26.8.12

माटी का शेर निकला सोशल मीडिया-ब्रज की दुनिया

मित्रों,मुझे ज्वलंत मुद्दों पर लिखने का शौक तभी से है जबसे मैं पत्रकारिता के क्षेत्र में आया। वर्ष 2007 के 1 सितंबर को जब मैंने पटना,हिन्दुस्तान ज्वाइन किया उससे पहले ही मेरे कई आलेख भोपाल और नोएडा के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके थे। हिन्दुस्तान में भी कोशिश की लेकिन मेरे जैसे प्रशिक्षु पत्रकार को कहाँ इस विशालकाय अखबार में स्थान मिलनेवाला था? मन कचोटता,मन में नए-नए विचार उमड़ते और शब्दों का रूपाकार ग्रहण करने लगते। कई बार दिल्ली स्थित महामेधा आदि छोटे अखबारों को ई-मेल भी किया परन्तु किसी ने मेरी ओर दृष्टिपात तक नहीं किया। एक आलेख जरूर दिसंबर,2009 की योजना पत्रिका में प्रकाशित हुई और मुझे मेहनताना के तौर पर 800 ऱू. का चेक भी मिला। अंत में तबके मेरे सहकर्मी और मेरे प्रति बड़े भाई जैसा स्नेह रखनेवाले वीरेन्द्र यादव ने मुझे ब्लॉगों की दुनिया से अवगत कराया। अंधा क्या मांगे दो आँखें। लगा जैसे मुझे अपने जीने का उद्देश्य प्राप्त हो गया। मैंने झटपट blogspot.com पर ब्रज की दुनिया नाम से एक वेबसाईट बना डाली और सबसे पहले प्रायोगिक तौर पर सिर्फ यह देखने के लिए कि क्या सचमुच मैं जो कुछ भी यहाँ लिखूंगा वह ऑनलाइन हो जाएगा,जिन्दगी एक जुआ शीर्षक से छोटी-सी बतकही डाल दी। फिर तो जैसे लेखन का सिलसिला ही चल पड़ा। मेरा मिशन कभी भी पैसा कमाना नहीं था और न ही यहाँ लिखने से पैसा मिलने ही वाला था बल्कि मेरा मिशन था एक सोये हुए राष्ट्र की आत्मा को जागृत करना,उसे झकझोरना और दुनिया को खूबसूरत बनाना। बाद में मैं blogspot.com के अलावे media club of india,indyarocks.com,जनोक्ति,जागरण जंक्शन और नवभारत टाइम्स डॉट कॉम पर भी लिखने लगा,स्वान्तः सुखाय, सर्वजन हिताय;पूरी तरह से निःशुल्क।
                      मित्रों,मेरे आलेख इस बात के गवाह हैं कि मैंने कभी सांप्रदायिक या जातिवादी दृष्टिकोण से कोई भी आलेख नहीं लिखा। मैंने जो भी लिखा दिमाग से नहीं दिल से लिखा। बाद में मेरे आलेख देश के लगभग सभी प्रमुख हिन्दी समाचार-पत्रों में प्रकाशित भी किए गए लेकिन मुझे इसका कोई आर्थिक लाभ नहीं हुआ। मैं देशहित और जगतहित में अनवरत लिखता गया,बस लिखता गया। यहाँ मैं blogs in media वेबसाईट के संचालक श्री बी.एस.पाबला जी का आभार प्रकट करना चाहूंगा जिन्होंने मुझे समय-समय पर देश के विभिन्न अखबारों में छपनेवाले मेरे आलेखों के बारे में जानकारी दी। मैं खुश था कि अब मेरी लेखनी किसी संपादक या प्रकाशक की कृपादृष्टि की मोहताज नहीं है। अब मैं खुद ही अपना प्रकाशक भी था और संपादक भी। मैंने हमेशा भारत और विश्व में व्याप्त राजनीतिक,सामाजिक और आर्थिक अव्यवस्थाओं और विद्रुपताओं पर करारा प्रहार किया। सिर्फ समस्याएँ नहीं गिनाईं वरन् समाधान भी प्रस्तुत किए। लगा जैसे मेरे कलमरूपी आजाद पंछी को उड़ने के लिए अनंत आकाश मिल गया है जहाँ वह निर्बाध उड़ान भरने लगा। हालाँकि इसी बीच केंद्र की वर्तमान नाकारा और नालायक सरकार की ओर से सोशल मीडिया के हम आजाद पंछियों के पर कतरने के प्रयास भी शुरू हो गए थे लेकिन तब से न जाने किस कारण से उसके प्रयास बेकार जा रहे थे। फिर पिछले दिनों प्रदेश की कांग्रेस सरकार की गलत नीतियों की वजह से असम में दंगे होने लगे और धीरे-धीरे उसकी आँच पूरे देश में पहुँचने लगी। अब दुर्योधनरूपी केंद्र सरकार को जैसे श्रीकृष्णरूपी सोशल मीडिया को बांधने का बहाना मिल गया। सैंकड़ों ऐसी वेबसाईटें जो सरकार की नीतियों की प्रबल विरोधी थीं को तत्काल प्रभाव से प्रतिबंधित कर दिया गया। खुद मेरे ब्लॉग से आज 25-08-2012 को भारत में बकरीद के दिन खुलेआम सड़कों पर काटी जा रही गायों की तस्वीरें हटा दी गईं हैं एक साथ brajkiduniya.blogspot.com,bhadas.blogspot.com और नवभारत टाईम्स रीडर्स ब्लॉग डॉट कॉम के ब्लॉग से। भड़ास और ब्रज की दुनिया ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम पर तो मैंने फिर से तस्वीरें लगा भी दी है लेकिन नवभारत टाइम्स के ब्लॉग पर उसकी जगह को पूर्ववत खाली ही छोड़ दिया है।
                    मित्रों,हो सकता है कि निकट भविष्य में सर्वजनहिताय सर्वजनसुखाय के लिए सदैव तत्पर मेरे ब्लॉग को ही पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया जाए। आज मेरे ब्लॉग से तस्वीरों को जिस प्रकार हटा दिया गया है उससे मुझे घोर निराशा हुई है। मुझे निराशा अपनी केंद्र की सरकार की ओर से नहीं हुई है क्योंकि ये लोग ऐसे ही हैं जो स्थितियों में बदलाव के लिए प्रयास नहीं करते बल्कि येन केन प्रकारेण अपने आलोचकों का मुँह बंद कर देना चाहते हैं। मुझे निराशा हुई है सोशल मीडिया वेबसाइटों के संचालकों से। कहाँ तो जनाब दुनियाभर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अमेरिकी ठेकेदार,झंडाबरदार और रक्षक बने फिरते थे और कहाँ तो महाभ्रष्ट और महाबेकार साबित हो चुकी भारत की केंद्र सरकार ने जरा-सी घुड़की क्या दिखाई कि जनाब झुकने के बदले सीधे पेट के बल रेंगने लगे। जिनको हमने असली शेर समझा था वे तो मिट्टी के शेर निकले और वह भी भुरभुरी मिट्टी के बने हुए। निकट भविष्य में मेरा ब्लॉग प्रतिबंधित होने से बचता है या नहीं अभी कहा नहीं जा सकता लेकिन अगर ऐसा हुआ तो मैं कहाँ और कैसे लिखूंगा पता नहीं। मगर अब तो तब का शौक आदत बन चुकी है। इतना तो निश्चित है कि अब मैं बिना लिखे रह ही नहीं सकता सो विकल्प तो ढूंढना ही पड़ेगा।
                     मित्रों,मैं अंत में अपनी विश्वासघातिनी और महाघोटालेबाज केंद्र सरकार से जानना चाहता हूँ कि क्या इस समय देश में किसी तरह का आपातकाल लगा हुआ है? फिर वह क्यों और कैसे हमारे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19.(1)(क) में दिए गए अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार को हमसे छीन सकती है? क्या हमने अपने इन अधिकारों का गलत इस्तेमाल किया है? अगर नहीं तो फिर यह जुल्म क्यों और अगर हाँ तो वह हम पर मुकदमा क्यों नहीं चलाती और हमें अदालत से सजा क्यों नहीं दिलवाती? साथ ही मैं भारत के सर्वोच्च न्यायालय जिसे संविधान द्वारा नागरिकों के मौलिक अधिकारों का संरक्षक बनाया गया है से निवेदन करता हूँ कि वह भारत सरकार द्वारा अपने नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर किए जा रहे प्रहार पर स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई करे अन्यथा निकट-भविष्य में लोकतंत्र इस महाभ्रष्ट सरकार का बंधक हो जाएगा और भारत में केंद्र सरकार की तानाशाही कायम हो जाएगी। साथ ही भारतीय प्रेस परिषद् के अध्यक्ष न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू से भी मेरी करबद्ध प्रार्थना है कि वे हम जैसे छोटे पत्रकारों के अधिकारों के रक्षार्थ अविलंब समुचित कदम उठाएँ। 

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