जिस आंदोलन ने
सरकार की चूलें हिला दी थी...उस आंदोलन को खड़ी करने वाली टीम एक झटके में बिखर
गई...ऐसे में जाहिर है इसका दर्द इतने जल्दी दिल से नहीं जाएगा...गाहे बगाहे इसके
पीछे की दास्तां और इसका दर्द जुबां पर आ ही जाता है...19 सितंबर 2012 को केजरीवाल
से राजनीतिक दल के गठन पर मतभेद के बाद अपने सहयोगियों से किनारा कर जब अन्ना
दिल्ली से रालेगण सिद्धी लौटे तो उसके बाद से कभी अन्ना ने अपने बलॉग के जरिए तो
कभी पत्रकारों के सवाल देते हुए इस दर्द को जाहिर किया और अपरोक्ष रूप से इसके लिए
केजरीवाल पर भी निशाना साधा। ब्लॉग के जरिए जहां अन्ना ने राजनीति को आंदोलन का
बंटाधार करने के लिए जिम्मेदार ठहराया तो साथ ही ये भी कहा कि राजजीतिक दल गठन के
फैसले के समर्थन में वे कभी रहे ही नहीं...अन्ना के इस बयान के बाद ये भी सवाल
उठता है कि जब अगस्त में जंतर मंतर में अन्ना हजारे और उनकी टीम ने जनता को चुनावी
विकल्प देने की जरूरत बताते हुए अपना अनशन समाप्त किया तो उस वक्त क्यों नहीं
अन्ना ने इसका विरोध किया...आखिर क्यों अन्ना ने अनशन के समाप्त होने के कुछ दिनों
बाद अपनी मंशा स्पष्ट करते हुए किसी राजनीतिक दल के गठन और उसके साथ जुड़ने के
खिलाफ होने की बात कही। अन्ना अगर राजनीति में आने के पक्षधर नहीं थे...जैसा वे कह
रहे हैं तो इसका सीधा मतलब ये निकलता है कि अन्ना पर जंतर मंतर पर अनशन समाप्त
करने के वक्त या उससे पहले अपने कुछ सहयोगियों का चुनावी विकल्प के फैसले का
समर्थन करने का भारी दबाव था। हालांकि अरविंद का ताजा बयान इसको झुठलाते हुए नजर
आता है...जिसमें अरविंद ने कहा है कि राजनीतिक दल गठन के इस फैसले के समर्थन में
अन्ना भी थे, लेकिन अब न जाने क्यों वे इस बात से इंकार कर रहे हैं। कई ऐसे सवाल
हैं जो लगातार जेहन में उठ रहे हैं कि आखिर कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ...लेकिन अन्ना
जिस तरह से लगातार अब बड़े ही तल्ख लहजे में राजनीतिक दल गठन करने के फैसले का
विरोध करते हुए अपने पूर्व सहयोगियों को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं उससे तो फिलहाल
ये साफ होता दिख रहा है कि चुनावी विकल्प के फैसले पर अन्ना पर अपने कुछ सहयोगियों
का भारी दबाव था...किरण बेदी के इस बयान के बाद भी इस पर मुहर लगती दिखती
है...जिसमें वे ये कहती हैं कि जिन लोगों को राजनीति बेहतर विकल्प लगा वे अपने
रास्ते चले गए हैं...और जो लोग आंदोलन के साथ थे...वो अन्ना हजारे के साथ खड़े
हैं। बहरहाल देर सबेर इस पर से भी पर्दा उठ ही जाएगा...लेकिन फिलहाल अन्ना ने साफ
कर दिया है कि जनलोकपाल के समर्थन में आंदोलन जारी रहेगा और आंदोलन ही एकमात्र
रास्ता है जो भ्रष्टाचार मिटाने के लिए जनलोकपाल की लड़ाई को उसके अंजाम तक
पहुंचाएगा। इसके लिए दिल्ली में अन्ना अब नई टीम बनाने की कवायद में भी जुट गए
हैं...जिसमें स्वयं सेवकों के साथ ही रिटायर आईएएस, आईएफएस और आईपीएस अधिकारियों
के साथ ही कई बड़े नाम शामिल हो सकते हैं...लेकिन यहां पर भी सवाल ये खड़ा उठता है
कि क्या नई टीम के साथ भी अन्ना का आंदोलन उस ऊर्जा...उस धार के साथ आगे बढ़ पाएगा...और
अपने अंजाम तक पहुंच पाएगा।
deepaktiwari555@gmail.com
आम आदमी जिंदाबाद
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