शायद आप लोगो को ये जान कर बहुत आश्चर्य होगा पर बहुत सोच समझकर मैंने ये फैसला लिया है की मैं अपने "जन सेवा केंद्र " की फ्रेंचाइजी को वापस कर रहा हु .
निश्चित ही आप लोग सोच रहे होंगे की मैंने अचानक ये फैसला क्यों ले लिया.
मैंने ये फैसला इसलिए लिया क्योकि मैंने ये फ्रेंचाइजी जनता की सेवा करने के लिए लिया था न की किसी भी तरह से पैसे कमाने के लिए. आपने पिछले कुछ दिनों में फेसबुक पर मेरे केंद्र से सरकारी सेवाए शुरू होने के साथ साथ एक प्रमाड पत्र भी देखा होगा.परन्तु मुझे आप लोगो को ये बताते हुए ये दुःख हो रहा है की ये व्यवस्था आधी ऑनलाइन और आधी ऑफलाइन होने की वजह से यहाँ भी भ्रष्टतंत्र स्थापित हो गया है.मैंने अभी तक अपने केंद्र से कई फ़ार्म सबमिट किया मगर समय से कोई कभी प्रमाड पत्र नहीं आया .मैं पिछले दस दिनों से लगातार तहसील के चक्कर काट रहा था और मुझे कहा जा रहा था की आपके सभी फार्मो की रिपोर्ट लग चुकी है और जल्द ही आपको प्रमाड पत्र मिल जायेंगे परन्तु जब 20 दिन बाद भी प्रमाड पत्र नहीं मिले और लोग मुझसे उसके बारे में सवाल करने लगे तो कल मैं देवरिया के जिलाधिकारी से मिला और इसकी शिकायत की,उन्होंने मुझे आश्वासन दिया की वो जल्द ही इस पर कुछ करेंगे. फिर मैंने तहसीलदार से मुलाकात की उन्होंने अपने एक आदमी से मुझे बात करने को कहा .मैं जब उनसे मिलने पहुचा तो देखा की सैकड़ो लोग उनके पीछे लगे थे और वो भाई साहब एक हाथ से लोगो से पैसे ले रहे थे और दुसरे हाथ से कागजों पर दस्तखत कर रहे थे. 4-5 घंटे उनके पास बैठने के बाद उन्हें फुर्सत मिली तो याद आया की जिलाधिकारी महोदय ने उनको प्रमाड पत्र जारी करने को कहा है. अब मुझे लगा की भाई साहब कम्प्यूटर पर बैठकर मेरे प्रमाड पत्र जारी कर देंगे,मगर भाई साहब तो अपने किसी और आदमी को खोजने लगे जो कम्प्यूटर जानता हो .खैर किसी तरह वो अपना थैला उठाये और प्रमाड पत्र जारी करने के लिए कम्प्यूटर पर बैठे. (ऐसा इसलिए क्योकि तहसीलदार महोदय को कम्प्यूटर नहीं आता और उन्होंने अपना डिजिटल सिग्नेचर इन भाई साहब को सुपुर्द कर दिया था )
प्रमाड पत्र जारी करने के लिए जब भाई साहब ने अपना थैला खोला तो उसमे किसी पथरदेवा के जन सेवा केंद्र के फ़ार्म थे किन्तु मेरे एक भी नहीं .मैं उनसे पूछता रहा की भाई साहब मेरे फ़ार्म कहा है मगर वो गुटका चबाने में इतना व्यस्त थे की उनके मुख से कुछ निकल ही नहीं रहा था.खैर फिर मैंने पथरदेवा के उस जन सेवा केंद्र संचालक से बाहर आकर बात की की भाई आपके फ़ार्म यहाँ हैं.मेरे क्यों नहीं. तो उन्होंने मुझे बताया की उन्होंने इनको 2000 रूपए दिए हैं इसलिए उनका काम जल्दी किया जा रहा है.मैंने उस केंद्र संचालक को डाटा की आज तुहारी एक गलती से सभी केंद्र संचालको को दिक्कत हो रही है क्योकि तुमने जो घूस देने की शुरुआत कर दी है उसका खामियाजा हम सबको भुगतना पड़ेगा .खैर मैं सिर्फ बोल ही तो सकता था, इन सबमे शाम के 7 बज चुके थे और मेरे फ़ार्म का पता नहीं था .अंत में मैंने कुछ शख्त रवैया अपनाते हुए रात को 8 बजे तहसील का ताला खुलवाकर अपनी फ़ाइल निकलवाई तो देखा की उस पर इतने दिनों में कोई रिपोर्ट नहीं लगी है. अगले दिन मैं खुद उस फ़ाइल को लेकर लेखपाल और कानूनगो के पास गया तो वो लोग भी मुझे पैसे देने का इशारा करने लगे. मैंने वह देखा की जो भी उनकी जेब में 50 रूपए दाल देता उसका काम तुरंत हो जाता और जो नहीं देता उसको कुछ भी कहकर टाल दिया जाता .
जाहिर सी बात है की अगर मुझे इनको पैसे देने पड़े तो वो पैसे मुझे जनता से ही लेने पड़ेंगे जो की मैं कर नहीं सकता क्योकि मैंने ये केंद्र जनता को सरलता और आसानी से कम पैसे में सेवा देने के लिए खोला था न की ज्यादा पैसे लेकर खुद इस भ्रष्टतंत्र का हिस्सा बन्ने के लिए .
मुझे इन चीजों को देखकर मेरे अंतर्मन में बहुत दुःख हुआ की आज के समय में हर आदमी बिक चुका है और डैडी फिल्म का वो गाना याद आया की ".ये वो जगह है जहा वफ़ा बिकते हैं,बात बिकते हैं और लफ्ते जिगर बिकते हैं,कोख बिकती है,दिल बिकते है,सर बिकते है , इस बदलती हुयी दुनिया का खुदा कोई नहीं,सस्ते दामो में हर रोज खुदा बिकते है....
हर खरीददार को बाज़ार में बिकता पाया ,हम क्या पायेंगे किसी ने यहाँ क्या पाया. मेरे एहसास ,मेरे फूल कही और चले....."
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