निजी राय है कि उच्च कुलीन ब्राह्मण कुल में जन्म लेना,सदैव देश हित का चिंतन करना बिना लाग-लपेट के सच कहना विनायक दामोदर सावरकर के व्यक्तित्व के वे कमजोर पहलू हैं जिनके लिये उन्हें भुला दिया जाना ही समकालीन भारत के लिये उचित था।सावरकर यह देश आपको जन्म देकर अति लज्जित है,काश आप आरक्षित दलित या सांप्रदायिक मुसलिम होते------------------

उस अम्बे की जगदम्बे की करते हैं आराधना !


Maa DurgaMaa Durga





उस अम्बे की जगदम्बे की करते हैं आराधना  ;
जिसके चरणों में सिर धरकर  पूरी हो शुभकामना .

मधु कैटभ  संहारक  शक्ति;शुम्भ  -निशुभ की हन्ता है ,
उस नारायणी सर्वकारिणी  की महिमा  अनंता है ;
जो दुर्गुण  हरकर भर देती भक्तों में सद्भावना 
उस अम्बे की जगदम्बे की करते हैं आराधना !
                                                                    shikha kaushik 
                                                    [भक्ति -अर्णव ]

27.5.12

हिलेरी-ममता वार्ता





शंकर जालान






अमेरिका की विदेश मंत्री हिलेरी क्लिटंन ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात कर भले ही ममता बनर्जी का राजनीतिक कद बढ़ा दिया हो, लेकिन संविधान विशेषज्ञ इसे परंपरा का उल्लंघन मान रहे हैं। जहां संविधान विशेषज्ञ इसकी वैधता पर सवाल उठाने लगे हैं। इस पर बहस तेज हो गई है कि कोई राज्य कैसे किसी दूसरे देश की विदेश मंत्री से सीधी बात कर सकता है? वहीं, माकपा के दो शीर्ष नेताओं ने कड़ी आपत्ति जताई। इनमें राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट््टाचार्य व माकपा के राज्य सचिव विमान बसु प्रमुख हैं। दोनों नेताओं ने एक स्वर से हिलेरी क्लिंटन के साथ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की मुलाकात को लेकर आशंका जताई। माकपा नेताओं ने कहा कि  पश्चिम बंगाल में इसी विदेशी मेहमान की पसंद की सरकार सत्ता में आई है, इसीलिए वे (हिलेरी क्ंिलटन) यहां आई हैं। मालूम हो कि पिछले साल पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के समय अमेरिकी संस्था विकीलिक्स ने अपने एक खुलासे में भारत में अमेरिकी राजदूत के हवाले कहा था कि अमेरिका पश्चिम बंगाल में अपनी पसंद की सरकार स्थापित करना चाहता है। विकीलिक्स पर यह खुलासा 20 अप्रैल 2011 को हुआ था। साथ ही इसी खुलासे में यह भी कहा गया था कि 20 अक्तूबर 2009 को कोलकाता स्थित अमेरिकी कांसुल जनरल द्वारा भेजे एक संदेश में कहा गया था कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को भावी मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित करना होगा। माकपा नेताओं ने कड़े शब्दों में कहा कि भारत के अंदरुनी मामलों में अमेरिकी विदेश मंत्री के हस्तक्षेप को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। जरूरी मुद्दों पर हिलेरी क्लिंटन को अगर कुछ कहना हो तो वे सीधे भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कहनी चाहिए।  
माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य सीताराम येचुरी ने यह मामला ससंद में भी  उठाया। हिलेरी-ममता की मुलाकात के ठीक बाद येचुरी ने राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान कहा कि केंद्र सरकार को इस पर तत्काल टिप्पणी करनी चाहिए। आखिर, ममता बनर्जी को किसी दूसरे देश की विदेश की मंत्री से सीधी वार्ता की इजाजत किसने दी। आमतौर पर भारतीय संविधान में ऐसी वार्ता की परंपरा नहीं है। यह पहला मौका है जब अमेरिका ने भारत के किसी राज्य सरकार से सीधी वार्ता की हो। संविधान के जानकार इसे भारत के आंतरिक मामलों में दखल करार दे रहे हैं। 
अमेरिकी विदेश मंत्री के दौरे पर एक पक्ष का यह भी कहना है कि आर्थिक तंगी से जूझ रहे पश्चिम बंगाल में अमेरिकी निवेश की संभावनाएं भी काफी बढ़ गई हैं।  लंबे अरसे बाद पहला मौका है जब किसी अमेरिकी विदेश मंत्री ने अपनी तीन दिवसीय भारत यात्रा के दो दिन कोलकाता में गुजारे हों और मुख्यमंत्री से मुलाकात की हो। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि इससे साफ है कि अमेरिका ममता बनर्जी और उनकी सरकार को जरूरत से ज्यादा महत्व दे रहा है। तभी तो हिलेरी ने भारत की राजधानी नई दिल्ली से पहले कोलकाता का दौरा किया। अपने दो दिवसीय दौरे में हिलेरी ने भारतीय संस्कृति परिषद की ओर से आयोजित एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में हिस्सा लिया। विक्टोरिया मेमोरियल देखने पहुंचीं।