कोयला घोटाले की आग बुझी भी नहीं थी कि महंगाई और रिटेल में
51 प्रतिशत एफडीआई को मंजूरी देकर यूपीए सरकार ने मानो अपने ही पैरों में
कुल्हाड़ी मार ली। दो दिनों में दो बड़े फैसले के खिलाफ जहां समूचा विपक्ष सरकार
के खिलाफ लामबंद हो गया है…वहीं प्रधानमंत्री देश के
आर्थिक हालात में सुधार के लिए इन फैसलों को सही ठहरा रहे हैं...लेकिन इसको लेकर
विपक्ष के साथ ही सरकार के सहयोगियों के रवैये को देखते हुए तो यही लगता है कि
फिलहाल आने वाले दिन सरकार के लिए आसान नहीं होंगे। ऐसे में बड़ा सवाल ये भी उठता
है कि क्या यूपीए 2 अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा कर पाएगी या फिर कोयला घोटाले
की आग पर महंगाई और एफडीआई का घी सरकार की बलि ले लेगा। एफडीआई की अगर बात करें तो
सरकार एफडीआई में 51 प्रतिशत विदेशी निवेश के पीछे तर्क दे रही है कि इससे रिटेल
सेक्टर में करीब एक करोड़ नौकरियां मिलेंगी...आर इसके साथ ही बिचौलियों पर लगाम
लगेगी औऱ किसानों को उनकी उपज का वाजिब दाम मिलेगा...लेकिन विपक्ष का तर्क है कि
इससे छोटे दुकानदार खत्म हो जाएंगे...और विदेशी कंपनियां बाजार का विस्तार नहीं
करेंगी...औऱ मौजूदा बाजार में ही काबिज हो जाएंगी..जिससे इससे जुड़े करीब 4 करोड़
लोगों पर इसका असर पड़ेगा...इसके अलावा भी तमाम तर्क देकर विपक्ष के साथ ही सरकार
की सहयोगी पार्टियां एफडीआई का विरोध कर रही हैं। हालांकि एफडीआई पर राज्य सरकारों
के पास ये अधिकार है कि वे अपने राज्य में एफडीआई लेकर आएं या नहीं...लेकिन इसके
बाद भी विपक्ष को सरकार का ये फैसला रास नहीं आ रहा है। डीजल के दामों में वृद्धि
और रसोई गैस में प्रति परिवार सिलेंडर का कोटा फिक्स करने पर तो सिर्फ सरकार के
खिलाफ धरना प्रदर्शन और विरोध के ही स्वर सुनाई दे रहे थे...औऱ सरकार के सहयोगी नाराज
होने के बावजूद समर्थन वापस लेने पर विचार नहीं कर रहे थे...लेकिन उसके तुरंत बाद
सरकार के एफडीआई के कदम पर समूचे विपक्ष के साथ ही सरकार की सहयोगी पार्टियां भी
लामबंद हो गयी हैं...औऱ सरकार से फैसला वापस न लेने पर समर्थन वापस लेने की धमकी
दे रही हैं। मनमोहन सरकार के लिए इसमें सबसे बड़ी मुश्किल साबित हो रहे हैं चार “एम”...ममता, मायावती, मुलायम और एम करुणानिधि। विरोध तो मुख्य विपक्षी दल भाजपा
समेत समूचा विपक्ष कर रहा है लेकिन मनमोहन सरकार के सहयोगियों का विरोध सरकार पर
भारी पड़ सकता है। मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी की अगर बात करें तो सपा के 23
सांसद हैं, मायावती की बहुजन समाज पार्टी के 21, ममता की तृणमूल कांग्रेस के 19
सांसद हैं तो एम करूणानिधि की द्रमुक के 18 सांसद हैं। वर्तमान में सरकार को लोकसभा
में 317 सांसदों का समर्थन हासिल है...जबकि जरूरत 272 सदस्यों के समर्थन की है।
अगर मनमोहन सरकार से चार “एम” यानि
ममता, मुलायम, मायावती और एम करूणानिधि समर्थन वापस ले लेते हैं तो सरकार के पास
सिर्फ 236 सासंद रह जाएंगे...यानि कि सरकार अल्पमत में आ जाएगी। हालांकि इन सभी
दलों ने अभी सरकार को सिर्फ धमकी दी है...और पार्टी की बैठक के बाद इस पर फैसला
लेने की बात कही है...लेकिन जिस तरह के तेवर चारों के हैं...उसको देखते हुए तो
नहीं लगता कि मनमोहन की मुश्किलें कम होने जा रहा हैं। मुद्दा सिर्फ एक होता तो
सरकार को मैनेज करने में भी आसानी होती लेकिन...यहां तो पहले से ही जल रही कोयला
घोटाले की आग के बीच महंगाई और एफडीआई का बम भी सरकार ने फोड़ दिया है। विपक्ष के
साथ ही सहयोगियों के तेवरों के बाद भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का ये बयान कि
सारे फैसले देशहित में हैं...और अगर हम जाएंगे तो भी लड़ते हुए जाएंगे ये साफ करने
के लिए काफी है कि सरकार फिलहाल विपक्ष और सहयोगियों के दबाव में आने वाली नहीं है...यानि
कि सरकार शायद इस बात के लिए भी पहले से ही तैयार है कि सरकार गिर भी सकती है...औऱ
मनमोहन का ये बयान कि लड़ते हुए जाएंगे ये भी बयां कर रहा है कि वे मान चुके हैं
कि सरकार का जाना तय है...ऐसे में क्यों न बिना झुके कुछ कड़े फैसले लिए जाएं...और
सरकार की उस छवि से बाहर निकला जाए जो कड़े फैसले लेने में पीछे हटती हो। बहरहाल मनमोहन
सरकार के लिए सबसे बड़ी मुश्किल एम फैक्टर ही बना हुआ है...और ये एम फैक्टर
राजनीति के चार बड़े सूरमा हैं...ऐसे में देखना ये होगा कि ये सूरमा मनमोहन सिंह
पर हावी होते हैं या फिर मनमोहन सिंह एम फैक्टर पर विजय हासिल कर अपनी उस बयान को सही
ठहराने में कामयाब होते हैं...जो उन्होंने हाल में तेहरान से लौटते वक्त अपने
विशेष विमान में दिया था कि वे 2014 तक प्रधानमंत्री बनें रहेंगे और जो लोग सत्ता
पाने के ख्वाब देख रहे हैं...वो 2014 का इंतजार करें। हम तो बस इतना ही कह सकते
हैं कि एम फैक्टर से निपटने के लिए बेस्ट ऑफ लक मनमोहन सिंह साहब।
deepaktiwari555@gmail.com
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