अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहें हैं हरवंश?
लखनादौन नपं में कैसे गायब हुआ अध्यक्ष पद का कांग्रेस प्रत्याशी ?
हर बार पार्टी को नुकसान पहुचाने के बाद पाया नया मुकाम
लखनादौन। नपं चुनाव में कांग्रेस के गढ़ रहे इस इलाके में अध्यक्ष के चुनाव से उसका बाहर होना ना केवल आश्चर्यजनक हैं वरन शर्मनाक भी हैं।पिछले कुछ सालों से पार्टी को होने वाले नुकसान के लिये हरवंश सिंह पर आरोप लगते रहें हैं और हर बार पार्टी को नुकसान होने के बाद भी नया मुकाम हासिल कर वे करारा जवाब भी देते रहें हैं। इस चुनाव में कांग्रेस ने एक नया इतिहास ही बना डाला हैं। राजनैतिक हल्कों में चर्चा है कि इसके बाद उन्हें कौन सा मुकाम हासिल होता हैं?
इस चुनाव के राजनैतिक समीकरणों के तार 2008 के विधानसभा चुनावों से जुड़े हुये हैं। पचौरी समर्थक कांग्रेस प्रत्याशी प्रसन्न मालू के खिलाफ दिनेश मुनमुन राय निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े थे। पहले चर्चा थी कि वे केवलारी से हरवंश सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ेंगें लेकिन अचानक ही क्षेत्र बदल गया था। क्षेत्र अधिकांश हरवंश समर्थकों ने खुल कर मुनमुन का साथ दिया था। इन सब बातों की प्रत्याशी ने नामजद शिकायत की थी और कुछ को पार्टी से नोटिस भी मिले थे लेकिन बाद में सब ना केवल रफ दफा हो गया वरन कई ऐसे नेताओं को पुरुस्कृत भी किया गया। मिशन 2013 को ध्यान में रखते हुये अपने क्षेत्र को सुरक्षित रखने के लिये ही लखनादौन नपं के चुनाव में ऐसा कमाल किया गया कि कांग्रेस मैदान से ही बाहर हो गयी और मुनमुन राय की माता जी सुधा राय की राह आसान हो गयी।
हरवंश द्वारा भीतरघात कर पुरुस्कृत होने का सिलसिला 1990 से जारी है:- कांग्रेस की चुनावी राजनीति में हरवंश सिंह को 1990 के विस चुनाव में पहला मौका मिला था। इस चुनाव में केवलारी से विमला वर्मा और घंसौर से उर्मिला सिंह प्रत्याशी थी और तीन बार के विधायक रहे सत्येन्द्र सिंह के बदले उनके पुत्र रणधीर सिंह लखनादौन से चुनाव लड़ रहे थे। केवलारी और घंसौर में भीतरघात के आरोप लगे और प्रदेश में कांग्रेस तथा खुद के चुनाव हार जाने के बाद भी हरवंश सिंह प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री बन गये थेे।
पहली बार विधायक बने हरवंश अपवाद स्वरूप कबीना मंत्री बने 1993 में:-सिवनी से हारने के बाद केवलारी से चुनाव लड़ने वाले हरवंश सिंह पर 1993 के विस चुनावों में भी सिवनी विस में भीतरघात के आरोप लगे थे। प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनने के बाद पहली बार विधायक बनने के बाद भी हरवंश सिंह अपवाद के रूप में सीधे कबीना मंत्री बन गये थे।
1996 के लोस चुनाव में विरोध के बाद गृह मंत्री बने हरवंश:-नरसिंहा राव के प्रधानमंत्री रहते हुये 1996 के लोस चुनाव सिवनी क्षेत्र से कु. विमला वर्मा चुनाव लड़ रहीं थीं। निर्दलीय आदिवासी प्रत्याशी शोभाराम भलावी को लाभ पहुचाने का आरोप हरवंश सिंह पर लगा था। शिकायत प्रामणित होने पर प्रदेश के चार मंत्रियों की सदस्यता निलंबित कर दी गयी थी। जिनमें हरवंश सिंह भी शामिल थे। लेकिन शहीद होने वाले मंत्रियों की सूची में ना केवल वे बच गये थे वरन कुछ समय बाद वे प्रदेश के गृह मंत्री बन गये थे।
1998 के चुनाव में आरोपों के बावजूद 18 महीनों बाद मंत्री बने हरवंश:-चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवारों को भीतरघात कर नुकसान पहुंचाने का सिलसिला जारी ही रहा। इस चुनाव में सिवनी,बरघाट और लखनादौन विस क्षेत्र में हरवंश सिंह पर आरोप लगे थे। इस चुनाव में क्रमशः आशुतोष वर्मा,,महेश मिश्रा और रणधीर सिंह प्रत्याशी थे। इन तीनों ही क्षेत्रों में कांग्रेस के बागी उम्मीदवार हरवंश समर्थक ही थे। पार्टी सिवनी और बरघाट क्षेत्र से तो हार ही गयी लेकिन ले दे कर कुछ वोटों से रणधीर सिंह जीत गये थ। इस बार हरवंश सिंह को 18 महीनों तक मंत्री मंड़ल से बाहर रहना पड़ा लेकिन इसके बाद वे एक बार फिर मंत्री बन गये।
2003 के विस चुनाव में भीतरघात के बाद भी बने प्रदेश इंका उपाध्यक्ष:-इन विधानसभा चुनावों में सिवनी के कांग्रेस प्रत्याशी राजकुमार पप्पू खुराना और घंसौर की उर्मिला सिंह ने भी हार के लिये हरवंश सिंह को जवाबदार ठहराया था। लेकिन तमाम आरोपों और शिकायतों के बाद भी हरवंश सिंह प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष बनने में कामयाब हो गये थे।
2008 के विस चुनाव एक मात्र इंका विधायक बनने वाले हरवंश बने विस उपाध्यक्ष:-भाजपा सरकार के कार्यकाल में हुये 2008 के चुनाव में हरवंश सिंह ने अपनी सीट जीतने के लिये शेष सीटों पर भाजपा की राह आसान की थी। इसके लिये कई भाजपा नेताओं से सांठगांठ की बातें तो भाजपायी भी करते देखे जा सकते हैं। सिवनी और लखनादौन के कांग्रेस प्रत्याशी प्रसन्न मालू और शोभाराम भलावी ने भी खुले आम आरोप लगाये थे।सिवनी क्षेत्र में तो हरवंश समर्थ कांग्रेस नेताओं ने खुले आम निर्दलीय उम्मीदवार दिनेश मुनमुन राय का काम किया था और वे लगभग 30 हजार वोट लेकर दूसरे नंबंर पर रहे थें और कांग्रेस तीसरे स्थान पर जाकर अपनी जमानत भी नहीं बचा पायी थी। लेकिन इन सबसे परे हरवंश सिंह एक बार फिर पुरुस्कृत होने में कामयाब हो गये और उन्हें राज्य मंत्री के दर्जे के साथ विधानसभा का उपाध्यक्ष बना दिया गया और वे भाजपा के राज में भी लाल बत्ती का सुख भोग रहें हैं।
लोस चुनाव के कारनामे भी हुये नजर अंदाजः-पिछले 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव के उम्मीदवार कल्याणी पांड़े और बसोरी सिंह मसराम भी हरवंश सिंह के गृह क्षेत्र केचलारी तक से चुनाव नहीं जीत पाये थे। जबकि मात्र कुछ ही महीनों पहले हुये विध्ररनसभा चुनावों 2003 और 2008 में हरवंश सिंह अच्छे वोटों से जीत कर कांग्रेस के विधायक बने थे। केवलारी विस क्षेत्र यदि कांग्रेस का गढ़ है और वहां से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप हरवंश सिंह लगातार चार चुनाव जीत रहें हैं तो फिर ऐसा क्या हो जाता हैं कि कांग्रेस लोक सभा चुनावों में इसी क्षेत्र से हार जाती हैं? राजनैतिक विश्लेषकों का मानना हैं कि ना सिर्फ केवलारी वरन पूरे जिले में जितनी कांग्रेस कमजोर हुयी हैं उतने ही हरवंश सिंह मजबूत हुये हैं। जिले के समर्पित और निष्ठावान उपेक्षित कार्यकर्त्ता इन सब बातों से दुखी तो जरूर है लेकिन कोई विकल्प ना होने कारण खामोश हो गये हैं।
खुद के साथ भीतरघातियों को भी उपकृत कराते हैं हरवंश-जिले की कांग्रेसी राजनीति में एक खास बात और यह रही हैं कि हरवंश सिंी के निर्देश पर पार्टी को नुकासान पहुवाने वाले कांग्रेस नेताओं को वे उपकृत करने से भी पीछे नहीं हटते हैं। कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले तीन नेताओं बेनीराम परते, भोयाराम चौधरी और शोभाराम भलावी को कांग्रेस से विधानसभा चुनाव की टिकिट तक दिला दी थी। पार्टी में पद देकर उपकृत करने वाले नेताओं की फेहरिस्त तो काफी लंबी हैं।
कांग्रेस के इतिहास का सबसे काला अध्याय-आजादी के बाद से 2008 तक हर राजनैतिक तूफान झेल कर भी कांग्रेस का परचम फहराने वाले लखनादौन क्षेत्र में नगर पंचायत चुनाव में अध्यक्ष पद के लिये उसका प्रत्याशी चुनाव मैदान में होना कांग्रेस का सबसे काला अध्याय हैं। यह भी एक ओपन राजनैतिक सीक्रेट हैं कि ऐसा क्यों और किसकी मेहरबानी से यहसब कुछ हुआ? राजनैतिक क्षेत्रों में इस बात को लेकर उत्सुकता हैं हर बार कांग्रेस को नुकसान पहुचा कर ऊंचे पायदान पर पहुंचने वाले हरवंश सिंह इस बार किस मुकाम पर पहुंचते हैं?
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