5.5.12

युपीटीईटी-अनिश्चितता और संत्रास के १८० दिन

अति हो गयी है,आखिर सहने की भी कुछ सीमा होती है|हरामखोरों ने व्यवस्था के बीच से नयी व्यवस्था निकालने का मन बना लिया है और चाहते हैं की हम हाँथ पर हाँथ धरे बैठे रहें|मीडिया भी बराबर की दोषी है|मैं नहीं चाहता था की भाषा की पवित्रता भंग हो किन्तु जिन्हें हराम का खाने की आदत पड़ जाती है वे पक्के लतिहर होते हैं और जब तक उन्हें जी भरकर लतियाया न जाए वे तर्क की कोई भी भाषा सुनने को तैयार ही नहीं होते|आखिर मीडिया युपीटीईटी परीक्षा के बारे में जानती ही क्या है?और इसे महज एक पात्रता परीक्षा क्यों होना चाहिए?लगता है हरामखोरों का कोई अभ्यर्थी इस परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो गया और उसी का खार निकालने के लिए ये लंठशिरोमणि हमारे पीछे लट्ठ लिए फिर रहे हैं|इन हरामियों को यह भी नहीं पता है की युपीटीईटी परीक्षा का स्तर इतना नीचा रखा गया था की कोई भी कक्षा ८ उत्तीर्ण आसानी से इस परीक्षा में तय समय के अंदर ९० अंक प्राप्त कर सकता था,फिर भी लोग अनुत्तीर्ण हुए और उच्च अकादमिक योग्यताधारी अनुत्तीर्ण हुए|बी.एड. डिग्री धारक पास हो गए, बी टी सी वाले अपेक्षित परिणाम नहीं ला सके|पी एच डी तो एकदम टांय टांय फिस्स ही हो गए|लिहाजा इन लोगों ने एक नया शिगूफा छोड़ा|कहने लगे की युपीटीईटी में भ्रष्टाचार हुआ है..अबे काहे का भ्रष्टाचार?और क्या सबूत है तुम्हारे पास भ्रष्टाचार का?कहते हैं की २७ हजार ओएमआर शीट पर सफेदा लगा हुआ था|कन्नौज से कंचन त्रिपाठी परेशान हैं, बताती हैं की भूलवश उनसे भी उक्त ओएमआर शीट पर कहीं सफेदा लग गया था|उन्होंने मुझे फोन किया और जानना चाहा की कहीं उनका भी ओएमआर शीट तो इन हरामियों के पास नहीं पहुँच गया|अब मैं कोई प्रशासनिक अधिकारी तो हूँ नहीं की उनकी बात का कोई समुचित उत्तर दे पाऊं किन्तु इतना अवश्य है की मैंने युपीटीईटी ही नहीं ऐसी अनेक परीक्षाएं देखी हैं, जहाँ परीक्षार्थी धड़ल्ले से सफेदे का प्रयोग करता है और यह रिजेक्शन का कोई आधार भी नहीं बनता, और फिर यह भी तो हो सकता है की अपनी गर्दन फंसती देख कर किसी राजनैतिक षड्यंत्र के तहत अधिकारियों ने खुद ही २७ हजार ओएमआर शीट चुने हों और बेचारे अभ्यर्थियों को फ़साने के लिए झूठमूठ सफेदा लगा दिया हो|समरथ को नहीं दोष गुसाईं..जिन हरामखोरों ने इस प्रक्रिया को रोकने के लिए नक़ल माफियाओं,शिक्षा माफियाओं,शिक्षा शत्रुओं,बकवास सेलेक्शन अधिकारी(बी.एस.ए) अन्य प्रशासनिक अधिकारियों और सबसे बढ़कर राजनैतिक सपाई गुंडों के इशारे पर कभी सरिता शुक्ला तो कभी कपिलदेव लाल बहादुर यादव का मुखौटा धारण किया हो..वे इस प्रक्रिया को रोकने के लिए पवित्र और अपवित्र किसी भी तरह के हथकंडे अपना सकते हैं| सुनने में आया है की सरकार पराशिक्षकों की नियुक्ति करने का मन बना चुकी है|वैधानिक दृष्टि से यदि कोई इसके विरुद्ध अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाता है तो कोई तात्कालिक बाधा भी नहीं है, सरकार कह देगी की हम शिक्षकों की नियुक्ति थोड़े ही कर रहे हैं, यह तो पराशिक्षक हैं और इसलिए इन पर एन सी टी ई के प्रावधान नहीं लागू होने चाहिए|केन्द्र सरकार के पास राष्ट्रपति के निर्वाचन में सपा के तलुवे चाटने की मजबूरी है लिहाजा ऐसा हो भी सकता है|केन्द्र सरकार ने २००९ में शिक्षा का क़ानून पारित किया,इससे पहले ही माननीय मुरली मनोहर जोशी ने सर्व शिक्षा अभियान का श्रीगणेश कर दिया था|तत्कालीन एन डी ए सरकार के इस कदम को हरामजादे तथाकथित धर्मनिरपेक्षों ने शिक्षा का भगवाकरण कहा|जोशी जी डिगे नहीं और सर्व शिक्षा अभियान को मजबूती से लागू करवा कर ही माने|केन्द्र से एन डी ए सरकार की विदाई होते ही शिक्षा को फिर से एक दोयम दर्जे की वस्तु माना जाने लगा|जहाँ तक मुझे ज्ञात है भारत का एक सामान्य नागरिक भी मूल्य संवर्धित कर के अंतर्गत प्रत्येक वस्तु पर २ प्रतिशत शिक्षा कर देता है और हरामियों के पास शिक्षा के मद में खर्च करने के लिए फूटी कौड़ी भी नहीं है| लोग आज में जीते है,कल क्या होगा उन्हें चिंता नहीं है|तात्कालिक लाभ और व्यक्तिगत हितों के लिए हम दीर्घकालिक उद्देश्यों तथा सामूहिक हित साधन पर ध्यान देना ही नहीं चाहते|आप किसी से भी पूछ लीजिए की वे अपने बच्चों को किस अध्यापक से पढ़वाना चाहेंगे?उनसे, जो कक्षा ८ के स्तर का भी प्रश्न हल नहीं कर सके अथवा उनसे जो अकादमिक में कमजोर होने के वावजूद कक्षा ८ स्तर तक के समस्त प्रश्नों को कुशलता के साथ कम से कम समय में हल कर देते हैं और जिनके पास बाल मनोविज्ञान की अच्छी समझ भी है,क्योंकि मनोविज्ञान पर आधारित प्रश्नों कों हल करने में भी उनकी कुशलता की परीक्षा ली जा चुकी है|शायद आपको संतोषजनक उत्तर प्राप्त हो जाए?अब क्या यह मान लिया जाए की जिस बात को एक सामान्य सा व्यक्ति समझता है उसे समाजवादी नहीं समझता तो यह भी सही नहीं है|वस्तुतः समाजवादी एक कठिन किस्म के जीव होते हैं और अनर्गल करना तो इनके शिराओं में रक्त बनकर बहता है|यह मामले कों सुलझाना ही नहीं चाहते क्योंकि इससे इनके राजनैतिक स्वार्थ की सिद्धि होती है|मैं जानता हूँ की इसे पढ़ने के बाद बहुत से समजवादी पिट्ठुओं को बहुत बुरा लगेगा और वे यह भी कह सकते हैं की अभी तो सरकार ने अपना रूख भी स्पष्ट नहीं किया है फिर आप सरकार कों विपक्षी दलों की भाँती क्यों कोस रहे हैं?इसका सीधा सा जवाब है की आप आँख खोलकर देखना ही नहीं चाहते|क्या आपको अखिलेश यादव द्वारा चुनाव पूर्व की गयी घोषणा याद है?अरे छोडिये अभी हाल ही में राष्ट्रीय सहारा और अमर उजाला नामक दो समाजवादी मुखपत्रों ने युपीटीईटी के संदर्भ में जिस तरह की अखबारबाजी की है क्या उसे देखकर भी आपको लगता है की हमारे साथ न्याय होगा और अखिलेश नामक यह आस्ट्रेलियाई विद्यार्थी आपको आपकी नौकरी चांदी के थाल में सजाकर आपको देगा?कभी नहीं|राम गोविन्द चौधरी ने बयान दिया और समाजवादियों की तरफ से इसका कोई खंडन भी नहीं आया|क्या युपीटीईटी उत्तीर्ण अभ्यर्थी इतने मूर्ख हैं की आपकी मंशा कों भी नहीं समझते?स्पष्ट है की अब ईंट का जवाब पत्थर से देने का वक्त आ गया है|मैं कम्युनिस्ट नहीं हूँ किन्तु इस बात को अच्छी तरह से जानता हूँ की जब लोकतंत्र विफल हो जाता है तो बन्दूकतन्त्र, लोकतंत्र का एक अच्छा विकल्प हो सकता है| सरकार हमारी बात नहीं मानना चाहती क्योंकि ऐसा करने से उसकी काली कमाई पर ग्रहण लग जाएगा|बी.एस.ए एक एक नियुक्ति में चार चार लाख रूपये नहीं कमा पायेंगे,लिहाजा हमारे पास आर्म्ड रिबेलियन (सशस्त्र क्रांति) के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचता और अभ्यर्थी इस बात कों जानता है की परीक्षा के मद में १० हजार रूपये खर्च करने के बावजूद ठगा जाने पर चार हजार रूपये और खर्च कर एक रिवाल्वर खरीदना और आततायियों कों सजाये मौत देने के बाद जिस तरह के शहादत की उपलब्धि होगी वह केवल ७२ हजार अभ्यर्थियों के हित में ही नहीं होगा बल्कि इसके बाद शिक्षा के क्षेत्र में एक नए युग का पदार्पण भी होगा|आप इसे भडकाना कह सकते हैं,और हाँ मैं अभ्यर्थियों कों भडका ही रहा हूँ क्यूंकि मेरे पास और कोई भी विकल्प शेष नहीं है|मीडिया ने हमें दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंका है|न्यायालय से हमें प्रतिदिन तारीख पर तारीख मिल रही है|शासन, दुशासन बन कर जनता रुपी द्रौपदी का चीर हरण करना चाहता है और शिक्षा माफियायों ने हमें कहीं का छोड़ा ही नहीं|ऐसे में हमारे पास विकल्प ही क्या है?यदि कोई अभ्यर्थी टी.जी.टी सोशल साइंस के लिए अपना अभ्यर्थन करना चाहे तो उसे इतिहास,राजनीति शास्त्र,अर्थ शास्त्र और भूगोल में से कम से कम दो विषयों के साथ स्नातक उत्तीर्ण होना पड़ेगा|अब जिनके पास इनमे से एक ही विषय है वह क्या करेगा?घास छीलने के लिए भी एक विशेष प्रकार के प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है और मुझे लगता है की जीवन के चालीस वसंत देख चुके नाकारा अभ्यर्थियों कों अब इस उम्र में कोई चरवाहा विश्वविद्यालय घास छीलने का भी प्रशिक्षण नहीं देना चाहेगा|सरकार को हमारी स्पष्ट चेतावनी है की मौजूदा विज्ञापन के प्रारूप में बिना कोई छेड़खानी किये तत्काल नियुक्ति प्रक्रिया प्रारम्भ करवाए अन्यथा इसके घातक परिणाम होंगे और इन सभी परिणामों की जबावदेही आगे चल कर अखिलेश और उसके गुर्गों को ही देना होगा और मैं यह चाहूँगा की इस पत्रक को अधिक से अधिक संख्या में प्रकाशित करवा कर बांटा जाए ताकि जुलाई तक कोई स्थायी समाधान न निकलने की दशा में सशस्त्र आंदोलन की भूमिका भी तैयार हो सके|

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