मित्रों,सौभाग्यवश बिहार सरकार में वरिष्ठ मंत्री रमई राम की क्रूरता के मारे अनंदू पासवान की जान बच गयी है.कई सप्ताह तक मुजफ्फरपुर के माँ जानकी अस्पताल में बंधक बने रहने के बाद जिला पार्षद मुक्तेश्वर प्रसाद सिंह के प्रयासों से वह अब घर आ गया है.लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इसके साथ ही उसकी समस्त चिंताओं का अंत हो गया हो.जहाँ पहले चिंता जान की थी अब चिंता अपने और अपने परिवार के पेट भरने की है.दुर्घटना ने शरीर को लगभग बेकार करके रख दिया है ऐसे में मेहनत-मजदूरी तो होने से रही.उसका पूरा परिवार इस चिंता से मरा जा रहा है कि अब कैसे पहाड़ जैसी जिंदगी कटेगी?सरकार का सहारा भी मिल सकता था लेकिन अनंदू तो सरकार का (मंत्री रमई राम) ही मारा है इसलिए उसे शायद ही सरकारी मदद मिले.
मित्रों,अगर अनंदू को सुशासन से मदद मिलनी ही होती या फिर सुशासन को उसकी मदद करनी ही होती तो गाय का दूध पीने से खुद को तेज बुद्धि का माननेवाले (ऐसा दावा उन्होंने आज ९ जुलाई के अख़बार में खुद ही किया है) बिहार के राजस्व और भूमि सुधार मंत्री रमई राम उसे मरने के लिए उसके घर पर नहीं फेंकवा देते.सड़क पर घायल पड़े व्यक्ति को भी लोग अपना मानवीय फर्ज समझकर अस्पताल तक पहुंचा देते हैं फिर अनंदू को तो मंत्री जी के आवास में उनकी उसी गाय ने मारकर घायल कर दिया था जिसका दूध पीकर वे अपनी बुद्धि को धारदार बना रहे हैं.इस तरह तो किसी घायल और लाचार की मदद नहीं की जाती अलबत्ता उनका यह कर्म हत्या की श्रेणी में जरूर आ सकता है.हत्या भी उन्होंने सिर्फ एक गरीब मानव की ही नहीं की है वरन मानवता और इंसानियत की भी की है अथवा हत्या का प्रयास तो किया ही है वो भी गैरईरादतन तो हरगिज नहीं.
मित्रों,पहली गलती करने के बाद भी सरकार को अनंदू की मदद ही करनी थी तो इसके लिए और भी अवसर मौजूद थे.सरकार चाहती या मंत्री रमई बाबू चाहते तो अपने खर्चे पर उसके उत्तम ईलाज की व्यवस्था करवा सकते थे लेकिन ऐसा भी नहीं हो सका या फिर नहीं किया गया.अनंदू अस्पताल का भारी-भरकम बिल नहीं चुका सकने के कारण कई सप्ताह तक बेवजह अस्पताल में बंधक बना पड़ा रहा.बिल भी कोई कम नहीं था-पूरा डेढ़ लाख रूपया.इतना पैसा तो बेचारे ने कभी देखा भी नहीं था;सिर्फ सुना था;फिर लाता कहाँ से?सरकार या मंत्रीजी रमई बाबू चाहते तो उस समय भी रकम चुकाकर अपने पापों का प्रायश्चित कर सकते थे लेकिन उन्होंने तब भी ऐसा नहीं किया.अंत में प्रशासन ने हस्तक्षेप कर उसे जबरन रात के दो बजे अस्पताल से छुड़ा लिया और घर पहुंचा दिया.इस प्रकार दयालुता और सदाशयता का बेवजह दंड भुगतना पड़ा माँ जानकी अस्पताल को.अब भविष्य में शायद ही यह अस्पताल किसी फटी जेब वाले गरीब को अपने यहाँ भर्ती करे.
मित्रों,रमई बाबू आज भी मंत्री हैं और आज ही (९ जुलाई को) उन्होंने लालू को अपनी तेज और प्रखर बुद्धि से पटखनी देने का दावा भी किया है.उनकी तेज बुद्धि को भगवान और भी तेज करे (अगर वह होता है तो) परन्तु क्या वे कभी इसका सही इस्तेमाल भी करेंगे?बुद्धि तो एक ईश्वरीय देन है और उसका सदुपयोग या दुरुपयोग करना उसके स्वामी के विवेक पर निर्भर करता है और मैं नहीं समझता कि अपने किसी मरणासन्न और लहू-लुहान गरीब नौकर को अस्पताल भेजने के बदले उसके झोपड़ीनुमा-अभावग्रस्त घर पर फेंकवा देने को किसी भी तरह से बुद्धि का सदुपयोग करना कहा जाना चाहिए,अलबत्ता यह उसका दुरुपयोग जरूर है.
मित्रों,मैं यह नारा लगभग प्रत्येक जुलूस-प्रदर्शन में सुनता रहा हूँ-"खून तो खून है बहेगा तो जम जाएगा;जुल्म तो जुल्म है बढ़ेगा तो मिट जाएगा."परन्तु क्या ऐसा सचमुच हो रह है?क्या जुल्म जब इन्तहां (अंतिम सीमा) तक पहुँच जाता है तो सचमुच जुल्म करनेवाले समाप्त हो जाते हैं?जुल्म की अंतिम सीमा क्या है या फिर उसकी कोई अंतिम सीमा होती भी है?क्या अनंदू पर हुआ जुल्म जुल्म की अंतिम सीमा नहीं है?अगर हाँ तो फिर रमई राम जैसा दानव आज की तारीख में भी क्यों मंत्री बना हुआ है?क्या उनका कृत्य किसी भी तरह से सुशासन को बढ़ावा देने का काम कर रहा है?अगर नहीं तो फिर सुशासन बाबू यानि नीतीश कुमार क्यों उनकी तरफ से धृतराष्ट्र बने हुए हैं?क्यों उन्होंने स्वयं हस्तक्षेप करके अनंदू की मदद नहीं की?क्यों??फिर सेवा-यात्रा निकालने का क्या मतलब है?आखिर कब तक ऐसे ही अनंदू जैसे लाचारों और पेट के मारों का खून जमीन पर बहता रहेगा और बह-बहकर जमता रहेगा और आखिर कब तक इन सब बातों से बेखबर होकर धरती ऐसे ही अपनी धुरी पर घूमती रहेगी?कब तक??कब तक???
मित्रों एक दुखद घटनात्मक प्रगति हुई है.सत्ता के नशे में चूर सुशासन ने रमई राम का घेराव करने और उन पर हमला करने के झूठे मुक़दमे के तहत अनंदू की प्राण-रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले मुक्तेश्वर प्रसाद सिंह को कल गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है.अब शायद रमई राम और सुशासन का जुल्म अंतिम सीमा को छूने लगा है.
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