28.8.12

स्वप्न संसार


* प्रेम कल्पना लोक , स्वप्न संसार है | जबकि विवाह ज़िन्दगी का यथार्थ | यथार्थ में सपने नहीं चलते | अच्छा हुआ जो मेरा सपना यथार्थ में नहीं तब्दील हुआ |

* मैं कोई सौन्दर्य प्रसाधन इस्तेमाल नहीं करता | यहाँ तक कि दाढ़ी बनाने के लिए भी शीशा देखने की ज़रुरत नहीं होती मुझे | पर नहाने के बाद अगल बगल थोड़ा पावडर लगाने की आदत है मेरी | क्या यह विलासिता की श्रेणी में आता है
* औरतें सुंदर तो बहुत होती हैं | अच्छी भी लगती हैं | लेकिन दुःख बहुत देती हैं |
* किसी को याद है मुमताज को शाहजहाँ से कितने बच्चे जनने पड़े थे ? शायद दर्ज़न भर | यह प्रेम विवाह का नतीजा था | भुगतना ज्यादा तो मुमताज को पड़ा | थोड़ा शाहजहाँ को भी ज़रूर, ताजमहल तीमार करवाने में |

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