मेरी केदारनाथ यात्रा
केदारनाथ
धाम...भगवान शिव का 11वां ज्योतिर्लिंग...यह स्थित है उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग
जिले में...हर साल अक्षय तृतीया से भैया दूज तक श्रद्धालुओं के लिए केदारनाथ धाम
के कपाट खुलते हैं...इस बार भी 28 अप्रेल को केदारनाथ धाम के कपाट श्रद्धालुओं के
दर्शनार्थ खोल दिए गए...इस बार बाबा केदार ने श्रद्धालुओं का स्वागत भारी बर्फबारी
के साथ किया...कुछ लोग भोले के दर्शन के साथ ही बर्फबारी का लुत्फ उठाते देखे गए
तो बर्फबारी कुछ लोगों के लिए आफत बन गयी...कपाट खुलने के एक दिन पहले से शुरू हुई
बर्फबारी और कड़ाके की ठंड ने पहले ही दिन चार लोगों को जान ले ली...वहीं अगले दो
दिनों में दो और लोग केदारनाथ में मुक्ति पा गए...केदारनाथ धाम में श्रद्धालुओं की
मौत ने कई सवाल खडे कर दिए हैं...क्या सिर्फ भारी बर्फबारी ही श्रद्धालुओं की मौत
की वजह बनी या फिर कुछ औऱ ?...इस पर बात
करेंगे आगे पहले बात करते हैं इस यात्रा की...केदारनाथ धाम के कपाट खुलने से एक
दिन पहले मैं भी अपनी टीम के साथ केदारनाथ धाम के लिए रवाना हुआ था...ऋषिकेश से
केदारनाथ यात्रा मार्ग की हालत देखकर अंदाजा हो गया था कि यात्रा बिल्कुल भी आसान
होने वाली नहीं है...हर एक दो किलोमीटर में उधड़ी हुई सड़कें...सड़कों पर गिरे
बड़े – बड़े बोल्डर यात्रा मार्गों की हालत बयां कर रहे थे। ऋषिकेश से देवप्रयाग,
श्रीनगर, रूद्रपयाग, अगस्तयमुनि, गुप्तकाशी, फाटा और सोनप्रयाग होते हुए
हम गौरीकुंड पहुंचे।
गौरीकुंड से
केदारनाथ तक की 14 किलोमीटर की कठिन यात्रा पैदल ही तय करनी पड़ती है...पैदल मार्ग
कच्चा है औऱ पहाड़ों के बीच से होकर गुजरता है...जो इस यात्रा को औऱ मुश्किल बना
देता है...हालांकि लोग खच्चर औऱ डोली में भी इस यात्रा को पूरा करते हैं। हालांकि
फाटा से केदारनाथ तक हवाई सेवा भी उपलब्ध है...औऱ श्रद्धालु यहां फाटा पहुंचकर
करीब 6 हजार रूपए में फाटा से केदारनाथ औऱ केदारनाथ से वापस फाटा की यात्रा कर
सकते हैं। सुबह के आठ बज चुके थे...गौरीकुंड से हमने पैदल ही 14 किलोमीटर की
यात्रा तय कर केदारनाथ पहुंचने का निर्णय लिया...पैदल यात्रा में श्रद्धालुओं का
जोश देखते ही बनता था...श्रद्धालु बम बम भोले औऱ हर हर महादेव के जयकारों के साथ
चढ़ाई चढ़ रहे थे...जैसे ही श्रद्धालुओं को थकान लगने लगती...वैसे ही हर हर महादेव
का नारा श्रद्धालुओं में नया जोश भर देता। हमने भी पैदल यात्रा शुरू की...श्रद्धालुओं
से बात करते हुए हम भी आगे बढ़ रहे थे...रास्ते के एक तरफ ऊंचे पहाड़ थे...तो
दूसरी तरफ कल – कल कर बह रही थी केदारनाथ से आ रही मंदाकिनी नदी। जैसे जैसे हम ऊंचाई पर
पहुंच रहे थे...वैसे वैसे मौसम में ठंडक घुलती जा रही थी...मंदाकिनी ऊंचाई से किसी
नहर की तरह दिखाई देने लगी थी। रास्ते में सामने बर्फ की सफेद चादर से ढ़के पहाड़
दिखाई दे रहे थे...जो बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे...बर्फ से ढ़के पहाड़ों
को देखकर आनंद आ रहा था...मन कर रहा था कि जल्दी से इन सफेद पहाड़ों के बीच पहुंच
जाएं...लेकिन अभी हम ढ़ाई किलोमीटर ही चढ़े थे...साढ़े ग्यारह किलोमीटर की चढ़ाई
अभी बाकी थी...आपको बता दूं कि केदारनाथ भगवान का मंदिर सुमेरू पर्वत पर बर्फ से
ढ़के पहाड़ों के बीच स्थित है। चारों तरफ के पहाड़ बर्फ की सफेद चादर से ढ़के रहते
हैं जो केदारनाथ धाम के सौंदर्य को दोगुना कर देते हैं।
हम बिना रूके चले जा रहे थे...अभी हम चार किलोमीटर ही चढ़े थे कि तेज
बरसात शुरू हो गयी...दरअसल पहाड़ों में मौसम का मिजाज कब बदल जाए कह नहीं
सकते...पहाड़ी के नीचे चार लकड़ियों के सहारे खड़ी पौलीथीन की छतनुमा एक दुकान से
हमने दो बरसाती खरीद ली...ताकि बरसात में भीग न जाएं...लेकिन 25-25 रूपए की इस
कागज से भी पतली बरसाती कितनी देर बरसात का सामना कर पाती...ये बरसाती देखकर ही
समझ में आ गयी थी...बहरहाल दूसरा कोई रास्ता नहीं था...लिहाजा हमने बरसाती पहनी औऱ
चल पढ़े आगे...रास्ते में रंग बिरंगी बरसाती पहने श्रद्धालुओँ का जोश बरसात में भी
कम नहीं हुआ था...श्रद्धालु भोले बाबा के जयकारे लगाते आगे बढ़ रहे थे। रास्ते में
ऐसी ही कई दुकानों में कोई चाय बेच रहा था तो कोई मैगी...खाने के लिए दाल चावल औऱ
पराठे भी रास्ते में उपलब्ध थे...ठंड के बीच कढ़ाई में तलते पकौड़े हर किसी को
ललचा रहे थे।
यहां एक चीज बताना चाहूंगा...यहां पर आपको चाय पीनी है तो एक चाय के लिए
आपको 15 रूपए चुकाने होंगे...इसी तरह एक मैगी के लिए आपको 35 से 40 रूपए और एक
पराठे के लिए भी 25 से 30 रूपए चुकाने होंगे...जबकि एक प्लेट पकौड़े के लिए आपको
30 से 40 रूपए देने होंगे...और जैसे – जैसे आप ऊपर चढ़ेंगे इनकी कीमत भी बढ़ती
जाएगी...इसके पीछे दुकानदारों का तर्क है कि उन्हें सामान ऊपर ले जाने के लिए
खच्चर वाले को 300 से 400 रूपए चुकाने होते हैं...ऐसे में इसका पैसा दुकानदार वहां
आने वाले श्रद्धालुओं से वसूलते हैं। बहरहाल हमारा सफर जारी था...हम धीरे धीरे
बूंदा बांदी के बीच आगे बढ़ रहे थे...अचनाक बरसात तेज हो गयी...ऐसे में करीब 8
किलोमीटर की चढ़ाई अभी बाकी थी...रास्ता कठिन था औऱ अंधेरा होने से पहले पहुंचना
भी था...लिहाजा हमने एक खच्चर वाले को रोककर केदारनाथ तक खच्चर में ले जाने के
पैसे पहुंचे...छह माह के लिए केदारनाथ के कपाट खुलते हैं...ऐसे में ये 6 माह इन
खच्चर वालों के लिए पैसा कमाने का बढ़िया जरिया होता है...इसलिए जैसे श्रद्धालु
मिलते हैं उससे वैसे ही पैसे की डिमांड करते हैं...बरसात हो रही थी...ऐसे में ये
मौका खच्चर वाले कहां चूकने वाले थे...हमसे भी एक खच्चर के 900 रूपए मांग
लिए...हमने तकाजा किया तो मामला 800 रूपए में तय हो गया...हमने 3200 रूपए में चार
खच्चर कर लिए। यहां के खच्चर बरसात हो या बर्फबारी कपाट बंद होने तक यानि छह महीने
तक बिना रूके चलते हैं...इसके बदले इनको खुराक भी बढ़िया मिलती है...औऱ एक दिन में
करीब 500 से 800 रूपए की खुराक चट कर जाते हैं...औऱ इनको दिया जाता है इनका मनपसंद
गुड़ औऱ चना। हम खच्चर पर सवार थे...बरसात हो रही थी...औऱ कहीं कहीं खच्चर के अगले
पैर फिसलन खा रहे थे...ऐसे में मन ही मन डर भी लग रहा था कहीं खच्चर नीचे न गिरा
दें...इसी डर के साथ आस पास के हरे भरे नजारों...औऱ सामने दिखाई दे रहे सफेद
हिमालय को देखते हुए हम आगे बढ़े जा रहे थे....एक तरफ नीचे मंदाकिनी नदी भी बह रही
थी...लेकिन हम इतनी चढ़ाई पर पहुंच चुके थे कि अब नदी नजर नहीं आ रही थी...बस बीच बीच
में बह रहे पानी की आवाज़ कानों से टकरा जाती थी।
इसी बीच हमने अपनी
आधी यात्रा पूरी कर ली थी...औऱ हम सात किलोमीटर की चढ़ाई कर पहुंच चुके थे
रामबाड़ा....रामबाड़ा गौरीकुंड औऱ केदारनाथ की 14 किलोमीटर की यात्रा के बीच का
पड़ाव है...यहां पर श्रद्धालु अपनी थकान मिटाने के साथ ही पेट पूजा भी करते हैं तो
खच्चरों को उनकी मनपसंद खुराक गुड़ चना खिलाया जाता है। रामबाड़ा में हमने भी चाय
औऱ मैगी खायी...चार चाय औऱ मैगी के लिए हमें 200 रूपए चुकाने पड़े। रामबाड़ा से
खच्चर पर बैठकर आगे की यात्रा शुरू हुई...अभी सात किलोमीटर का सफर बाकी था...और
मौसम औऱ ज्यादा खराब होने लगा था...करीब दो किलोमीटर औऱ चढ़े होंगे कि अचानक बरसात
बर्फबारी में बदल गयी...बर्फबारी शुरू हुई तो मानो मन की मुराद पूरी हो
गयी...बर्फबारी के बीच हम आगे बढ़ते जा रहे थे...जैसे – जैसे हम आगे बढ़
रहे थे...बर्फबारी तेज होते जा रही थी...केदारनाथ अभी 3 किलोमीटर बाकी थी...औऱ
बर्फबारी के साथ ही तेज हवाएं चलने लगी...ऐसे में जो बर्फबारी शुरु में रोमांचित
कर रही थी...वही बर्फबारी अब आफत लगने लगी थी...पूरा रास्ता बर्फ से पट गया
था...चारों तरफ के पहाड़ बर्फ की सफेद चादर से पूरी तरह ढ़क गए थे...चारों तरफ का
नजारा रोमांचित कर रहा था...लेकिन ठंडक भी बढ़ती जा रही थी। बर्फबारी के बीच बर्फ
से भरे रास्ते से होकर आखिर हम केदारनाथ पहुंच गये...कपाट अगले दिन खुलने
थे...लिहाजा श्रद्धालु इस मौके को नहीं चूकना चाहते थे...हर कोई इसका गवाह बनना
चाहता था...लिहाजा केदारनाथ में श्रद्धालुओं का हुजुम पहुंच चुका था...औऱ गौरीकुंड
से श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला जारी था।
केदारनाथ पूरी तरह
से बर्फ से ढ़क चुका था...लेकिन बर्फबारी रूकने का नाम नहीं ले रही थी...बर्फबारी
से केदारनाथ में ऑक्सीजन की कमी महसूस होने लगी...ऐसे में जो लोग कमजोर थे...उनके
लिए ये मुश्किल भरा समय था...कुछ ही देर में पता चला कि यही एक श्रद्धालु की मौत
की वजह बन गयी..ताज्जुब उस वक्त हुआ जब पता चला कि केदारनाथ में श्रद्धालु को
स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल पायी...जिसके चलते आखिर में उसने दम तोड़ दिया...ऐसा
नहीं है कि केदारनाथ में स्वास्थ्य सुविधा नहीं है...स्वास्थ्य सुविधा के लिए यहां
पर एक अस्पताल भी है...लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यहां रोज पहुंचने वाले
हजारों श्रद्धालुओं के लिए अस्पताल में सिर्फ एक डॉक्टर...एक फार्मसिस्ट और दो
चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हैं। ऐसे में श्रद्धालुओं को कितनी बेहतर स्वास्थ्य
सुविधाएं मिल पाती होंगी...इसका अंदाजा लगाया जा सकता है...औऱ यही शायद उस
श्रद्धालु की मौत की वजह भी बना...जिसका अभी हम जिक्र कर रहे थे। हम भी क्या कर
सकते थे...अंधेरा घिर आया था...औऱ बर्फबारी रूकने का नाम नहीं ले रही था...लिहाजा
हम भी एक लॉज में पहुंच गए। वहां पता चला कि केदारनाथ में बिजली नहीं है...औऱ न ही
पानी की व्यवस्था...और इस सब में करीब दस दिन औऱ लगने की बात कही गयी थी। क्या
करते मोमबत्ती जलाकर कमरे में बैठे थे...कि बाहर श्रद्धालुओं का शोर सुनाई दे रहा
था...दरअसल श्रद्धालुओं को रहने के लिए जगह नहीं मिल पा रही थी....मंदिर समिति के
लोग पता नहीं कहां गायब हो गए थे...आपको बता दूं कि बद्रीनाथ औऱ केदारनाथ धाम का
सारा जिम्मा श्री बद्री – केदार मंदिर समिति देखती है...औऱ करोड़ों
रूपए का चढ़ावा भी समिति के पास ही जाता है...लेकिन जब श्रद्धालुओं के लिए
व्यवस्थाओं औऱ सुविधाओं की बात आती है तो मंदिर समिति सब कुछ शासन – प्रशासन के जिम्मे
डाल देती है। ऐसा ही कुछ वहां पर भी हुआ...केदारनाथ धाम की यात्रा शुरू हो गयी
थी...लेकिन केदारनाथ में न तो बिजली की व्यवस्था थी...औऱ न ही पानी की...ये तो
छोडिए भारी बर्फबारी के बीच श्रद्धालुओं के रहने के लिए तक कोई व्यवस्था नहीं
थी...सुबह पता चला कि पूरी रात कई श्रद्धालुओं ने बर्फबारी के बीच मंदिर प्रांगण
में गुजारी...अब ये रात उन्होंने कैसी गुजारी होगी...ये सोच कर भी बदन में एक
सिहरन सी उठती है। सवा सात बजे मंदिर के कपाट खुलने थे...बर्फबारी थम चुकी थी औऱ हिमालय
की चोटियां सुनहरी चमक बिखेर रही थी...ये नजारा मंत्रमुग्ध करने वाला था। कपाट खुलने का समय नजदीक आ रहा था...लिहाजा मंदिर में
श्रद्धालुओं की लंबी कतार लग चुकी थी...हर किसो को बस केदारनाथ भगवान के कपाट
खुलने का इंतजार था।
ठीक साढे सात बजे वैदिक मंत्रोचारण के बीच पूरे विधि विधान से
सेना के बैंड बाजे की धुनों के बीच मंदिर के कपाट खुले तो वहां का नजारा मन को मोह
लेने वाला था...चारों तरफ का वातावरण भोले की जयकारों से गुंजायमान हो रहा था।
भोले के दर्शन कर जब मंदिर से बाहर निकले तो एक बार फिर से बर्फबारी शुरू हो चुकी
थी...बर्फबारी मानो केदारनाथ भगवान के कपाट खुलने के लिए ही रूकी हो। बाहर पता चला
कि रात को ठंड से तीन और लोगों की मौत हो गयी थी...और कई श्रद्धालु ऑक्सीजन की कमी
के चलते गंभीर हालत में थे...एक महिला हमारे सामने ही गंभीर स्थिति में थी...हमने
केदारनाथ भगवान के दर्शन तो कर लिए थे...लेकिन धरती के भगवान यानि डॉक्टर को जब
तलाशा तो उनके दर्शन हमें नहीं हुए। बर्फबारी तेज हो रही थी...और श्रद्धालुओं की
दिक्कत बढ़ती जा रही थी...लेकिन धरती के भगवान का कोई पता नहीं था...वो तो मानो
अंतर्रधान होने की कसम खाएं बैठे हों...मंदिर समिति के लोगों से बात कि तो वे पूजा
औऱ चढ़ावे की रसीद काटने में ही व्यस्त दिखाई दिए। काफी देर हो गयी थी...लेकिन
डॉक्टर का कोई पता नहीं था...कुछ देर बाद देखा तो डॉक्टर साहब दिखाई दे
दिए...लेकिन एक डॉक्टर कितने श्रद्धालुओं का ईलाज करता...जैसे तैसे उस श्रद्धालु
को डॉक्टर ने ऑक्सीजन देकर राहत देने का प्रयास किया। लेकिन ऐसे श्रद्धालुओं की
तादाद बढ़ती जा रही थी...लिहाजा डॉक्टर साहब श्रद्धालुओं को तुरंत वापस जाने की
सलाह देते दिखाई दिए। हमने व्यवस्थाओं औऱ मेडिकल सुविधाओं को लेकर मंदिर समिति से
फिर बात करने की कोशिश की तो वे सारा ठीकरा शासन प्रशासन के सिर फोड़ते हुए अपनी
जिम्मेदारी से बचते नजर आए। अव्यवस्थाओं के चलते श्रद्धालु गुस्से से भरे हुए
थे...लेकिन किसी को उनकी कोई फिक्र नहीं थी। दोपहर के करीब दो बज गए थे...बर्फबारी
जारी थी...हम चल दिए दो किलोमीटर ऊपर पहाड़ी पर स्थित भैरव बाबा के दर्शन
करने...कहते हैं बाबा भैरव के दर्शन किए बिना बाबा केदारनाथ की यात्रा अधूरी मानी
जाती है...बाबा भैरव तक पहुंचने के लिए खड़ी पहाड़ी पर दो किलोमीटर पतले रास्ते पर
पैदल चढ़ना पड़ता है। रास्ता कठिन था औऱ पहाड बर्फ से ढ़का हुआ था...बर्फ से होते
हुए हम आखिर बाबा भैरव के दरबार में पहुंच गए...वहां से केदारनाथ का नजारा गज़ब का
था...बर्फ से ढके मंदिर और घरों को देखर ऐसा लग रहा था जैसे कोई पेंटिंग हो।
बाबा भैरवनाथ के दर्शन कर हम चल पड़े वापस। शाम के करीब 4 बज
गए थे...मौसम लगातार बिगड़ता जा रहा था...ऐसे में हमने वापस जाने का फैसला
लिया...और चल पड़े गौरीकुंड को। रास्ता पूरी तरह बर्फ से ढ़का था...हम धीरे धीरे
नीचे उतरने लगे...रामबाड़ा पहुंचते पहुंचते अंधेरा घिरने लगा था...रास्ते में
रोशनी की कोई व्यवस्था नहीं थी...रास्ते के किनारे बिजली के पोल तो लगे थे...लेकिन
बिजली का कोई पता नहीं था...अंधेरे में नीचे उतरना किसी खतरे से कम नहीं
था...लेकिन जैसे तैसे हम रात करीब 9 बजे गौरीकुंड पहुंच ही गए। रात हमने गौरीकुंड
में ही गुजारने का फैसला लिया। सुबह उठे तो खबर मिली की रात को दो औऱ श्रद्धालुओं
की बर्फबारी के चलते मौत हो गयी...जिसमें से एक महिला की तो रास्ते में स्वास्थ्य
खराब होने से मौत हुई...शायद रास्ते में स्वास्थ्य सुविधाएं होती तो उस महिला का
जान बचायी जी सकती थी...लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं के हाल वहां पर कैसे हैं...ये आपको
बता ही चुका हूं। खबर मिली कि दोपहर में कलेक्टर साहब पहुंचने वाले हैं...अब संडे
का दिन था....कलेक्टर साहब ठहरे पता नहीं कब तक पहुंचते लिहाजा हमने इंतजार करने
की बजाए देहरादून को रवाना होने का फैसला लिया...औऱ चल दिए देहरादून की ओर। हम
श्रीनगर पहुंच चुके थे...तभी खबर मिली की कलेक्टर ने गौरीकुंड से केदारनाथ की
यात्रा पर मौसम खराब होने के चलते रोक लगा दी है। कलेक्टर साहब ने यात्रा पर रोक
तो लगा दी...लेकिन ये फैसले समय से ले लिया होता तो शायद 6 लोगों की जान नहीं
जाती। केदारनाथ धाम में हर साल करोड़ों रूपए का चढ़ावा आता है...उसके बाद भी मंदिर
में अव्यवस्थाएं पसरी नजर आयी...हम बात कर रहे थे कि जिन श्रद्धालुओं की केदारनाथ
में मौत हुई थी...क्या वाकई में उनकी जान नहीं बच सकती थी। सवाल अभी भी खड़ा
है...लेकिन जवाब शासन प्रशासन के किसी भी अधिकारी के पास नहीं है...वे मौसम को दोष
देते हुए अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं। कपाट खुलने के पहले करीब 6 महीने
का वक्त इनके पास था...तो ये क्या कर रहे थे...क्यों नहीं वहां पर
बिजली...पानी...स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ ही श्रद्धालुओं के रहने के लिए इंतजामात
किए गए। इसका जवाब सामने हैं...लेकिन जिम्मेदार लोगों के पास इसका जवाब शायद ही
हो...इन्हें क्या मतलब किसी की जान जाए तो जाए...इनमें इनका कोई अपना नहीं है
ना...ये क्या जानें किसी अपने को खोने का गम। केदारनाथ जाने का मौका मुझे तीन साल
पहले भी मिला था...उस वक्त में अप्रेल की बजाए शायद जून के महीने में गया
था...लेकिन तब भी हालात जुदा नहीं थे...बस फर्क इतना था कि उस समय बर्फबारी नहीं
हो रही थी...लेकिन अव्यवस्थाएं तब भी पसरी पड़ी थी...यानि हालात में तीन साल बाद
भी कोई सुधार नहीं आया है। इस बार की यात्रा का अनुभव आपके सामने हैं...कहते हैं न
कि उम्मीद पर दुनिया कायम है...हमें भी यही उम्मीद है कि शायद अगली बार जब केदार
बाबा का बुलावा आए तब स्थिति में कुछ सुधार देखने को मिलेगा...और केदारनाथ में इस
बार जैसी अव्यवस्थाओं से देशभर से पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को कम से कम न जूझना
पड़े...लेकिन सवाल वही है कि आखिर कब जागेंगे जिम्मेदार अधिकारी...कब जागेगी
उत्तराखंड की सरकार।
दीपक तिवारी
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