20.7.12

गुटखे पर पाबंदी : सरकार का तुगलकी आदेश


राज्य सरकार ने गुटखे पर रोक लगा कर यूं तो साधुवाद का काम किया है, जिसकी जितनी सराहना की जाए, कम है, मगर जिस तरीके से एक झटके में रोक लगाई, उसे यदि तुगलकी आदेश कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
सीधी सीधी बात है, यदि सरकार को यह निर्णय करना था तो पहले गुटखा बनाने वाली फैक्ट्रियों को उत्पादन बंद करने का समय देती, स्टाकिस्टों को माल खत्म करने की मोहलत देती तो बात न्यायपूर्ण होती, मगर सरकार ने ऐसा नहीं किया। अब सवाल ये है कि तम्बाकू मिश्रित गुटका बनाने वाली फैक्ट्रियों में जमा सुपारी, कत्था व तंबाकू का क्या होगा? इन फैक्ट्रियों में काम करने वाल मजदूरों का क्या होगा? स्टाकिस्टों और होल सेलर्स के पास जमा माल का क्या होगा? रिटेलर्स के पास रखे माल को कहां छिपाया जाएगा? इनका सरकार के पास कोई जवाब नहीं है। यानि की यह तुगलकी फरमान ही है। मजे की बात देखिए कि सरकार जानती थी कि गुटखा बनाने वाले कोर्ट में जा कर स्थगनादेश लगाने की कोशिश करेंगे, लिहाजा केवियेट लगाने की बात भी कह दी।
अब बात जरा इस यकायक लागू किए गए आदेश के परिणाम की। माना कि तम्बाकू मिश्रित गुटखा बनाने वाली फैक्ट्रियां अब आगे और उत्पादन नहीं करेंगी, मगर वह उनके पास मौजूद माल को दबा लेंगी। मांग बढऩे के चलते स्टाकिस्ट व होलसेलर्स को अधिक दाम मांगेंगी। होलसेलर्स भी इस मौके का फायदा उठाएंगे और बढ़ी दरों पर रिटेलर्स को माल देंगे। कुल मिला कर गुटके की जम कर ब्लैक होगी। एक अर्थ में देखा जाए तो खुद सरकार ने ही एक झटके में रोक लगा कर ब्लैक मार्केटिंग को बढ़ावा देने का कदम उठाया है। सरकार को निर्णय लागू करने की इतनी जल्दी क्या थी, यह समझ से परे है। यदि दैनिक भास्कर की मानें तो यह उसके दबाव की वजह से हुआ है, मगर ऐसा लगता नहीं है। पाबंदी लागू करने की तैयारी पहले से चल रही होगी। या तो उसे एक्सरसाइज की भनक भास्कर को लग गई होगी अथवा सरकार ने उसे क्रेडिट देने के लिए यह जानकारी लीक की होगी। सरकार ने ऐसा इस लिए किया होगा ताकि वह कह सके कि प्रदेश की जनता यही चाहती थी।
अब सवाल ये भी कि क्या यह पाबंदी असरकारक होगी? अव्वल तो गुटका चोरी-छुपे बनेगा और बिकेगा भी। जो टैक्स बढ़ाए जाने पर अथवा पोली पैक बंद होने पर महंगा होने के बाद भी खाते थे, वे ऊंचे दाम में भी खरीदने को तैयार रहेंगे। उलटा तस्करी और चालू हो जाएगी। खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का कहना है कि अभी आधा काम हुआ है, आधा करने की जिम्मेदारी आम लोगों की है। मगर लगता ये है कि न तो यह आधा काम हुआ है और न इसके पूरा होने की संभावना है। असल में पाबंदी तंबाकू मिश्रित गुटखे पर लगी है। अब भी पान मसाला अलग से मिलेगा और तंबाकू भी। लोग दोनों को खरीद कर उसका गुटका बना कर खाएंगे। यदि सादा मसाले वाले गुटके पर भी रोक लगाई गई तो लोग वापस उसी गुटके पर आ जाएंगे, जहां से यह कहानी शुरू हुई थी। पहले पान की दुकान वाले सुपारी, कत्था, चूना व तम्बाकू रगड़ कर गुटका बनाया करते थे। अब भी वह गुटका चलता है। कुल मिला कर सरकार का जो मकसद है कि तम्बाकू के सेवन अंकुश लगे, वह पूरा होना नहीं है।
रहा सवाल कानूनी पाबंदी का तो वह कितनी कारगर होगी, इसकी कल्पना गुजरात में शराब पर लगी रोक से की जा सकती है। वहां भले ही दुकानों पर शराब नहीं मिलती, मगर होम डिलीवरी तो चालू है ही। कहने वाले तो कहते हैं कि गुजरात में शराब उलटे आसानी से उपलब्ध हो जाती है। ये शराबबंदी छद्म है और शराब पर कोई रोक नहीं लगाई जा सकी है। ठीक इसी प्रकार राजस्थान में भी होगा। गुटका चोरी छिपे मिला करेगा। अलबत्ता ज्यादा दामों पर। हकीकत तो ये है कि मार सिर्फ आम आदमी पर पड़ेगी। सस्ता गुटका मिलना बंद हो जाएगा। अमीर को तो कोई फर्क नहीं पडऩा। वह तो वैसे भी सस्ता गुटका नहीं खाता। वह तो रजनीगंधा और डबल जीरो मिला कर ही खा रहा है।
कुल मिला कर गहलोत का बयान इस अर्थ में जरूर सही है कि अगर लोगों ने गुटके की आदत नहीं छोड़ी तो उनके आदेश का कोई मतलब ही नहीं रह जाएगा। जब तक गुटके खिलाफ माहौल नहीं बनेगा, तब तक नतीजा सिफर ही रहने वाला है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

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