लंबे समय से यूपीए सरकार की मजबूत बैसाखी बने सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव अब अचानक बदले-बदले नजर आने लगे हैं। संकट के दौर में कांग्रेस नेतृत्व को संबल देने वाले मुलायम के सुर बदल गए हैं। उन्होंने भाजपा की तर्ज पर राजनीतिक निशाने साधने शुरू कर दिए हैं। बुधवार से सपा की दो दिवसीय कार्यकारिणी की बैठक कोलकाता में शुरू हुई है। उद्घाटन भाषण में ही सपा सुप्रीमो ने साफ-साफ कह दिया कि घोटालों से घिरी केंद्र सरकार ने जनता के बीच अपनी विश्वसनीयता खो दी है। उन्होंने यहां तक कह डाला कि अब सपा खांटी विपक्ष की भूमिका निभाएगी। सपा नेतृत्व ने कोयला ब्लॉक आवंटन के विवाद में भी अचानक आक्रामक रणनीति अपना ली है। पार्टी प्रमुख और उनके सिपहसालारों ने कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल के खिलाफ बयानों की बमबारी शुरू कर दी है। मुलायम ने कोयला मंत्री पर गंभीर आरोप जड़े हैं। कोयला प्रकरण में प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने भी जायसवाल पर तमाम आरोप लगाए थे। अब सपा ने भी जायसवाल का इस्तीफा मांगा है। पिछले दिनों संसद में मुलायम सिंह ने कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ एक नए राजनीतिक मोर्चे के लिए लामबंदी की शुरुआत की थी। उन्होंने वाममोर्चा और तेलगु देशम के साथ मिलकर संसद परिसर में धरना दिया था। इन लोगों ने भाजपा और कांग्रेस दोनों की नीतियों को कोसा था। यही कहा था कि अब देश को एक नए राजनीतिक विकल्प की जरूरत है। दरअसल, मुलायम सिंह को लगने लगा है कि यदि विधानसभा की तरह लोकसभा के चुनाव में भी उन्हें यूपी में भारी सफलता मिल जाती है, तो वे तीसरे मोर्चे की राजनीति की अगुवाई आराम से कर सकते हैं। इस राजनीतिक जोड़-तोड़ के खेल में वे तेजी से जुट गए हैं। मुलायम के इस पैंतरे से कांग्रेस नेतृत्व हतप्रभ है। लगता यही है कि सपा नेतृत्व ने भांप लिया है कि अब कांग्रेस के साथ जुड़े रहने से राजनीतिक ‘डूब’ का खतरा बढ़ सकता है। ऐसे में नए राजनीतिक समीकरणों के तोल-मोल का दौर तेज हो सकता है। लेकिन सपा की ताजा पहल तभी कुछ कारगर हो सकती है, जब वाम मोर्चा यू-टर्न करने में माहिर ‘नेता जी’ पर वाकई में भरोसा कर ले।
वीरेंद्र सेंगर (कार्यकारी संपादक, डीएलए)।
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