24.7.12


वर्षाकालीन सत्र में घटित घटनाओं की गूंज प्रदेश सहित जिले में भी कई दिनों तक गूंजती रहेगी
बीते दिनों रानी दुर्गावती वार्ड क्ी भाजपा पार्षद माया मरकाम ने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली। इसकी घोषणा जिला कांग्रेस के अध्यक्ष हीरा आसवानी की उपस्थिति में एक पत्रकार वार्ता में की गयी।इसमें युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय समन्वयक राजा बघेल की विशेष भूमिका बतायी जा रही हैं। दक्षिण सिवनी के वार्डों में भीतरघात की मार अधिक थी। दक्षिण सिवनी क्षेत्र में ही रानी दुर्गावती वार्ड स्थित हैं जो कि शुरू से ही आदिवासी वर्ग के लिये आरक्षित और यहां से हमेशा कांग्रेस ही जीतती रही हैं। भाजपा पार्षद का कांग्रेस प्रवेश राजनैतिक हल्कों में चर्चित हैं। विधानसभा के वर्षाकालीन सत्र में जो कुछ भी हुआ उसे लेकर भारी राजनैतिक उथल पुथल मची हुयी हैं।  विपक्ष द्वारा जब अध्यक्ष को निकलने नहीं दिया तो बजाय उपाध्यक्ष के सभापति पैनल के सदस्य का आसंदी पर बैठना भी चर्चित हैं। वर्षाकालीन सत्र में घटित अशोभनीय घटनाओं ने इतिहास को कलंकित कर दिया हैं। विधानसभा  में घटित घटनाओं का जिले में भी असर हुआ हैं। भाजपा और कांग्रेस ने प्रदर्शन कर विरोध किया और लोकतंत्र को कलंकित करने का एक दूसरे पर आरोप लगाया। लेकिन इन शर्मनाक घटनाओं ने कुछ ऐसे सवाल अनुत्तरित छोड़ दिये हैं जो प्रदेश के सियासी हल्कों में कई दिनों तक गूंजते रहेंगें। 
भाजपा पार्षद का इंका प्रवेश चर्चित-बीते दिनों रानी दुर्गावती वार्ड क्ी भाजपा पार्षद माया मरकाम ने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली। इसकी घोषणा जिला कांग्रेस के अध्यक्ष हीरा आसवानी की उपस्थिति में एक पत्रकार वार्ता में की गयी।इसमें युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय समन्वयक राजा बघेल की विशेष भूमिका बतायी जा रही हैं। उल्लेखनीय हैं कि सन 2008 के विस चुनाव में इंका प्रत्याशी इंजी. प्रसन्न मालू के खिलाफ निर्दलीय प्रत्याशी दिनेश मुनमुन राय का खुलकर काम करने वाले हरवंश सिंह समर्थक नेताओं के हौसले कोई कार्यवाही ना होने से काफी बुलंद हो गये थे। इसके अलावा कई नेताओं को कांग्रेस की जमानत जप्त कराने के लिये बतौर इनाम पदों से भी नवाजा दिया गया था। इसीलिये 2009 के नगरपालिका चुनाव में भी सिवनी के   अध्यक्ष पद के प्रत्याशी संजय भारद्वाज और अधिकांश पार्षद पद के उम्मीदवारों को भारी भीतरघात का सामना करना पड़ा था। हालांकि संजय भारद्वाज ना सिर्फ हरवंश सिंह के स्वजातीय थे वरन दूर के उनके रिश्तेदार भी थे। फिर भी वे नहीं चाहते थे कि संजय चुनाव जीते। इसीलिये उनके समर्थक खुले आम विरोध में काम कर रहें थे। खासकर दक्षिण सिवनी के वार्डों में इसकी मार अधिक थी। दक्षिण सिवनी क्षेत्र में ही रानी दुर्गावती वार्ड स्थित हैं जो कि शुरू से ही आदिवासी वर्ग के लिये आरक्षित और यहां से हमेशा कांग्रेस ही जीतती रही हैं। लेकिन भीतरघात के चलते इस चुनाव में कांग्रेस की उम्मीदवार विमला पंद्रे को जहां 446 वोट मिले थे वहीं भाजपा की माया मरकाम ने 811 वोट लेकर इस आदिवासी वार्ड में पहली बार 346 वोटों से जीतकर भाजपा का परचम फहराया था। इसी वार्ड में अध्यक्ष पद के इंका प्रत्याशी संजय भारद्वाज को 480 वोट मिले थे जबकि भाजपा के राजेश त्रिवेदी ने भी 799 वोट लेकर 319 वोटों की भारी बढ़त हासिल की थी। अब जबकि 2013 में विस चुनाव होना हैं तब भाजपा की पार्षद माया मरकाम का कांग्रेस में शामिल होना राजनैतिक हल्कों में चर्चा का विषय बना हुआ हैं। कुछ नेता तो यह कहते हुये देखे जा रहें हैं कि जिनने भाजपा पार्षद को चुनाव जितवाया था अब वेे ही उसे कांग्रेस में लाकर वाहवाही लूट रहें हैं।
विधानसभा का इतिहास हुआ कलंकित-विधानसभा के वर्षाकालीन सत्र में जो कुछ भी हुआ उसे लेकर भारी राजनैतिक उथल पुथल मची हुयी हैं। कांग्रेस के विधायक और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह यह चाहते थे कि आयकर विभाग द्वारा डाले गये छापे और जिनके यहां छापे डाले गये थे उनके तार मुख्यमंत्री सहित भाजपा से जुड़ने के प्रमाणों पर सदन में चर्चा हो लेकिन भापा और सरकार का यह कहना था कि एक केन्द्रीय ऐजेन्सी ने यह कार्यवाही की हैं इसलिये इस पर सदन में चर्चा नहीं हो सकती। इसे लेकर विवाद इतना बढ़ा कि कांग्रेस विधायकों ने विस अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी और मुख्यमंत्री के चेम्बर के बाहर धरना दे दिया और उन्हें बाहर नहीं निकलने दिया। समाान्यतः ऐसा माना जाता हैं कि सदन में जब भी कोई गंभीर संकट आता हैं तो विस अध्यक्ष,उपाध्यक्ष,सदन के नेता और नेता प्रतिपक्ष मिलकर उसे निपटाते हैं। विपक्ष द्वारा जब अध्यक्ष को निकलने नहीं दिया तो बजाय उपाध्यक्ष के सभापति पैनल के सदस्य का आसंदी पर बैठना भी चर्चित हैं। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक हैं कि विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह क्या उस दौरान सदन में उपस्थित नहीं थे या पार्टी के इस अभियान में शामिल थे ? या फिर  किसी राजनैतिक कारणों से सोची समझी साझा रणनीति के तहत उपाध्यक्ष के बजाय सभापति पैनल के आदिवासी सदस्य ज्ञानसिंह को आसंदी पर आसीन कराया गया था?यहां यह उल्लेखनीय है कि कांग्रेस विधायक दल के उपनेता राकेश चौधरी और कल्पना पेरुलेकर को ज्ञानसिंह के साथ अपमानजनक व्यवहार करने के कारण ही अपनी सदस्यता से हाथ धोना पड़ा हैं। पहले कांग्रेस विधायकों द्वारा विस अध्यक्ष और मुख्यमंत्री के चेम्बरों का घेराव और उसके बाद आसंदी पर बैठे ज्ञान सिंह के साथ आरोपित अभद्र व्यवहार और फिर विस अध्यक्ष की उपस्थिति में संसदीय कार्य मंत्री द्वारा दोनों इंका विधायकों की सदस्यता समाप्त करने का प्रस्ताव लाना और हल्ले गुल्ले के बीच बिना सफाई का अवसर दिये उसे ध्वनिमत से पारित कर देने की घटना ने प्रदेश की विधानसभा के इतिहास को कलंकित कर दिया हैं। 
भाजपाऔर इंका ने भी जिले में किया विरोध प्रर्दशन -विधानसभा  में घटित घटनाओं का जिले में भी असर हुआ हैं। पहले भाजपा ने धरना देकर कांग्रेस पर विधानसभा की गरिमा को कलंकित करने का आरोप लगाते हुये  राज्यपाल के नाम ज्ञापन सौंपा। भाजपा ने यह आरोप भी लगाया कि विधानसभा में आसंदी पर बैठे सभापति पैनल के आदिवासी सदस्य ज्ञानसिंह का अपमान कर यह साबित कर दिया हैं कि कांग्रेस का लोकतांत्रिक परंपराओं में कोई विश्वास नही हैं। इस धरने में जिला भाजपा के तमाम नेता तो मौजूद थे लेकिन इस धरने में जिला भाजपा अध्यक्ष सुजीत जैन की अनुपस्थिति चर्चा का विषय बनी रही। उनके निकटस्थ सहयोगियों का कहना हैं कि कुछ प्रशासनिक कार्यों में व्यस्त रहने के कारण वे भोपाल से वापस नहीं आ पाये हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस के कुछ कार्यकर्त्ताओं ने भी जिला इंकाध्यक्ष हीरा आसवानी के नेतृत्व में विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी का पुतला दहन शुक्रवारी में किया। कांग्रेसजन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का पुतला नहीं जला पाये। कांग्रेसियों ने भी राज्यपाल के नाम ज्ञापन सौंपकर भाजपा पर आरोप लगाया कि उसने सदन में बहुमत का दुरुपयोग करते हुये कांग्रेस के विधायकों की सदस्यता समाप्त कर लोकतंत्र की हत्या की हैं। आनन फानन में कांग्रेस के द्वारा आयोजित इस पुतला दहन कार्यक्रम की सूचना अधिकांश कांग्रेसियो को कार्यक्रम संपन्न होने के अखबारों में प्रकाशित समाचार से ही प्राप्त हुयी। विधानसभा में जो कुछ भी घटित हुआ उस बारे में एक दूसरे पर आरोप लगाकर भाजपा और कांग्रेस ने तो अपने दायित्वों की इतिश्री कर ली लेकिन जो कुछ भी शर्मनाक घटनाक्रम हुआ उसने कई सवाल अनुत्तरित ही छोड़ दिये हैं। कांग्रेस यदि भ्रष्टाचार के मामले पर स्थगन प्रस्ताव पर चर्चा करना चाहती थी तो आखिर भाजपा को इसमें क्या आपत्ति थी? लेकिन कांग्रेस के सदस्यों ने आसंदी पर बैठे सभापति के साथ जो र्दुव्यवहार किया क्या वह उचित था? कांग्रेस सदस्यों की सदस्यता समाप्त करने वाला प्रस्ताव अध्यक्ष की उपस्थिति में हल्ले गुल्ले में ध्वनिमत से पास करना क्या उचित था? ये तमाम सवाल प्रदेश के सियासी हल्कों में कई दिनों तक गूंजते रहेंगें। “मुसाफिर“ 
साप्ता. दर्पण झूठ ना बोले से साभार

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