मित्रों,वर्ष 1995-96 की बात है। मैं महनार (वैशाली) से मोहिउद्दीननगर (समस्तीपुर) अपनी मौसी के घर जा रहा था। रास्ते में लावापुर चौक पर एक क्षीणकाय वृद्ध बस में सवार हुआ। कंडक्टर ने आदतन उससे पैसा मांगा तो उसने अकड़ते हुए उत्तर दिया कि जानते नहीं हो कि मैं राजगीर राय का बाप हूँ। राजगीर राय को उन दिनों महनार-समस्तीपुर का आतंक माना जाता था। कंडक्टर सहम गया और चुपचाप एक खाली सीट पर जाकर बैठ गया। उन दिनों पूरे बिहार में रंगदारों का ही शासन था। कहीं साधु यादव डीएम की कार्यालय में घुसकर पिटाई कर रहे थे तो कहीं पप्पू यादव दारोगा की मूँछे उखाड़ रहे थे। दुकानदार तो रंगदारी भरने को बाध्य थे ही गाड़ी-संचालकों की भी जान और जेब पर बन आई थी। यहाँ तक कि कॉलेजों में भी छात्र-छात्राओं को रंगदारी कर देना पड़ता था। मैं खुद भी उन दिनों पूर्णिया पॉलिटेक्निक में इसका भुक्तभोगी रह चुका हूँ।
मित्रों, फिर आया 2005 का साल। निजाम बदला,इंतजाम बदला। नई सरकार ने आमदनी के नए-नए क्षेत्रों और श्रोतों के ऊपर ध्यान देना शुरू किया। सारे टेम्पो स्टैण्डों की विधिवत निलामी शुरू हुई। अब तक जो रंगदार बिना सरकारी अनुमति के गाड़ी-चालकों से रंगदारी वसूल रहे थे उन्होंने अविलंब निलामी खरीद ली और लाइसेंसी रंगदार बन बैठे। जिनको सरकार या स्थानीय-निकायों ने 2 रू. प्रति खेप वसूलने की अनुमति दी वे 20 रू. प्रति खेप तक वसूलने लगे। कुछ उदाहरण पेशे खिदमत है-हाजीपुर (वैशाली) के जिलाधिकारी निवास से कुछ सौ मीटर की दूरी पर स्थित गांधी चौक स्थित टेम्पो स्टैण्ड का ठेकेदार राजू राय प्रति खेप 5 रू. के बदले 15 रू. वसूलता है और विरोध करने पर पीटता भी है। अभी 7 सितम्बर को उसके लोगों ने एक टेम्पो चालक की कुछ ज्यादा ही पिटाई कर दी। विरोधस्वरूप 8 सितंबर को टेम्पो-चालकों ने हड़ताल कर दी लेकिन अभी तक उनको इसका कोई लाभ होता दिख नहीं रहा। अभी भी 15 रू. प्रति खेप बदस्तूर कर रहे हैं। नुकसान जनता को भी है। टेम्पो-चालक अवैध-वसूली की भरपाई यात्रियों से बेहिसाब भाड़ा वसूलकर जो करते हैं। उदाहरण के लिए चौहट्टा से गांधी चौक का भाड़ा 3 रू. है मगर जनता को 5 रू. देना पड़ रहा है। हाजीपुर के ही जढ़ुआ स्थित टेम्पो स्टैण्ड का ठेकेदार श्रवण राय तो और भी अत्याचारी है। उसने तो रंगदारी-कर की कोई निश्चित दर ही नहीं रखी है। वह टेम्पो चालकों से कभी प्रति खेप 5 की जगह 25 रू. वसूलता है तो कभी 50 रू.। इसी प्रकार हाजीपुर जंक्शन टेम्पो स्टैण्ड में 20 रू. प्रति खेप की जगह 50 रू. प्रति खेप की जबरन वसूली की जाती है तो करबिगहिया,पटना जंक्शन टेम्पो स्टैण्ड में भी 20 रू. प्रति खेप के स्थान पर 50 रू. प्रति खेप की अवैध वसूली की जा रही है जिसका खामियाजा अंततः आम जनता को ही भुगतना पड़ रहा है।
मित्रों,मैं पूरे बिहार के प्रत्येक टेम्पो और बस स्टैण्डों में तो जा नहीं सकता मगर मेरा पूरा विश्वास है कि आज की तारीख में कुछेक को छोड़कर बिहार के सभी टेम्पो और बस स्टैण्डों में टेम्पो और बस चालकों से अवैध वसूली की जा रही है। सरकार और स्थानीय निकाय अपनी आमदनी बढ़ाए,बेशक बढ़ाए लेकिन यह कौन देखेगा कि उसके द्वारा दिए गए कर-वसूली के अधिकार का कोई ठेकेदार दुरूपयोग तो नहीं कर रहा है? मुझे यह भी मालूम है कि जब यही कर-वसूली सरकारी मुलाजिम कर रहे थे तब सरकारी खजाने में कम उनकी अपनी जेबों में ज्यादा राशि जमा हो रही थी इसलिए सरकार के समक्ष यह विकल्प भी अनुपलब्ध है। परन्तु क्या यह देखना भी सरकार,स्थानीय निकायों और प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं है कि कोई उसके द्वारा दिए गए कर-वसूली के लाइसेंस का दुरूपयोग तो नहीं कर रहा है? अगर अवैध वसूली अब भी जारी है और वसूले जानेवाले धन की आनुपातिक मात्रा पहले से भी कहीं ज्यादा हो गई है तो फिर सरकार या निजाम को बदलने से क्या फायदा? तब वर्तमान सरकार को ऐसा दावा भी नहीं करना चाहिए कि उसके राज में रंगदारी बंद या कम हो गई है। सच्चाई तो यह है कि बिहार सरकार ने उल्टे पुराने रंगदारों को रंगदारी-वसूलने का सरकारी लाइसेंस दे दिया है और जनता को उनके रहमोकरम पर छोड़ दिया है।
मित्रों, फिर आया 2005 का साल। निजाम बदला,इंतजाम बदला। नई सरकार ने आमदनी के नए-नए क्षेत्रों और श्रोतों के ऊपर ध्यान देना शुरू किया। सारे टेम्पो स्टैण्डों की विधिवत निलामी शुरू हुई। अब तक जो रंगदार बिना सरकारी अनुमति के गाड़ी-चालकों से रंगदारी वसूल रहे थे उन्होंने अविलंब निलामी खरीद ली और लाइसेंसी रंगदार बन बैठे। जिनको सरकार या स्थानीय-निकायों ने 2 रू. प्रति खेप वसूलने की अनुमति दी वे 20 रू. प्रति खेप तक वसूलने लगे। कुछ उदाहरण पेशे खिदमत है-हाजीपुर (वैशाली) के जिलाधिकारी निवास से कुछ सौ मीटर की दूरी पर स्थित गांधी चौक स्थित टेम्पो स्टैण्ड का ठेकेदार राजू राय प्रति खेप 5 रू. के बदले 15 रू. वसूलता है और विरोध करने पर पीटता भी है। अभी 7 सितम्बर को उसके लोगों ने एक टेम्पो चालक की कुछ ज्यादा ही पिटाई कर दी। विरोधस्वरूप 8 सितंबर को टेम्पो-चालकों ने हड़ताल कर दी लेकिन अभी तक उनको इसका कोई लाभ होता दिख नहीं रहा। अभी भी 15 रू. प्रति खेप बदस्तूर कर रहे हैं। नुकसान जनता को भी है। टेम्पो-चालक अवैध-वसूली की भरपाई यात्रियों से बेहिसाब भाड़ा वसूलकर जो करते हैं। उदाहरण के लिए चौहट्टा से गांधी चौक का भाड़ा 3 रू. है मगर जनता को 5 रू. देना पड़ रहा है। हाजीपुर के ही जढ़ुआ स्थित टेम्पो स्टैण्ड का ठेकेदार श्रवण राय तो और भी अत्याचारी है। उसने तो रंगदारी-कर की कोई निश्चित दर ही नहीं रखी है। वह टेम्पो चालकों से कभी प्रति खेप 5 की जगह 25 रू. वसूलता है तो कभी 50 रू.। इसी प्रकार हाजीपुर जंक्शन टेम्पो स्टैण्ड में 20 रू. प्रति खेप की जगह 50 रू. प्रति खेप की जबरन वसूली की जाती है तो करबिगहिया,पटना जंक्शन टेम्पो स्टैण्ड में भी 20 रू. प्रति खेप के स्थान पर 50 रू. प्रति खेप की अवैध वसूली की जा रही है जिसका खामियाजा अंततः आम जनता को ही भुगतना पड़ रहा है।
मित्रों,मैं पूरे बिहार के प्रत्येक टेम्पो और बस स्टैण्डों में तो जा नहीं सकता मगर मेरा पूरा विश्वास है कि आज की तारीख में कुछेक को छोड़कर बिहार के सभी टेम्पो और बस स्टैण्डों में टेम्पो और बस चालकों से अवैध वसूली की जा रही है। सरकार और स्थानीय निकाय अपनी आमदनी बढ़ाए,बेशक बढ़ाए लेकिन यह कौन देखेगा कि उसके द्वारा दिए गए कर-वसूली के अधिकार का कोई ठेकेदार दुरूपयोग तो नहीं कर रहा है? मुझे यह भी मालूम है कि जब यही कर-वसूली सरकारी मुलाजिम कर रहे थे तब सरकारी खजाने में कम उनकी अपनी जेबों में ज्यादा राशि जमा हो रही थी इसलिए सरकार के समक्ष यह विकल्प भी अनुपलब्ध है। परन्तु क्या यह देखना भी सरकार,स्थानीय निकायों और प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं है कि कोई उसके द्वारा दिए गए कर-वसूली के लाइसेंस का दुरूपयोग तो नहीं कर रहा है? अगर अवैध वसूली अब भी जारी है और वसूले जानेवाले धन की आनुपातिक मात्रा पहले से भी कहीं ज्यादा हो गई है तो फिर सरकार या निजाम को बदलने से क्या फायदा? तब वर्तमान सरकार को ऐसा दावा भी नहीं करना चाहिए कि उसके राज में रंगदारी बंद या कम हो गई है। सच्चाई तो यह है कि बिहार सरकार ने उल्टे पुराने रंगदारों को रंगदारी-वसूलने का सरकारी लाइसेंस दे दिया है और जनता को उनके रहमोकरम पर छोड़ दिया है।
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