14.8.12

शहीद की वेदना


शहीद की वेदना 

अमर जवान ज्योति से,
निकली थी एक सिसकी .
मेने पूछा  -
शहीद,
तुम-
वीर थे,बहादुर थे. 
वतन पर मर मिटे थे. 
तुम्हारी वीर गाथा से, 
इतिहास भरा पड़ा है. 
तुम- 
हँसते-हँसते, 
चढ़ गए थे सूली पर. 
गोरों की गोलियों को, 
लेते थे सीधा छाती पर.
मगर- 
आज तुम मायूस क्यों?
आज तुम सुबकते क्यों?
शहीद बोला-
गैरो ने ढाया सीतम, 
तब इन्कलाब कह गये. 
देखा -
अपनों का अपनों पर सीतम ,
हाय!अब आंसू सिसकी रह गये !!

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